संयुक्‍त राष्‍ट्र में किसी भी संघर्ष में तेहरान के साथ आया मास्‍को, अमेरिका को किया खबरदार

अमेरिका और ईरान के बढ़ते तनाव के बीच रूस ने आगाह किया है कि वह संयुक्‍त राष्‍ट्र में तेहरान के खिलाफ किसी भी कार्रवाई का पुरजोर विरोध करेगा।

By Ramesh MishraEdited By: Publish:Wed, 13 May 2020 07:50 AM (IST) Updated:Wed, 13 May 2020 11:48 AM (IST)
संयुक्‍त राष्‍ट्र में किसी भी संघर्ष में तेहरान के साथ आया मास्‍को, अमेरिका को किया खबरदार
संयुक्‍त राष्‍ट्र में किसी भी संघर्ष में तेहरान के साथ आया मास्‍को, अमेरिका को किया खबरदार

संयुक्‍त राष्‍ट्र, एजेंसी। अमेरिका और ईरान के बढ़ते तनाव के बीच रूस ने आगाह किया है कि वह संयुक्‍त राष्‍ट्र में तेहरान के खिलाफ किसी भी कार्रवाई का पुरजोर विरोध करेगा। संयुक्‍त राष्‍ट्र में रूस के राजदूत वासिली नेबेंजिया ने मंगलवार को साफ कर दिया कि इस्लामिक गणराज्य के खिलाफ वह किसी भी तरह के हथियारों के प्रतिबंधों में अमेरिकी प्रयास एवं पहल का मास्‍को प्रबल विरोध करेगा। मास्‍को के इस हस्‍तक्षेप के साथ वाशिंगटन-तेहरान संघर्ष अब एक नए मोड़ पर आ गया है। 

UN में अमेरिका को भारी मुश्किलें 

रूस के राजदूत के इस बयान के बाद यह तय हो गया है कि ईरान के विरोध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। खासतौर पर तब जब रूस के पास वीटो का अधिकार है। मास्‍को का यह बयान ऐसे समय आया है, जब अमेरिका ने संयुक्‍त राष्‍ट्र में ईरान के हथियार प्रतिबंधों के विस्‍तार के प्रस्‍ताव को आगे बढ़ाने के संकेत दिए हैं। इस बाबत अप्रैल में परिषद के सदस्‍यों की वार्ता हुई थी। बता दें कि ईरान पर प्रतिबंधों की समय सीमा अक्‍टूबर में समाप्‍त हो रहा है।

ट्रंप ने ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों को जायज ठहराया

गौरतलब है कि अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों को जायज ठहराया था। उन्‍होंने कहा था कि वर्ष 2015 का समझौता ठीक नहीं था। ट्रंप ने कहा कि अगर ईरान समझौते के तहत आने वाले सभी बातों को पालन नहीं करता तो वह कुछ ही समय में परमाणु हथियार विकसित करने में सक्षम होगा। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर कोई देश ईरान की मदद करता है तो अमरीका उस पर भी प्रतिबंध लगाएगा। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर कोई देश ईरान की मदद करता है तो अमरीका उस पर भी प्रतिबंध लगाएगा। इसके बाद अमेरिका का महाशक्तियों से भी संघर्ष की स्थिति बन गई। 

क्‍या है फसाद की जड़  गौरतलब है कि 12 मई, 2020 को अमेरिका ने 2015 के ऐतिहासिक परमाणु समझौते से अपने आप को अलग कर लिया। इस मौके पर अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने कहा था कि मेरे लिए यह स्‍पष्‍ट है कि हम इस समझौते के साथ रहकर ईरान के परमाणु बम को नहीं रोक सकते। ट्रंप ने कहा कि ईरान समझौता मूल रूप से दोषपूर्ण है। इसलिए मैं ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका से हटने की घोषणा कर रहा हूं। इसके बाद राष्‍ट्रपति ट्रंप ने ईरान के खिलाफ ताजा प्रतिबंधों वाले दस्‍तावेजों पर हस्‍ताक्षर कर दिए।  दरअसल, इसकी शुरुआत वर्ष 2002 में ईरान के अघोषित परमाणु केंद्रों के खुलासे की खबरों के साथ हुई। ईरान में सरकार विरोधी एक विपक्षी गुट ने इस जानकारी उजागर किया था। विपक्ष का कहना था कि ईरान गुप्त रूप से यूरेनियम संवर्धन और हैवी वॉटर रिएक्टर के निर्माण में लगा हुआ है। इस संवर्धित यूरेनियम परमाणु रिएक्टर में ईंधन का इस्‍तेमाल परमाणु बम बनाने में किया जा सकता है। इस खुलासे के बाद दुनिया की नजर ईरान पर पड़ी। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आइएइए) का कहना था कि ईरान एक गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम शुरू करने की तैयारी कर रहा है, जिसका लक्ष्य मिसाइलों के लिए परमाणु हथियार बनाकर उनका परीक्षण करना है। इसके बाद अमेरिका की अगुवाई में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। इससे तेल और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद ईरान की कमर टूट गई। इसके समाधान के लिए विश्‍व की छह शक्तियों (अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस और चीन) के साथ उसकी बातचीत का लंबा दौर शुरू हुआ जिसकी परिणति जुलाई 2015 में वियना समझौते (ईरान परमाणु समझौते) के साथ हुई। अमेरिका इस संधि से अब अलग हो गया। 

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