Myanmar coup : म्‍यांमार तख्‍तापलट में चीन का सुर दुनिया से अलग क्‍यों, जानें ड्रैगन ने क्‍यों किया वहां के संविधान का समर्थन

म्‍यांमार में तख्‍तापलट को लेकर चीन ने एक बार दिखा दिया है कि उसकी लोकतंत्र में कतई आस्‍था नहीं है। सवाल यह है कि चीन ने म्‍यांमार के संविधान का जिक्र क्‍यों किया। म्‍यांमार के स‍ंविधान में ऐसा क्‍या है जो चीन को रास आ रहा है।

By Ramesh MishraEdited By: Publish:Tue, 02 Feb 2021 11:56 AM (IST) Updated:Tue, 02 Feb 2021 01:00 PM (IST)
Myanmar coup : म्‍यांमार तख्‍तापलट में चीन का सुर दुनिया से अलग क्‍यों, जानें ड्रैगन ने क्‍यों किया वहां के संविधान का समर्थन
म्‍यांमार तख्‍तापलट में चीन के सूर दुनिया से अलग। फाइल फोटो।

बीजिंग, ऑनलाइन डेस्‍क। म्‍यांमार में तख्‍तापलट की घटना को लेकर चीन ने एक बार दिखा दिया है कि उसकी लोकतंत्र या लोकतांत्रिक मूल्‍यों में कतई आस्‍था नहीं है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने पूरी दुनिया के विपरीत इस मामले में क्‍या प्रतिक्रिया दी है। म्‍यांमार में संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ और अमेरिका समेत तमाम लोकतांत्रिक देशों ने लोकतंत्र के बहाली की बात कही है। सभी मुल्‍कों ने म्‍यांमार सेना की कठोर शब्‍दों में निंदा की वहीं चीन ने म्‍यांमार के संविधान का हवाला देकर पूरे मामले से पल्‍ला झाड़ लिया है। सवाल यह है कि चीन ने म्‍यांमार के संविधान का जिक्र क्‍यों किया। म्‍यांमार के स‍ंविधान में ऐसा क्‍या है, जो वहां के लोकतांत्रिक सरकार को रास नहीं आ रहा है, लेकिन चीन उसकी हिमायत कर रहा है।

म्‍यांमार में निर्वाचित सरकार पर सेना का संविधान

प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि दरअसल, म्‍यांमार में लंबे समय तक सेना का नियत्रंण रहा है। 2015 में म्‍यांमार में हुए चुनाव में आंग सांग सू की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली थी। इस तरह म्‍यांमार में सैन्‍य शासन के बाद एक चुनी हुई सरकार सत्‍ता में आई, लेकिन व‍िडंबना यह रही कि यहां चुनी हुई सेना द्वारा निर्मित संविधान के तहत शासन करना था।

यह संविधान सेना द्वारा थोपा गया था। म्‍यांमार में निर्वाचित सरकार ने सेना की ओर से थोपे गए संविधान को बदलने की तैयारी शुरू हुई तो यह बात उसे अखर गई। आंग सांग की सरकार के इस कदम को सेना के खिलाफ देखा गया। इसको लेकर सेना और आंग सांग की सरकार के बीच तनाव बढ़ा। 

सेना का क्‍यों अखर गया आंग सांग की यह पहल

प्रो पंत का कहना है 2008 के संविधान के तहत सुरक्षा से जुड़े सभी मंत्रालयों पर सेना का नियंत्रण है। मौजूदा संविधान के तहत संसद की एक चौथाई सीटें भी सेना के लिए आरक्षित है। ऐसे में म्‍यांमार सरकार द्वारा कोई संशोधन सेना के पक्ष में नहीं है। इतना ही नहीं सेना को संविधान में किसी बदलाव पर वीटो लगाने का अधिकार है। उनका कहना है कि म्‍यांमार में निर्वाचित सरकार के पीछे हुकूमत सेना का ही चलता है।

यहां लोकतांत्रिक सरकार के हाथ बंधे हैं। यही कारण है कि आंग सांग की पार्टी ने विवादित दस्‍तावेज में बदलाव का वादा किया था। इसी क्रम में एक समिति बनाने के प्रस्‍ताव पर संसद में मदतान कराया गया था, जो भारी बहुमत से पारित हो गया था। इसके बाद सेना को यह भय सताने लगा कि सत्‍ता से उनका नियंत्रण खत्‍म हो जाएगा। ऐसे में सेना ने आंग सांग की इस कवायद को समाप्‍त करने के लिए यह कदम उठाया।

म्‍यांमार तख्‍तापलट का हो रहा है विरोध

संयुक्‍त राष्‍ट्र ने ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका से म्‍यांमार में राजनीतिक बंदियों की रिहाई और लोकतंत्र की बहाली का आह्वान किया। हालांकि, चीन इस विरोध में शामिल नहीं है। चीन ने यह कहते हुए इस घटना का उल्‍लेख किया है कि सभी पक्षों को संविधान का सम्‍मान करना चाहिए। पड़ोसी थाइलैंड ने म्‍यांमार के आंतरिक मामलों में टिप्‍पणी करने से इंकार कर दिया। बता दें कि म्‍यांमार सेना ने देश की सत्‍ता अपने हाथों में ले लिया है। सेना ने आंग सांग सू की समेत कई नेताओं को हिरासत में लिया है। इसके साथ ही देश के कई शहरों की सड़कों पर सैनिक तैनात किए गए हैं। संचार व्‍यवस्‍था को सीमित कर दिया गया है। वर्ष 2011 में यहां पांच दशकों बाद दमनकारी सैन्‍य शासन का खात्‍मा हुआ था। वर्ष 2015 में आंग सांग सू की की नेशनल लीन फॉर डेमोक्रेसी एनएलडी पार्टी ने निष्‍पक्ष मतदान के बाद देश का नेतृत्‍व किया। 1 फरवरी को पार्टी को अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करना था, लेकिन संसद के पहले सत्र से कुछ घंटे पहले आंग सांग समेत कई राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।

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