राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण का मामला फिर गरमाया, राजभवन कूच करेंगे आंदोलनकारी

राज्य आंदोलनकारियों को राजकीय सेवाओं में दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण को असंवैधानिक ठहराने के हाई कोर्ट के आदेश का अनुपालन कराने के लिए शासन ने जिलाधिकारियों निर्देश जारी कर दिए हैं। ऐसे में आरक्षण के आधार पर नौकरी कर रहे राज्य आंदोलनकारियों की नौकरी पर खतरा मंडराने लगा है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Wed, 14 Jul 2021 06:04 AM (IST) Updated:Wed, 14 Jul 2021 06:04 AM (IST)
राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण का मामला फिर गरमाया, राजभवन कूच करेंगे आंदोलनकारी
राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण का मामला फिर गरमाया, राजभवन कूच करेंगे आंदोलनकारी

किशोर जोशी, नैनीताल : राज्य आंदोलनकारियों को राजकीय सेवाओं में दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण को असंवैधानिक ठहराने के हाई कोर्ट के आदेश का अनुपालन कराने के लिए शासन ने जिलाधिकारियों निर्देश जारी कर दिए हैं। ऐसे में आरक्षण के आधार पर नौकरी कर रहे आठ सौ से अधिक राज्य आंदोलनकारियों की नौकरी पर खतरा मंडराने लगा है। उत्तराखंड चिह्नित राज्य आंदोलनकारी मंच ने इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक व कानूनी लड़ाई एक साथ शुरू करने का ऐलान कर डाला है। मंच की ओर से बुधवार 14 जुलाई को राजभवन देहरादून कूच का कार्यक्रम तय है। बता दें कि 2002 में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के प्रयासों से चिह्नित राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में दस फीसद क्षैतिज आरक्षण दिया गया। सात दिन से अधिक समय तक जेल गए आंदोलनकारियों को राजकीय विभागों में नौकरी मिली। इनकी संख्या करीब 830 है।

दरअसल हल्द्वानी निवासी राज्य आंदोलनकारी कमलेश जोशी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर नौकरी की मांग की। दो अगस्त 2011 को जस्टिस तरुण अग्रवाल की एकलपीठ ने शासनादेश को ही निरस्त कर दिया। कोर्ट ने बिना नियमावली के आरक्षण को फैसले का आधार बनाया तो सरकार ने नियमावली बना दी। इसी बीच कमलेश जोशी ने फिर याचिका दायर कर दी। जब एकलपीठ को शासनादेश खारिज करने का संवैधानिक सवाल उठा तो एकलपीठ ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए मुख्य न्यायाधीश को इसे जनहित याचिका के रूप में सुनवाई का पत्र भेज दिया गया।

18 अगस्त 2011 को चीफ जस्टिस ने इसे पीआईएल में कन्वर्ट कर दिया। 28 अगस्त 2013 को हाई कोर्ट की खंडपीठ ने राज्य आंदोलनकारियों को राउडी या अराजक तत्व कह दिया तो अधिवक्ता रमन शाह ने हस्तक्षेप याचिका दायर कर राउडी शब्द हटाने की मांग की। 2015 में हाई कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया व जस्टिस यूसी ध्यानी की खंडपीठ ने राउडी शब्द हटा दिया। उसी साल राज्य विधानसभा में राज्य आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण देने का अधिनियम पारित हो गया। जिसे फिलहाल तक राजभवन से मंजूरी नहीं मिल सकी है।

राजभवन की मुहर के बगैर भी अवैध नहीं है अधिनियम

हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता व अधिवक्ता रमन शाह के अनुसार 1992 में सुप्रीम कोर्ट एक महत्वपूर्ण मामले में साफ कर चुका है कि राज्यपाल की अनुमति ना भी मिले तो विधान सभा में पारित अधिनियम अवैध नहीं हो सकता। साथ ही एक्ट को आज तक किसी ने कोर्ट में चुनौती नहीं दी, लिहाजा अधिनियम प्रभावी है और क्षैतिज आरक्षण संवैधानिक बना हुआ है। किसी ने नियमावली को भी चुनौती नहीं दी, ना ही सरकार ने इसे वापस लिया है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के दो जजों की खंडपीठ में एक ने आरक्षण को सही, दूसरे ने असंवैधानिक करार दे दिया, फिर फैसले के लिए तीसरे जज की राय ली गई तो उन्होंने राय देने की बजाय आरक्षण को असंवैधानिक ठहराने का फैसला दे दिया। इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की गई है। जिस पर राज्य के मुख्य सचिव समेत जिलाधिकारियों से जवाब मांगा गया है। अधिवक्ता शाह के अनुसार जब सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन है तो शासन कैसे हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन को निर्देश दे सकता है।

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