चीन की कठपुतली बना नेपाल, गूगल और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भेजेगा विवादित नक्शा

चीन के हाथों की कठपुतली बन चुका नेपाल अब अपने देश के विवादित नक्शे को गूगल और भारत समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भेजने की तैयारी कर रहा है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sun, 02 Aug 2020 06:02 AM (IST) Updated:Sun, 02 Aug 2020 07:47 AM (IST)
चीन की कठपुतली बना नेपाल, गूगल और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भेजेगा विवादित नक्शा
चीन की कठपुतली बना नेपाल, गूगल और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भेजेगा विवादित नक्शा

काठमांडू, एजेंसियां। चीन के हाथों की कठपुतली बन चुका नेपाल अब अपने देश के विवादित नक्शे को गूगल और भारत समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भेजने की तैयारी कर रहा है। अपने इस नक्शे में नेपाल ने भारतीय क्षेत्र लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को अपना हिस्सा बताया है। नेपाल की भूमि प्रबंधन मंत्री पद्मा अर्याल ने कहा कि भारत और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय को नया नक्शा भेजा जाएगा। इस महीने के मध्य तक यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी।

उनके मंत्रालय ने नेपाली मापन विभाग को नए नक्शे की 4000 कॉपी को अंग्रेजी में प्रकाशित करने और उनसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भेजने को कहा है। नेपाल की ओली सरकार ने 20 मई को यह विवादित नक्शा जारी किया था। इसमें लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को नेपाल का हिस्सा दर्शाया गया है। भारत ने नेपाल के इस नक्शे को खारिज कर दिया है। भारत का कहना है कि नेपाल की यह एकतरफा कार्रवाई ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित नहीं है।

भारत ने इसे सीमा से जुड़े मुद्दे को द्विपक्षीय स्तर पर सुलझाने के करार का उल्लंघन भी बताया था। यही नहीं नेपाल ने सन 1947 में नेपाल, भारत और ब्रिटेन के बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते की समीक्षा की जरूरत बताई है। इस समझौते के अनुसार गोरखा समुदाय के लोग तीनों देशों की सेनाओं में नौकरी कर सकते हैं। नेपाल का कहना है कि यह समझौता अब निरर्थक हो गया है इसलिए तीनों देशों को अब फ‍िर से बात करनी चाहिए।

नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञावली ने कहा कि भारत और ब्रिटेन की सेनाओं में गोरखा सैनिकों की भर्ती पुरानी व्यवस्था के हिसाब से होती है। किसी समय यह नेपाल के युवाओं के लिए विदेश जाने का मौका होती थी। इसके चलते एक समय काफी लोगों को नौकरी मिलती थी लेकिन मौजूदा वक्‍त में इस समझौते के कई प्रावधानों को लेकर सवाल हैं। ऐसे में अब हम इस समझौते के आपत्तिजनक पहलुओं पर चर्चा चाहते हैं। 

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