आशा पर टिकी रही पहाड़ की 'आस'

जागरण संवाददाता कोटद्वार कोरोना काल में स्वास्थ्य व्यवस्था की दो अलग तस्वीरें नजर आई। एक अ

By JagranEdited By: Publish:Wed, 02 Jun 2021 04:56 PM (IST) Updated:Wed, 02 Jun 2021 04:56 PM (IST)
आशा पर टिकी रही पहाड़ की 'आस'
आशा पर टिकी रही पहाड़ की 'आस'

जागरण संवाददाता, कोटद्वार :

कोरोना काल में स्वास्थ्य व्यवस्था की दो अलग तस्वीरें नजर आई। एक ओर जहां महानगरों में संक्रमितों के उपचार को चिकित्सकों की कतार लगी हुई थी, वहीं, दूसरी ओर पर्वतीय क्षेत्रों में ग्रामीणों का जीवन पूरी तरह आशा के भरोसे है। गांव में बीमार व्यक्ति की जानकारी स्वास्थ्य विभाग को देना और बीमार के घर दवा पहुंचाने की जिम्मेदारी आशा व आंगनबाड़ी कार्यकत्र्ताओं ने निभाई। ग्रामीणों को कोरोना के प्रति जागरूक करने की जिम्मेदारी भी इन्हीं के सिर है।

5329 वर्ग किलोमीटर में फैले जनपद पौड़ी में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 3481 गांवों में 570342 आबादी रहती है। नगरीय क्षेत्रों की करीब बीस फीसद आबादी को छोड़ दें तो बाकी अस्सी फीसद लोग ग्रामीण क्षेत्रों में बसते हैं। गांवों में बसने वाली जनता के लिए पिछले डेढ़ माह काफी भारी गुजरे। कई घरों में लोग बुखार से पीड़ित थे। अस्पतालों में दवा तक उपलब्ध नहीं थी। कई व्यक्तियों की मौत भी हुई। स्वास्थ्य महकमे के संज्ञान में मामला आया तो आशाओं को ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर जाकर सर्वे करने का फरमान जारी कर दिया गया। आशा कार्यकत्र्ता गांव-गांव पहुंची व सर्वे रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेजी। इसी रिपोर्ट के आधार पर स्वास्थ्य महकमे ने ग्रामीण क्षेत्रों में सैंपलिग शुरू कर दी। परिणाम आए तो महकमे के पैरों तले जमीन खिसक गई। कोई ऐसा गांव न था, जहां कोरोना ने पैर न पसारे हों। आनन-फानन में आशाओं को बीमार ग्रामीणों तक दवा किट पहुंचाने की जिम्मेदारी दे दी गई। कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में कई आशाएं स्वयं ही कोरोना संक्रमित हो गई।

न हुआ बीमा, न मिली प्रोत्साहन राशि

कोरोना काल के प्रथम चरण में सरकार ने कोरोना ड्यूटी कर रहे पैरा मेडिकल स्टाफ को 11 हजार की प्रोत्साहन राशि दी। जिस पर आशाओं ने सरकार से प्रोत्साहन राशि की मांग की। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आशाओं को दस हजार की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा भी की। लेकिन आज तक यह धनराशि आशाओं को नहीं मिल पाई है। कई आशाओं को कोरोना काल में सेवा के दौरान मृत्यु होने पर मिलने वाली बीमा राशि भी नहीं मिली है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि पर्वतीय क्षेत्रों में आशाओं ने अपने दायित्व को बेहतर ढंग से निभाया है। हैरानी की बात यह है कि सरकार आशाओं की सेवाओं कोई महत्व ही नहीं देती। शायद यही कारण है कि आज भी आशाओं की विभिन्न मांगे शासन में लंबित पड़ी हैं।

शिवा दुबे, प्रांतीय अध्यक्ष, आशा कार्यकत्र्ता यूनियन

chat bot
आपका साथी