गढ़वाली के प्रचार में सोशल मीडिया अहम

संवाद सहयोगी, देवप्रयाग: राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर देवप्रयाग में आयोजित मात

By JagranEdited By: Publish:Fri, 22 Feb 2019 05:59 PM (IST) Updated:Fri, 22 Feb 2019 05:59 PM (IST)
गढ़वाली के प्रचार में  सोशल मीडिया अहम
गढ़वाली के प्रचार में सोशल मीडिया अहम

संवाद सहयोगी, देवप्रयाग: राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर देवप्रयाग में आयोजित मातृ भाषा संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि गढ़वाली भाषा के प्रचार प्रसार के आज के दौर में सोशल मीडिया की अहम भूमिका है। गढ़वाली गीत संगीत को देश विदेश तक पहुंचाने में सोशल मीडिया ने सेतु का कार्य किया है।

मुख्य अतिथि आखर समिति श्रीनगर के अध्यक्ष संदीप रावत ने कहा कि गढ़वाली बोली नही भाषा है, क्योंकि यह भाषा के सभी मानकों को पूरा करती है। उन्होंने कहा कि डॉ. गोविन्द चातक, अबोध बंधु बहुगुणा, कन्हैया लाल डंडरियाल एवं हरिदत्त भट्ट 'शैलेश'जैसे साहित्यकारों ने इस भाषा के संरक्षण एवं हस्तांतरण में अहम भूमिका निभायी। उन्होंने कहा कि हमारी नई पीढ़ी का अपनी मातृ भाषा गढ़वाली से विमुख होना ¨चता का विषय है। संगोष्ठी संयोजक डॉ. वीरेंद्र वत्र्वाल ने कहा कि गढ़वाली भाषा पर अभी तक 400 के लगभग पीएचडी हो चुकी हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते प्राचार्य प्रो. केबी सुब्बरायुडु ने कहा कि राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के देशभर मे स्थित विभिन्न परिसरों में वहां की क्षेत्रीय भाषा को भी विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। छात्र दुर्गेश प्रसाद ने पुलवामा शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते कविता सुनाई। जबकि अशोक कुमार ने हास्य कविताएं खूब सराही गई। हिमांशु व मोहित ने हिमाचली नाटिका प्रस्तुत की। व्याकरण प्रवक्ता डॉ. ओम शर्मा ने ब्रज में भक्तिरस की रचना प्रस्तुति की। संगोष्ठी में प्रो. बनमाली विश्वाल, डॉ. आर बालमुर्गन, डॉ. अर¨वद गौड़, डॉ. मुकेश शर्मा, डॉ नितेश, डॉ. प्रफुल्ल, अवधेश बिजल्वाण, विनोद पंडित आदि मौजूद थे।

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