पाकिस्तानी मीडिया में भी छाया रहा अयोध्या विध्वंस केस, जानें- बड़े अखबारों ने क्या लगाई हेडिंग

अयोध्या ढांचा विध्वंस केस में फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने इसे शर्मनाक बताया है। विदेश कार्यालय ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि वह अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।

By Neel RajputEdited By: Publish:Thu, 01 Oct 2020 09:53 AM (IST) Updated:Thu, 01 Oct 2020 09:53 AM (IST)
पाकिस्तानी मीडिया में भी छाया रहा अयोध्या विध्वंस केस, जानें- बड़े अखबारों ने क्या लगाई हेडिंग
पाकिस्तान ने अयोध्या विध्वंस केस में फैसले की निंदा की

इस्लामाबाद, प्रेट्र। भारत की एक विशेष अदालत द्वारा अयोध्या के विवादित ढांचा ध्वंस मामले के सभी 32 आरोपितों को बरी करने के फैसले की पाकिस्तान ने निंदा की है। इस फैसले को यहां की मीडिया ने भी काफी तवज्जो दी है। 

उल्लेखनीय है 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में रामजन्म भूमि परिसर में स्थित विवादित ढांचे को उत्तेजित भीड़ ने ध्वस्त कर दिया था। इस घटना के बाद भारत में दंगे फैल गए थे जिसमें दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए।

बुधवार को इस फैसले पर टिप्पणी करते हुए पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने शर्मनाक बताया है। विदेश कार्यालय ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि वह अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। हालांकि भारत हमेशा ही पाकिस्तान के इस तरह के बयानों को खारिज कर उन्हें भारत के अंदरूनी मामलों में दखल बताता रहा है।

इस फैसले को पाकिस्तानी मीडिया ने काफी अहमियत दी है। ज्यादातर न्यूज चैनल ने इसे विवादित करार दिया है। जियो न्यूज ने जहां इसे विवादित फैसला बताया वहीं डान ने अपने आनलाइन संस्करण में लीड हेडलाइन में लिखा कि भारतीय अदालत ने सुबूतों के अभाव में ढांचा ध्वंस मामले में राष्ट्रवादी हिंदू नेताओं को बरी किया। एक्सप्रेस ट्रिब्यून और उर्दू के जंग अखबार ने भी फैसले की खबर को अहमियत दी है।

लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी समेत 32 आरोपी बरी

तकरीबन 28 सालों तक चले इस मामले में बुधवार को लखनऊ की विशेष अदालत ने फैसला सुनाते हए, लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित 32 आरोपियों को बरी कर दिया। कल सुनवाई के दौरान कोर्ट में 26 आरोपित मौजूद थे, जबकि लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, नृत्यगोपाल समेत छह आरोपी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अदालत से जुड़े हुए थे। सिर्फ तीन मिनट में ही जज ने अपना फैसला सुनाते हुए आरोपितों को बरी कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अखबारों में छपी खबरों को प्रबल साक्ष्य नहीं माना जा सकता क्योंकि उनके मूल नहीं पेश किए गए। फोटोज की निगेटिव नहीं प्रस्तुत किए गए और ना ही वीडियो फुटेज साफ थे। कैसेटस को भी सील नहीं किया गया था। अभियोजन ने जो दलील दी, उनमें मेरिट नहीं थी।

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