राज्यपाल के तीखे तेवरों के बीच सांगठनिक फेरबदल, बंगाल में बीजेपी की कमान अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथों में

राज्यपाल के लगातार हो रहे हमलावर के बीच संगठन में फेरबदल। ममता सरकार को सत्ता से हटाने का बनाया लक्ष्य। राजनीतिक हालातों से हर कोई वाकिफ है साथ ही कानून सरकार के इशारों पर चलते दिख रही है। राज्य में लोकतंत्र और संविधान की अनदेखी की जा रही है।‌

By Vijay KumarEdited By: Publish:Fri, 30 Oct 2020 07:17 PM (IST) Updated:Fri, 30 Oct 2020 09:22 PM (IST)
राज्यपाल के तीखे तेवरों के बीच सांगठनिक फेरबदल, बंगाल में बीजेपी की कमान अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथों में
राज्य का वातावरण चिंताजनक है, कोई ऐसा दिन नहीं है जब बर्बरता की कहानी सामने नहीं आ रही हो।

अशोक झा, सिलीगुड़ी : बिहार चुनाव के बाद ही पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होना तय है। राज्य के वर्तमान स्थिति को लेकर एक और जहां राजनीतिक हालातों और कानून व्यवस्था को लेकर पश्चिम बंगाल के गवर्नर जगदीप धनखड़  ममता सरकार पर हमला  बोल रहे हैं वहीं दूसरी ओर चुनाव के पूर्व भाजपा का कमान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने हाथ में लेना शुरू कर दिया है। राजनीतिक हालातों से हर कोई वाकिफ है साथ ही कानून सरकार के इशारों पर चलते दिख रही है। राज्य में लोकतंत्र और संविधान की अनदेखी की जा रही है।‌ऐसे हालात बन गए है कि आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती राज्य की हालत किसी से छिपी नहीं है। 

राजनीतिक हिंसा हत्याओं में परिवर्तित हो गई है

राज्य का वातावरण चिंताजनक है। राजनीतिक हिंसा हत्याओं में परिवर्तित हो गई है। कोई ऐसा दिन हो नहीं है जब बर्बरता की कहानी सामने नहीं आ रही हो। इन सब बातों को लेकर ही गृह मंत्री के साथ राज्यपाल की अहम बैठक हो चुकी है। इसी बीच ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने पश्चिम बंगाल से ममता सरकार को हटाना अपना लक्ष्य बना लिया है। संघ  बंगाल को लेकर कितना गंभीर है, इसका अंदाजा उसके इस क़दम से लगाया जा सकता है कि उसने राज्य बीजेपी की कमान अपने हाथ में ले ली है। 

अमिताभ चक्रवर्ती को मिली महामंत्री की जिम्मेदारी 

संघ ने अपने प्रचारक रहे अमिताभ चक्रवर्ती को महामंत्री (संगठन) की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके अलावा भी कुछ और बदलाव संघ की मंशा पर किए गए हैं। इस पद पर संघ से आने वाले व्यक्ति को बैठाया जाता है और वह संघ और बीजेपी के बीच समन्वय का काम करता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत जनवरी में बंगाल सहित देश के सभी गांवों की मिट्टी अयोध्या जाने की घोषणा कर चुके हैं। राम मंदिर निर्माण में उस मिट्टी का इस्तेमाल किया जाएगा। बंगाल के तीन दिवसीय दौरे के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कोलकाता में संघ पदाधिकारियों के साथ बैठक में इस पर जोर दिया था। 

लंबा वक्त वहां गुजारने के बाद संघ के प्रचारक बने

इसके साथ ही संघ पदाधिकारियों के साथ बैठक में कई महत्वपूर्ण निर्णय हुए थे जिस के क्रियान्वयन के लिए अमिताभ चक्रवर्ती को सुब्रतो चट्टोपाध्याय की जगह स्थान दिया गया है। चक्रवर्ती संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से निकले हैं और लंबा वक्त वहां गुजारने के बाद संघ के प्रचारक बने। 2016 में वह बीजेपी में आए और अमित शाह ने उन्हें ओडिशा का संयुक्त प्रदेश महासचिव बनाया और जेपी नड्डा ने उन्हें यही पद बंगाल में दिया। अब संघ ने उनका प्रमोशन करते हुए उन्हें महामंत्री (संगठन) बनाया है।

