बंटवारे के दौरान जान बचाने को 12 रिश्तेदारों के साथ सहित नदी में कूदे थे ताराचंद, लेकिन बचे केवल दो लोग

Independence Day 2022 विभाजन के दौरान पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं ने भारी यातनाएं और क्रूरता सही। पाकिस्तान के दंगाइयों ने क्रूरता का ऐसा खेल खेला कि 13 साल के मासूम ताराचंद को अपनी मां और अन्य रिश्तेदारों के साथ जान बचाने के लिए किशनगंगा नदी में कूदना पड़ा।

By Anurag uniyalEdited By: Publish:Fri, 12 Aug 2022 11:05 PM (IST) Updated:Sat, 13 Aug 2022 09:58 AM (IST)
बंटवारे के दौरान जान बचाने को 12 रिश्तेदारों के साथ सहित नदी में कूदे थे ताराचंद, लेकिन बचे केवल दो लोग
Independence Day 2022 : नदी में कूद गये थे ताराचंद। फाइल फोटो

अनुराग उनियाल ,नई टिहरी : Independence Day 2022 : पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद में सन 1947 में विभाजन के दौरान पाकिस्तान के दंगाइयों ने क्रूरता का ऐसा खेल खेला कि 13 साल के मासूम ताराचंद को अपनी मां और अन्य रिश्तेदारों के साथ जान बचाने के लिए किशनगंगा नदी में कूदना पड़ा।

हिंदुओं ने भारी यातनाएं और क्रूरता सही

नदी में उनकी मां और अन्य रिश्तेदार तो बह गए। लेकिन, ताराचंद और उनके मामा जिंदा बच गए और किसी तरह जान बचाकर श्रीनगर के शरणार्थी कैंप में पहुंचे और उसके बाद टिहरी गढ़वार आकर बस गए। भारत विभाजन के दौरान पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं ने भारी यातनाएं और क्रूरता सही।

नंदराजोग नई टिहरी बौराड़ी में रहते हैं ताराचंद

विभाजन के दौरान पाकिस्तान से जान बचाकर आए ताराचंद नंदराजोग नई टिहरी बौराड़ी में रहते हैं। 89 साल के ताराचंद अब आंखें खराब होने के कारण देख नहीं पाते। लेकिन, वह मंजर याद कर वह आज भी सिहर उठते हैं। ताराचंद ने दैनिक जागरण से बातचीत में बताया कि वह उस वक्त 13 साल के थे और नौंवी कक्षा में पढ़ते थे।

उनके पिता स्व. गंगाराम की हजारा जिले में कपड़े की दो दुकानें थी और वह काफी संपन्न थे। विभाजन के दौरान उनके पिता किसी काम से श्रीनगर आए थे और वह अपनी मां के साथ पाकिस्तान में ही थे।

उनके घर पर हमला हुआ तो वह अन्य रिश्तेदारों के साथ किसी तरह मुजफ्फराबाद पहुंचे और वहां एक मंदिर में शरण ली। लेकिन, कुछ दिन बाद दंगाइयों को उनकी भनक लग गई और एक दिन उन्होंने हिंदुओं पर हमला कर दिया। तारीख तो याद नहीं। लेकिन, उस दिन वह मुजफ्फराबाद में बहने वाली किशनगंगा नदी किनारे खड़े थे।

इस दौरान अचानक हमला होने पर उनकी मां और उन्होंने अपने अन्य 12 रिश्तेदारों के साथ नदी में छलांग लगा दी। नदी में उनकी मां रामरखी और अन्य 12 रिश्तेदार बह गए। वह और उनके मामा जगतराम ही जिंदा बचे। किसी तरह वह भागकर श्रीनगर शरणार्थी कैंप पहुंचे और वहां से फिर टिहरी में आकर बस गये।

टिहरी में ताराचंद प्रसिद्ध व्यापारी थे। इन दिनों ताराचंद और उनकी पत्नी कुंती देवी बौराड़ी नई टिहरी में रहते हैं। ताराचंद की आंखों से दिखना अब बंद हो गया है और कुंती देवी भी पैरालाइसिस के कारण बिस्तर पर ही रहती हैं।

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