खेड़ा नवाबगंज में जोड़ मेला शुरू

-बुद्ध पूर्णिमा पर होगा मुख्य कार्यक्रम श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी निर्मल तख्त तालाब बाबा बुड्डा साहिब जी के स्थान नंबर चार खेड़ा नवाबगंज में विख्यात जोड़ मेला शुरू हो गया है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 16 May 2019 11:41 PM (IST) Updated:Fri, 17 May 2019 06:35 AM (IST)
खेड़ा नवाबगंज में जोड़ मेला शुरू
खेड़ा नवाबगंज में जोड़ मेला शुरू

संवाद सहयोगी, बाजपुर : निर्मल तख्त तालाब बाबा बुड्डा साहिब जी के स्थान नंबर-चार खेड़ा नवाबगंज लेवड़ा पुल बाजपुर में श्री गुरु अमरदास जी महाराज की याद में जोड़ मेला व तीन दिवसीय समागम गुरुवार से शुरू हो गया। समापन बुद्ध पूर्णिमा पर विशाल समागम के साथ होगा। कार्यक्रम में अनेक राज्यों के हजारों श्रद्धालु प्रतिभाग कर रहे हैं।

गुरुवार को समागम के प्रथम दिन निर्मल तख्त दकोहा जालंधर पंजाब से पहुंचे संत बाबा भगवंत भजन सिंह ने आत्मदर्शी सत्संग किया। उन्होंने बताया कि 17 मई को सुबह पांच से सात बजे तक आत्मदर्शी सत्संग, 10 बजे संपुट सहज पाठ के भोग तथा 11 से तीन बजे तक दीवान सजेगा। 18 मई को दिनभर दीवान सजेगा तथा पंजाब, उत्तर-प्रदेश, उत्तराखंड के अनेक संत महात्मा, धर्म प्रचारक, रागी जत्थे आदि गुरुवाणी का यशोगान करेंगे। इस दौरान विशाल मेले का आयोजन भी होगा, जिसमें हजारों की संगत शिरकत करेगी। उन्होंने बताया कि 17 मई को परिवहन, समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य भी समागम में पहुंचेंगे। इस मौके पर स्थानीय मुख्य सेवादार बलजीत सिंह, भूपेंद्र सिंह बाजवा, सर्वजीत सिंह, सुखविदर सिंह, हरपाल सिंह आदि मौजूद थे।

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यह है मान्यता

बाजपुर : उपरोक्त स्थान लेवड़ा वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पिछले 50 वर्षों से बुद्ध पूर्णिमा पर विशाला व समागम होता आ रहा है। मान्यता है कि उपरोक्त स्थान में जो भी नि:संतान दंपती अरदास करते हैं, उन्हें बाबा जी प्राचीन परंपरा के अनुसार मिस्सी रोटी, प्याज व फल का प्रसाद देते हैं। अधिकांश लोगों को संतान की प्राप्ति हो जाती है। मनोकाना पूर्ण होने पर लोग बैंड-बाजे के साथ शुकराना करने के लिए पहुंचते हैं। यह स्थान ब्रह्मज्ञानी तथा गुरुग्रंथ साहिब जी के प्रथम ग्रंथी बाबा बुड्ढा साहिब जी के नाम से प्रसिद्ध है। प्राचीनकाल से ही बाबा बुड्ढ़ा जी के दर से लोगों की मुरादें पूरी होती आ रही हैं। परंपरा का निर्वाह आज भी जारी है। इसके अतिरिक्त बच्चों की दस्तारबंदी, नामकरण संस्कार आदि के लिए भी लोग इस दिन का इंतजार करते हैं। हर वर्ष लगभग 50 हजार से अधिक लोग यहां मत्था टेकने के लिए पहुंचते हैं।

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