अवैध घुसपैठियों का मुद्दा होगा चुनाव में प्रमुख मुद्दा

पश्चिम बंगाल में कथित रूप से रह रहे बांग्लादेशियों को हटाने के मुद्दे को लेकर आरएसएस और बीजेपी पूरे देश में आंदोलन करते रहे हैं। मोदी से लेकर अमित शाह और राजनाथ सिंह से लेकर जेपी नड्डा तक मंचों से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालने की बात कहते रहे हैं। संघ अमिताभ चक्रवर्ती की नियुक्ति तक ही नहीं रुका है, बताया जाता है कि उसने बंगाल में भाजपा के कामकाज देख रहे कैलाश विजयवर्गीय से कहा है कि वे अब बंगाल के बजाए अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश में ज़्यादा वक़्त दें। संघ ने विजयवर्गीय की जगह बीजेपी में संयुक्त राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) और अपने पूर्व क्षेत्रीय प्रचारक शिव प्रकाश को जिम्मेदारी दी है। 

मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर फ़ैसला चुनाव के बाद 

संघ ने शिव प्रकाश से कहा है कि वह बंगाल में अपनी सक्रियता बढ़ाएं। संघ के सूत्रों की माने तो भाजपा राज्य इकाई को यह सख़्त संदेश दिया है कि वह किसी भी तरह की अंदरूनी कलह को बर्दाश्त नहीं करेगा। क्योंकि बीजेपी में इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी का चेहरा कौन होगा। इसे लेकर पार्टी में कुछ नेता आमने-सामने हैं और यह बात केंद्रीय स्तर तक पहुंच चुकी है। इसलिए बीजेपी को पहले कई बार कहना पड़ा है कि मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर फ़ैसला चुनाव के बाद किया जाएगा।

गुटबाज़ी किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी

पश्चिम बंगाल में मई, 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं और इस लिहाज से वक़्त ज़्यादा नहीं बचा है। संघ यह क़तई नहीं चाहता कि राज्य बीजेपी से आ रही गुटबाज़ी की ख़बरों की वजह से बीजेपी को जो बढ़त 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली है, वह बेकार चली जाए। इसलिए उसने संगठन में सीधा दख़ल दिया है। ममता सरकार के ख़िलाफ़ भाजपा सड़कों पर है। बंगाल बीजेपी में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के बीच जोरदार जंग चल रही है और यह जंग मेघालय के पूर्व गवर्नर तथागत रॉय की एंट्री के बाद और तेज़ हो गई है। रॉय संकेतों में ख़ुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार तक बता चुके हैं।

राष्ट्रीय मुद्दे पर कार्यकर्ता एकजुट करने की तैयारी

कहा जाता है कि मुकुल रॉय और घोष के बीच यह जंग तब और ज़्यादा बढ़ गई जब पिछले महीने बीजेपी की राज्य इकाई की घोषणा की गई। इसमें कुछ नए लोगों को अहम जिम्मेदारियां देने की बात सामने आई। हालांकि इस जंग को थामने के लिए बीजेपी आलाकमान ने रॉय को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया लेकिन रॉय के समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहते हैं। वही प्रदेश अध्यक्ष और युवा प्रदेश अध्यक्ष को लेकर भी पिछले दिनों तनातनी का माहौल बना हुआ था। संघ राष्ट्रीय मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता एकजुट होकर ममता के कुशासन की सरकार को उखाड़ फेंकने का मन बनाए हुए हैं।

1925 में विजयादशमी पर बनी संगठनिक रुपरेखा

1925 में विजयादशमी के शुभ मुहुर्त पर उन्होंने घर पर कुछ साथियों को बुलाया एक नए संगठन की रूपरेखा बनाई।संगठन बन गया मगर अभी नाम रखना बाकी थी। 17 अप्रैल 1926 को उन्होंने संघ का नाम रखने के लिए अपने घर पर फिर बैठक बुलाई। तत्कालीन नागपुर के कार्यवाह की ओर से लिखे एक नोट के मुताबिक, उस बैठक में 26 लोगों ने मिलकर कुल तीन नाम बताए थे। ये तीन नाम थे 1- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, 2- जरिपटका मण्डल 3- भारतोद्धारक मण्डल। इनमें से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम चुना गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उद्देश्य लक्ष्य साकार करना

संघ नामकरण के समय वहां पर 26 सदस्य मौजूद थे। इसके बाद विचार-विमर्श किया गया वहां मौजूद लोगों से वोटिंग कराई गयी थी। जिसमें से 26 सदस्यों में 20 वोट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पक्ष में थे 6 वोट अन्य दोनों नाम के लिए किये गए थे। इस प्रकार से संघ का नाम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ रख दिया गया था. आरएसएस की स्थापना के पीछे हेडगेवार का मानना था कि हिंदुस्थान में हिंदू समाज की हर बात, हर संस्था तथा आन्दोलन राष्ट्रीय है। कांग्रेस की कथित तुष्टीकरण की नीतियों के कारण भी उनके मन में इस नए संगठन का ख्याल आता था, जिसे उन्होंने बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में साकार कर दिखाया।

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