पुरानी परंपरा कायम, जननी सुरक्षा का लाभ लेने से कतरा रही महिलाएं

पुरानी परंपरा कायम कुछेक ग्रामों के लोग आज भी घर में ही शिशु जन्म देने की पुरानी परंपरा को कायम कर रखें हैं।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Thu, 18 Jul 2019 11:55 AM (IST) Updated:Thu, 18 Jul 2019 11:55 AM (IST)
पुरानी परंपरा कायम, जननी सुरक्षा का लाभ लेने से कतरा रही महिलाएं
पुरानी परंपरा कायम, जननी सुरक्षा का लाभ लेने से कतरा रही महिलाएं

हावड़ा, ओमप्रकाश सिंह। देश जहां हर क्षेत्र में प्रगति की लंबी राहें तय कर चुका है। चांद और मंगल ग्रह पर जिंदगी बसाने के लिए विश्व के कई देश तत्पर हैं। देश और दुनिया की इस आधुनिक रफ्तार के बीच कोलकाता महानगर से महज तीस से चालीस किलो मीटर की दूरी पर स्थित कुछेक ग्रामों के लोग आज भी घर में ही शिशु जन्म देने की पुरानी परंपरा को कायम कर रखें हैं।

साधारण स्थिति में भी चिकित्सक व नर्स के बिना शिशु जनना अति खतरनाक हो गया है। आज के दौर में जहां बिना सीजर के शिशु नहीं हो रहें हैं उस स्थिति में एक दाई की मदद से शिशु का जन्म लेना बड़ा खतरा से कम नहीं है। शिशु जनने के बाद जच्चा बच्चा दोनों को दवाओं की जरूरत पड़ रही है। आये दिन अस्पतालों में प्रसव के दौरान थोड़ी सी लापरवाही से नवजात की जान चली जाती है। इस प्रकार के खतरों के बीच आज भी हावड़ा में कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं,जो दाई द्वारा प्रसव करवा रहीं हैं।

ऐसी भी बात नहीं है कि जिले में अस्पतालों का अभाव है। जिले के ग्रामीण इलाकों में उप स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 448 हैं, प्राइमरी हेल्थ सेंटर की संख्या 43 है, कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर की संख्या 15 है। इसके अलावा जिला अस्पताल एक,महकमा अस्पताल एक, स्टेट जनरल अस्पतालों की संख्या 6 और संक्रमक रोगियों के लिए एक अस्पातल है। जिले में छोटे बड़े कुल 514 स्वास्थ्य केंद्र और अस्पतालों के होने के बावजूद जिंदगी को दाव पर रखकर पुरानी परंपरा को कायम रखने का जुनून देखने को मिल रहा है।

हालांकि जननी सुरक्षा योजना के तहत पिछले दो सालों(2017 और 2018) के दौरान 15,898 गर्भवती महिलाओं ने सरकारी अस्पतालों में शिशु जनने के बाद आर्थिक लाभ उठा चुकी है जबकि 1,097 महिलाओं ने घर में ही बच्चों को जन्म दिया है।

इस संबंध में जिला स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सक डाक्टर एके सान्याल ने बताया कि स्थिति बदल चुकी है। घरों में अनस्कील्ड दाई से प्रसव कराना बेहद खतरनाक है क्योंकि प्रसव के दौरान हृदय गति धीमी हो जाती है। अधिक रक्त स्त्रव होने से आक्सीजन की जरुरत पड़ती है। इसके अलावा अगर शिशु कमजोर पैदा हुआ तो उसे आक्सीजन चढ़ाने के साथ सामान्य तापमान में रखा जाता है।

जच्चा और बच्चा को जीवनदायी दवाओं की जरुरत पड़ती है, जो घर में नहीं मिलते हैं। अस्पताल के बिना घर में शिशु को जनने की कल्पना भी कोई जागरूक महिला नहीं कर सकती है। जिले में इतने अधिक सरकारी अस्पताल हैं, जहां नि:शुल्क प्रसव की व्यवस्था होने एवं जननी सुरक्षा के तहत आर्थिक लाभ मिलने के बावजूद इस तरह की मानसिकता वाले लोग इक्कीसवीं सदी में अठारहवीं सदी की तरह जी रहें हैं।

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