महानगर में पैर पसार रही स्क्रब टाइफस नाम की बीमारी
-पार्क सर्कस के आइसीएच में बीते दो महीने में 50 बच्चे भर्ती -पिस्सुओं के काटने से शरीर में प्र
-पार्क सर्कस के आइसीएच में बीते दो महीने में 50 बच्चे भर्ती
-पिस्सुओं के काटने से शरीर में प्रवेश करता है विषाणु
जागरण संवाददाता, कोलकाता : महानगर के पार्क सर्कस में बीते दो महीने में स्क्रब टाइफस नाम की बीमारी के कई मामले सामने आ रहे हैं। यहां पार्क सर्कस इंस्टीच्यूट आफ चाइल्ड हेल्थ (आइसीएच) में बीते दो महीने में स्क्रब टाइफस से पीड़ित 50 बच्चों को भर्ती कराया गया है। डाक्टरों की मानें तो पिस्सुओं के काटने से होने वाली इस बीमारी में भी डेंगू की तरह प्लेटलेट्स की संख्या घटने लगती है। लेकिन मरीज को जल्द अस्पताल में भर्ती कराया गया तो इस पर समय रहते काबू पाया जा सकता है।
बताया जाता है कि उत्तर बंगाल में पहले से ही इस बीमारी देखने को मिली है लेकिन अब यह महानगर तक भी पहुंच चुका है। आइसीएच के क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डाक्टर प्रशाषप्रसुन्न गिरि ने बताया कि यहां दो महीने के दौरान 50 बच्चों को भर्ती कराया गया है। इनमें से तीन को आइसीयू में रखा गया है। उन्होंने कहा कि जून से इस बीमारी की शिकायत मिली है। मूल रूप से बारह साल तक के बच्चे ही इससे ग्रसित पाए गए हैं। इनमें से सभी के प्लेटलेट्स कम है इसलिए प्राथमिक तौर पर डेंगू होने का सक जाता है। लेकिन डेंगू समझने पर जान पर भी बन आ सकती है। इस बीमारी से ग्रसित बच्चों में किसी का हार्ट फेल्यूर तो किसी के विभिन्न अंगों के काम करना बंद करना, मेनिनजाइटिस, इन्सेफलायटिस जैसे लक्षण सामने आ रहे हैं लेकिन चेक करने पर असल बीमारी का पता चलता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि एक विशेष मकड़ी के काटने से यह रोग होता है। ये मकड़ी उड़ तो नहीं सकती लेकिन काफी दूर तक कूदने में सक्षम है। ऐसे में यदि कोई सुबह फील्ड में जागिंग करने निकलता है तो उसे विशेष सावधानी बरतनी चाहिए और जूते पहनने चाहिए। विशेषज्ञों की माने तो उत्तर बंगाल के पहाड़ी इलाके में बरसात में इस बीमारी के मकड़े सामने आते हैं। खास कर जंगली इलाकों के अलावा दीघा, मंदारमणि जैसे समुद्री इलाके में भी ऐसे मकड़े पाए जाते हैं। इनके काटने भर से विषाणु शरीर में प्रवेश कर जाता है। इलाज के तौर पर विशेषज्ञों का कहना है कि समय रहते यदि बीमारी का पता चल जाय तो एंटीबायोटिक के जरिए इसका इलाज संभव है लेकिन अधिक विलंब होने पर जान पर भी बन आ सकती है। हालांकि महानगर में इस बीमारी से किसी के जान जाने की खबर नहीं है।