US-Taliban Peace Deal: शांति प्रक्रिया के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने दी अशरफ गनी को बधाई

US-Taliban Peace Deal शांति प्रक्रिया के अगले चरण के मद्देनजर दोनों नेताओं ने भविष्य में भी संपर्क में बने रहने पर सहमति व्यक्त की है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Tue, 03 Mar 2020 05:23 PM (IST) Updated:Tue, 03 Mar 2020 05:35 PM (IST)
US-Taliban Peace Deal: शांति प्रक्रिया के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने दी अशरफ गनी को बधाई
US-Taliban Peace Deal: शांति प्रक्रिया के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने दी अशरफ गनी को बधाई

वाशिंगटन, प्रेट्र। US-Taliban Peace Deal: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (President Donald Trump) ने अफगानिस्तान में शांति बहाली के लिए उठाए गए कदमों पर अपने अफगानी समकक्ष अशरफ गनी (Asharaf Ghani) को बधाई दी है। 18 वर्षो तक चले युद्ध के बाद गत शनिवार को अमेरिका और तालिबान ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

व्हाइट हाउस ने मंगलवार को जानकारी दी कि ट्रंप और गनी ने रविवार को फोन पर बात की। इस दौरान दोनों नेताओं ने इस पर रजामंदी जताई कि यह समझौता अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया के लिए मील का पत्थर है।

14 महीनों में अमेरिकी सैनिक वापस करने की सहमति

शांति प्रक्रिया के अगले चरण के मद्देनजर दोनों नेताओं ने भविष्य में भी संपर्क में बने रहने पर सहमति व्यक्त की। अगले चरण में अफगान सरकार और तालिबान के बीच स्थायी संघर्ष विराम और देश के राजनीतिक भविष्य पर चर्चा होगी। तालिबान के साथ हुए समझौते के तहत अमेरिका 130 दिनों के अंदर अफगानिस्तान में अपने सैनिकों की संख्या 13 हजार से घटाकर 8,600 करेगा। अमेरिका ने 14 महीनों में अपने सभी सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुलाने पर सहमति व्यक्त की है।

दोहा में 30 देशों के प्रतिनिधि बने गवाह

बता दें कि अफगानिस्तान में शांति स्थापना के लिए अमेरिका और तालिबान के बीच समझौते पर सहमति बन गई है। लगभग 18 महीनों की लगातार वार्ता के बाद आमरेका-तालिबान शांति समझौते पर कतर के दोहा में हस्ताक्षर हुआ था। इस मौके का अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो, कतर में भारतीय राजदूत पी. कुमारन, पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी समेत लगभग 30 देशों के प्रतिनिधि गवाह बने।

लगभग 18 साल पहले अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया था। सितंबर, 2001 में न्यूयॉर्क व वाशिंगटन पर अल-कायदा के बड़े आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने यह कार्रवाई की थी। तब वहां तालिबान का शासन था जिसे सिर्फ पाकिस्तान का समर्थन मिला हुआ था।

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