नेपाल में राजनीतिक हलचल के बीच निचले सदन की बैठक 7 मार्च को बुलाने की सिफारिश
नेपाल में ओली बने रहेंगे या फिर पुष्प कमल दहल प्रचंड आएंगे या फिर नया समीकरण बनेगा। इसको लेकर लगातार नई संभावनाएं बन रही हैं। नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा संसद को बहाल रखने का फ़ैसला सुनाया था। इसको लेकर अब फैसला सुनाया गया है।
काठमांडू, एएनआइ। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली द्वारा शुक्रवार को बुलाई गई कैबिनेट बैठक में राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से निचले सदन की बैठक सात मार्च को बुलाने की सिफारिश की है।बैठक प्रधानमंत्री के बालूवाटर स्थित आधिकारिक आवास पर आयोजित की गई थी। बैठक में निचले सदन की बैठक 7 मार्च को बुलाने की सिफारिश करने के अलावा, मंत्रालयों से संबंधित अन्य मामलों पर भी चर्चा की गई। यह जानकारी भूमि प्रबंधन, सहकारिता और गरीबी उन्मूलन मंत्री शिवमय तुमभांगफे ने दी।
उल्लेखनीय है नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों निचले सदन (प्रतिनिधि सभा) को बहाल कर सरकार को 13 दिनों के भीतर सत्र बुलाने का निर्देश दिया था। इसके साथ देश की शीर्ष अदालत ने उन सभी फैसलों को रद करने का भी फैसला दिया जो ओली सरकार ने 20 दिसंबर को प्रतिनिधि सभा भंग करने के बाद लिए थे।
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने मंगलवार को सुनवाई में प्रधानमंत्री केपी ओली के 20 दिसंबर को संसद भंग करने की सिफ़ारिश को असंवैधानिक करार दिया था। इतना ही नहीं अदालत ने 13 दिनों के भीतर संसद के निचले सदन की बैठक बुलाने के लिए प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और सदन के स्पीकर को आदेश जारी किया था।
नेपाल के विभिन्न राजनीतिक दलों ने अदालत के फ़ैसले के बाद नैतिकता के आधार पर प्रधानमंत्री से इस्तीफ़े की मांग की है, इसमें सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के एक दूसरे गुट का नेतृत्व कर रहे पुष्प कमल दहाल प्रचंड और प्रधानमंत्री ओली के लंबे समय से सहयोगी रहे माधव कुमार नेपाल शामिल हैं।
गौरतलब है कि ओली सरकार की सिफारिश पर गत 20 दिसंबर को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने संसद भंग कर 30 अप्रैल और 10 मई को दो चरणों में चुनाव कराने की घोषषणा की थी। सरकार के इस अप्रत्याशित कदम से नेपाल का राजनीतिक जगत सन्न रह गया था। अपनी कम्युनिस्ट पार्टी में संकट झेल रहे ओली से ऐसी उम्मीद किसी ने नहीं की थी। सरकार के इस फैसले का उन्हीं की पार्टी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पुष्प कमल दहल प्रचंड ने भारी विरोध किया था। संसद भंग करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल 13 याचिकाएं दायर हुई थीं।