बंगाल में शांतिनिकेतन आकर सोनाझुरी हाट नहीं देखा तो क्या देखा!

हस्तशिल्प उत्पादों के कद्रदानों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है बंगाल में शांतिनिकेतन सोनाझुरी हाट। यह सिर्फ एक हाट नहीं है बल्कि ग्रामीण बंगाल की संस्कृति का परिचायक है। कई किलोमीटर में लगने वाला सोनाझुरी हाट हस्तशिल्प उत्पादों के कद्रदानों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है।

By PRITI JHAEdited By: Publish:Thu, 11 Feb 2021 09:22 AM (IST) Updated:Thu, 11 Feb 2021 09:53 AM (IST)
बंगाल में शांतिनिकेतन आकर सोनाझुरी हाट नहीं देखा तो क्या देखा!
ग्रामीण बंगाल की संस्कृति का परिचायक सोनाझुरी हाट का नजारा।

शांतिनिकेतन, विशाल श्रेष्ठ। चारों तरफ घना जंगल, लंबे व हरे-भरे सोनाझुरी वृक्षों का झुरमुट, खुले आसमान के नीचे चादर बिछाकर लगीं दुकानें, पारंपरिक वेशभूषा में लोक नृत्य करतीं आदिवासी महिलाएं और बाउल गीतों से आगंतुकों को मुग्ध करते लोक गायक...यह नजारा शांतिनिकेतन के सोनाझुरी हाट का है।

विश्वभारती विश्वविद्यालय कैंपस से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर सोनाझुरी फारेस्ट में प्रत्येक शनिवार को लगने वाला यह हाट शांतिनिकेतन के सबसे दर्शनीय स्थलों में से एक है। ऐसे समय जब विश्वभारती कैंपस लॉकडाउन के समय से बंद है, पर्यटन के लिहाज से इसकी अहमियत और बढ़ गई है। पिछले डेढ़ दशक से हरियाली के बीच लगने वाले सोनाझुरी हाट में सैकड़ों की तादाद में दुकानें लगती हैं और हजारों की तादाद में लोग उमड़ते हैं। ज्यादातर खरीदार कोलकाता के होते हैं, जो वीकेंड में महानगर की व्यस्त जिंदगी को पीछे छोड़कर अच्छा समय बिताने शांतिनिकेतन आते हैं।

ग्रामीण बंगाल की संस्कृति का परिचायक

यह सिर्फ एक हाट नहीं है बल्कि ग्रामीण बंगाल की संस्कृति का परिचायक है। कई किलोमीटर में लगने वाला सोनाझुरी हाट हस्तशिल्प उत्पादों के कद्रदानों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। यहां विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प उत्पाद बेहद आसानी से और बहुत ही सस्ते दाम में उपलब्ध हैं, जिनमें कपड़े, गहने, बैग, खिलौने, पेंटिंग्स, गिफ्ट आइटम्स, लकड़ी के सामान, कुर्सियां, बर्तन, मूर्तियां, वाद्य यंत्र इत्यादि शामिल हैं। सोनाझुरी हाट प्रत्येक शनिवार को दोपहर से लगना शुरू होता है और अंधेरा होने तक चलता है क्योंकि यहां बिजली की मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। चारों तरफ सोनाझुरी पेड़ होने के कारण ही इस हाट का नाम सोनाझुरी हाट पड़ा है।

यहां आकर ग्रामीण बंगाल की संस्कृति में रच-बस जाते हैं लोग

कोलकाता के अलीपुर इलाके से हर साल ठंड के समय यहां आने वाले 60 साल के देशप्राण मुखर्जी ने बताया-'मैं देशभर के कई हाटों में घूमा हूं लेकिन सोनाझुरी हाट की बात ही कुछ और है। प्रकृति की गोद में लगने वाला यह हाट बेहद सुखद अनुभूति कराता है।

यहां आकर लोग ग्रामीण बंगाल की संस्कृति में रच-बस जाते हैं। महिलाएं खुद-ब-खुद आदिवासियों के साथ नृत्य करने लगती हैं। लोग बाउल गीत सुनने में मशगूल हो जाते हैं। शांतिनिकेतन आकर अगर किसी ने इस हाट का भ्रमण नहीं किया तो उनका यहां आना अधूरा है।' यह हाट मुख्य रूप से शनिवार को लगता है लेकिन अब रविवार व सप्ताह के अन्य दिनों में भी लगने लगा है। इसकी प्रसिद्धि साल-दर-साल बढ़ती जा रही है और इसी के साथ इसका विस्तार भी होता जा रहा है। यहां दुकान लगाने वालों और खरीदारों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है। 

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