एल्गार परिषद मामले में एनआइए ने कोलकाता के प्रोफेसर को किया तलब, एपीडीआर ने की निंदा

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च के प्रोफेसर पार्थसारथी रॉय जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं। एनआइए ने उन्हें नोटिस भेजकर पूछताछ के लिए बुुुुुुलाया है

By Preeti jhaEdited By: Publish:Sat, 05 Sep 2020 03:18 PM (IST) Updated:Sat, 05 Sep 2020 03:46 PM (IST)
एल्गार परिषद मामले में एनआइए ने कोलकाता के प्रोफेसर को किया तलब, एपीडीआर ने की निंदा
एल्गार परिषद मामले में एनआइए ने कोलकाता के प्रोफेसर को किया तलब, एपीडीआर ने की निंदा

राज्य ब्यूरो, कोलकाता : राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने भीमा कोरेगांव हिंसा से पहले पुणे के शनिवारवाड़ा में हुए एल्गार परिषद कार्यक्रम से जुड़ी पूछताछ के लिए कोलकाता के एक प्रोफेसर को तलब किया है। पार्थसारथी रॉय कैंसर बायोलॉजी में विशेषज्ञ हैं और कोलकाता के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

वे जाने-माने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और वामपंथी पत्रिका ‘सन्हती’ के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। साथ ही वे पर्सिक्यूटेड प्रिज़नर्स सॉलिडेरिटी कमेटी (पीपीएससी) की बंगाल इकाई के संयोजक भी हैं। एनआइए ने उन्हें नोटिस भेजकर उनके कथित तौर पर एल्गार परिषद से जुड़े होने को लेकर पूछताछ के लिए बुलाया है।

सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलने वालों की आवाज दबाने की कोशिश : एपीडीआर

एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स से जुड़े रंजीत सुर ने बताया कि पार्थसारथी रॉय को 10 सितंबर को सुबह 11 बजे एजेंसी के मुंबई दफ्तर में उपस्थित होने को कहा गया है। सुर ने आगे कहा, ‘यह सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलने वालों की आवाज दबाने की कोशिश है, हम इसका विरोध करेंगे।’ पार्थसारथी रॉय की ओर से इस अख़बार द्वारा किए गए कॉल और मैसेज का जवाब नहीं दिया गया।

सुर के मुताबिक, ‘एनआइए की टीम के अधिकारियों ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च कैंपस जाकर रॉय से मिलकर उन्हें नोटिस देने की कोशिश की थी, लेकिन कोविड-19 दिशानिर्देशों के चलते रॉय उनसे नहीं मिले। इसके बाद एजेंसी ने उन्हें ईमेल से नोटिस भेजा। हमने उनसे बात की है, उन्होंने कहा है कि वे अपने वकील से सलाह ले रहे हैं और उसके बाद ही उचित उठाएंगे।

कोलकाता के झुग्गीवासियों को हटाने के निर्णय के खिलाफ प्रदर्शन के चलते हुए गिरफ्तार

पार्थसारथी साल 2012 में टीएमसी सरकार द्वारा कोलकाता के झुग्गीवासियों को हटाने के निर्णय के खिलाफ कथित तौर पर प्रदर्शन करने के चलते गिरफ्तार हुए थे और उन्हें दस दिन जेल में रखा गया था। बीते साल वे उन नौ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में से थे, जिन्हें कथित तौर पर उन पर निगरानी रखने के लिए एक ‘स्पाईवेयर हमले‘ का निशाना बनाया गया था। इन सभी कार्यकर्ताओं ने साल 2018 में भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों को रिहा करने की मांग की थी। 

2018 में गृह मंत्रालय ने सरकार को पत्र लिख कहा था राज्य के 10 संगठनों पर नज़र रखें

भीमा कोरेगांव हिंसा के संबंध में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद साल 2018 में गृह मंत्रालय ने बंगाल सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि वह राज्य के 10 संगठनों पर नज़र रखें। इन संगठनों से जुड़े लोगों में कोलकाता के एसोसिएट प्रोफेसर पार्थसारथी रॉय भी शामिल थे।

मालूम हो कि पिछले कुछ सालों में भीमा कोरेगांव हिंसा से जोड़ते हुए कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, अकादमिक जगत के लोगों, वकीलों, पत्रकारों इत्यादि के घरों पर पुलिस द्वारा अचानक छापा मारा गया और उन्हें ‘अर्बन नक्सल’ करार देकर गिरफ्तार किया गया है।

साल 2018 से पुलिस ने कम से कम 12 ऐसे कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है और उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने से लेकर कथित माओवादियों के साथ संबंध रखने जैसे आरोप लगाए गए हैं।

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