चिकित्सा जगत में कोलकाता की एक और मिसाल, मां के पेट में पल रहे बच्चे को खून चढ़ाकर बचाई गई उसकी जान

चिकित्सा जगत में कोलकाता ने एक और मिसाल कायम की है। मां के पेट में पल रहे बच्चे को खून चढ़ाकर उसकी जान बचाई गई है। अपोलो हॉस्पिटल के डॉक्टरों की टीम ने इस बेहद दुर्लभ व जटिल ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।

By Vijay KumarEdited By: Publish:Thu, 12 Aug 2021 06:44 PM (IST) Updated:Thu, 12 Aug 2021 06:44 PM (IST)
चिकित्सा जगत में कोलकाता की एक और मिसाल, मां के पेट में पल रहे बच्चे को खून चढ़ाकर बचाई गई उसकी जान
चिकित्सा जगत में कोलकाता ने एक और मिसाल कायम की

राज्य ब्यूरो, कोलकाता : चिकित्सा जगत में कोलकाता ने एक और मिसाल कायम की है। मां के पेट में पल रहे बच्चे को खून चढ़ाकर उसकी जान बचाई गई है। अपोलो हॉस्पिटल के डॉक्टरों की टीम ने इस बेहद दुर्लभ व जटिल ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। बर्द्धमान की रहने वाली रीमा चाकलादार 24 हफ्ते के गर्भ से है। अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वह अस्पताल आई थी।

जांच में पता चला कि उसके पेट में पल रहे बच्चे का खून पानी हो गया हैऔर पेट, सीने में जम गया है। चिकित्सकीय भाषा में इस बीमारी को 'फिटल हाइड्रॉप्स' के नाम से जाना जाता है। अजन्मे बच्चे की जान बचाने के लिए उसे तुरंत खून चढ़ाने की जरूरत थी। इतने जटिल मामले के लिए विशेष मेडिकल टीम गठित की गई, जिसमें डॉ. सीताराम मूर्ति पाल, डॉ. कांचन मुखोपाध्याय, डॉ. सुमना हक और डॉक्टर मल्लीनाथ मुखोपाध्याय शामिल थे।

मां के गर्भनाल में सूई से छेद करके अजन्मे बच्चे को खून की आपूर्ति की गई। फिलहाल करीब 200 मिलीमीटर खून चढ़ाया गया है। आगे और भी खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है। खून चढा़ने के लिए भी अलग से मेडिकल टीम गठित की गई थी, जिसमें डॉ. डॉक्टर सुदीप्त शेखर दास, डॉ. जयंत कुमार गुप्त और डॉ. श्यामाशीष बंद्योपाध्याय शामिल थे।

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क्या है फिटल हाइड्रॉप्स की वजह

अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. कांचन मुखोपाध्याय ने बताया कि पेट में भ्रूण के रूप में पल रहे बच्चे की मां का ब्लड ग्रुप ए निगेटिव और पिता का बी पॉजिटिव है। ऐसे मामलों में पहली बार गर्भधारण करने पर आम तौर पर कोई समस्या नहीं होती। रीमा की पहली संतान पॉजिटिव ब्लड ग्रुप वाली है, जिसकी उम्र अभी नौ साल है।

दूसरी संतान के भी पॉजिटिव ब्लड ग्रुप वाली होने पर इस तरह की गंभीर समस्या हो सकती है जैसा कि रीमा के मामले में देखने को मिला है। बच्चे के खून में हिमोग्लोबिन की मात्रा घटकर तीन पर आ गई थी जबकि यह सामान्य तौर पर 12 के आसपास होनी चाहिए। रीमा के बच्चे का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव है।

पहले बच्चे के जन्म के बाद उसके शरीर में कुछ पॉजिटिव ब्लड सेल आ गए थे, हालांकि शरीर में उससे लड़ने की प्रतिरोधी क्षमता पैदा हो गई थी लेकिन दूसरी बार भी पॉजिटिव ब्लड ग्रुप वाला बच्चा गर्भ में आया तो उसकी प्रतिरोधी क्षमता ने उस ब्लड सेल को मारना शुरू कर दिया। इस वजह से बच्चे का खून पानी में तब्दील होने लगा।

डॉ. श्यामाशीष बंद्योपाध्याय ने कहा कि विदेशों में फिटल हाइड्रॉप्स के खतरे को टालने के लिए टीकाकरण किया जाता है। प्रत्येक महिला को प्रथम गर्भधारण के समय ही इस बाबत विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए।

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