खिलौनों से सुलझाते विज्ञान की गुत्थी

प्रकाश पांडेय कोलकाता विज्ञान उनके लिए बच्चों का खेल हैं और खिलौनों के बीच पड़े इस शख्स क

By JagranEdited By: Publish:Fri, 15 Nov 2019 09:40 AM (IST) Updated:Fri, 15 Nov 2019 09:40 AM (IST)
खिलौनों से सुलझाते विज्ञान की गुत्थी
खिलौनों से सुलझाते विज्ञान की गुत्थी

प्रकाश पांडेय, कोलकाता : विज्ञान उनके लिए बच्चों का खेल हैं और खिलौनों के बीच पड़े इस शख्स को देख आप इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकेंगे इस शख्स ने दुनिया में हिन्दुस्तान का परचम लहराया है। खैर, काम बोलता और कपड़े से कभी किसी की दक्षता को नहीं मापा जा सकता है। हाल ही महानगर कोलकाता में संपन्न हुए अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव 2019 में उत्तर प्रदेश के मेरठ से आए दीपक शर्मा के मैजिक विज्ञान को देख शहरवासी अचंभित हो गए। क्योंकि इनके खिलौने के खेल में विज्ञान का ज्ञान और भारत की समृद्ध दर्शन का सार ही उन्हें औरों से पृथक करता है।

साइंस सिटी के हॉल संख्या दो के स्टॉल संख्या चार पर काच की ग्लास, प्लास्टिक की गेंद व अन्य खिलौनों के साथ जब दीपक करतब दिखाते तो उसे देखने को भारी संख्या में बच्चों के साथ ही अन्य राज्यों से आए प्रतिनिधि भी वहा एकत्र हो जाते और खेल-खेल में ही दीपक खगोल विज्ञान से लेकर भौतिकी व रसायन तक को सरल व सहज तरीके से परिभाषित कर उनका ज्ञानव‌र्द्धन करते। इसके इतर, चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण जैसी खगोलीय घटनाओं के प्रति लोगों को जागरूक कर उन्हें इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों को उपकरणों के जरिए समझा समाज में व्याप्त अंधविश्वास को मिटाते नजर आए। विज्ञान पर बनाया देश का पहला रियलिटी शो

दीपक शर्मा पेशे से शिक्षक हैं और मौजूदा समय में मेरठ के एनएएस इंटर कॉलेज में विज्ञान विषय पढ़ाते हैं। इसके अलावा साल 2015 में पहली बार विज्ञान के प्रचार-प्रसार को उन्होंने रियलिटी शो बनाया। जिसे अपने वेब चैनल 'विज्ञान आओ कर के सीखे' के माध्यम से प्रसारित किया और देखते ही देखते इस शो की लोकप्रियता बढ़ती चली गई। दीपक बताते हैं कि उनका विज्ञान पढ़ने और पढ़ाने का जुनून केवल कक्षा तक ही सीमित नहीं है। स्कूल से बाहर भी पिछले 34 सालों से विज्ञान की शिक्षा को नित्य नए प्रयोग कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने गणित और विज्ञान को जोड़ गीत लिखे और गीतों की प्रस्तुति इस कदर रही कि विद्यार्थी खुद-ब-खुद खींचे चले आए। बिग बॉस की लोकप्रियता को देख उनके मस्तिष्क में विज्ञान पर रियलिटी शो बनाने की इच्छा जागृत हुई। जिसे बिना समय गवाए तैयार किया। रियलिटी शो की तर्ज पर ही दस दिनों तक देश भर के विभिन्न शहरों से चुने गए बाल वैज्ञानिकों को चौबीसों घटे विज्ञान घर में रखा गया, जहां उन लोगों ने सामान्य कामकाज के साथ विज्ञान गुरु के निर्देश पर कई प्रोजेक्ट के टास्क पूरे किए। उन्होंने बताया कि मेरठ में दो बार विज्ञान घर का आयोजन हो चुका है। विज्ञान घर के नए इनोवेशन से विज्ञान के शिक्षकों को सुखद अहसास कराया। अंक नहीं, अक्ल की जरूरत

बच्चों को स्कूल में बेहतर अंक हासिल हो इसके लिए उनके अभिभावक क्या कुछ नहीं करते। यहा तक की बाजार से प्रोजेक्ट तक खरीद लाते हैं और उसे स्कूल में पेश भी कर देते हैं। लेकिन दीपक की मानें तो आज लोग ग्लैमर के पीछे भाग रहे हैं सो विज्ञान को ग्लैमराइज करने पर उन्होंने खासा जोर दिया। पानी व हवा से रॉकेट उड़ाकर दिखाया। माप डाली पृथ्वी से सूर्य की दूरी

8 जून, 2004 को दीपक ने वो कर दिखाया, जो दूसरों के लिए बेहद मुश्किल था। महज एक छड़ की मदद से उन्होंने पृथ्वी की परिधि माप डाली। शुक्र पारगमन यानी सूर्य के सामने से शुक्र के गुजरने की घटना। पैरेलेस एंगिल से सूर्य से शुक्र ग्रह की दूरी को मापने का सफल प्रयोग किया। हालाकि, उनके छोटे-छोटे प्रयोगों का व्यापक असर हुआ। दीपक बताते हैं कि रोजमर्रा के जीवन में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। विज्ञान ने दुनिया को बदल दिया है और इस बदलते दौर में अगर हम सावधान नहीं हुए तो आगे चुनौतियों से निपटना मुश्किल होगा। अभाव में ही निहित है भविष्य का संसाधन

विज्ञान की राह में अभाव कभी रोड़ा बन ही नहीं सकता है, क्योंकि विज्ञान हर चीज में निहित है। ऐसे में केवल आवश्यकता है कि हम समझदार बने। यदि पर्याप्त मात्रा में संसाधन है तो विज्ञान की शिक्षा को ओर अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। इतना ही नहीं अगर समूह में विज्ञान शोध हो तो काफी हद तक सामाजिक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है और प्रयोगों में रोजगार की भी अपार संभावना है, मसलन चीजों को टोहने व समझने की जरूरत है। यूरोपियन साइंस समिट में मिला सम्मान

साल 2011 में फ्रांस के टोलूस में आयोजित यूरोपियन साइंस समिट में दीपक को अध्यक्षता करने का मौका मिला और यह उनके जीवन का बेहद खास लम्हा रहा, जिसे आज भी याद कर वे प्रसन्न हो उठते हैं। उन्होंने बताया कि इस समिट में वे पहले एशियन थे, जिन्हें आमंत्रित किया गया था और उन्हें उनके प्रयोगों के लिए सम्मानित किया गया। इसके बाद 6 जून, 2012 को उन्हें हागकाग विश्वविद्यालय की ओर से सम्मानित किया गया।

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