रामपुर तिराहा कांड बरसी: पुलिस और प्रशासन ने काली रात में अमानवीयता की हदें कर दी थीं पार, पहाड़ का बहा था खून

Rampur Tiraha incident anniversary नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन तो हो गया मगर उस काली रात में मिला जख्म आज तक नहीं भरा जा सका। निचले दर्जे से लेकर शीर्ष अदालत तक यह मामला पहुंचा सीबीआई जांच भी हुई मगर पीड़ितों को न्याय नहीं मिल सका।

By Rajesh VermaEdited By: Publish:Sat, 01 Oct 2022 04:31 PM (IST) Updated:Sat, 01 Oct 2022 04:31 PM (IST)
रामपुर तिराहा कांड बरसी: पुलिस और प्रशासन ने काली रात में अमानवीयता की हदें कर दी थीं पार, पहाड़ का बहा था खून
आंदोलनकारियों को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर रोक लिया गया था।

हल्द्वानी, राजेश वर्मा : Rampur Tiraha Kand Anniversary : रामपुर तिराहा...। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में स्थित यह जगह महज एक स्थान नहीं है। यह उत्तराखंड का इतिहास है। यूपी से अलग होकर अलग राज्य बनने की दास्तान है। जहां हुई दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे देश का झकझोर दिया था। राजनेताओं और उनकी अफसरशाही ने इसी जगह पर उत्तराखंडियों को अलग राज्य (Uttarakhand state agitation) की मांग पर क्रूरता का वह खेल खेला, जिसे यादकर आज भी यहां के हर निवासी की रूह कांप जाती है।

दो अक्टूबर 1994 की घटना

बात 1994 की है। यह वह दौर था जब यूपी से अलग राज्य की मांग लेकर राज्य आंदोलन संघर्ष समिति (UTtarakhand State Movement Struggle Committee) का गठन हो चुका था। बच्चे से लेकर बूढ़े तक इस आंदोलन से जुड़ चुके थे। हर तरफ बाड़ी-मडुआ खाएंगे उत्तराखंड बनाएंगे’, अपना उत्तराखंड बनाएंगे के नारे गूंज रहे थे। इस दौरान दिन आया एक और दो अक्टूबर की रात का। हर तरफ अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की जयंती मनाने की तैयारियां चल रही थीं और अलग राज्य की मांग लेकर उत्तराखंड के अलग-अलग जगहाें से इकट्ठा हुए लोग एक साथ दिल्ली कूच कर रहे थे। मगर यूपी सरकार ने इन्हें दिल्ली तक पहुंचने से रोकने की योजना बना रखी थी। ऐसे में आंदोलनकारियों को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर रोक लिया गया।

पुलिस ने चलाई थी गोली, महिलाओं से हुआ था दुष्कर्म

दिल्ली जाने से रोकने से आंदोलनकारी भड़क गए। पहाड़ से पहुंचे भारी संख्या लोग एक ही जगह पर इकट्ठा हुए तो प्रशासन, पुलिस के साथ उनका संघर्ष बढ़ गया। इस पर पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। जिसमें गोली लगने से छह लोग मारे गए। पुलिस ने लोगों को खदेड़ने के लिए क्रूरता से लाठीचार्ज भी कर दिया। इससे भगदड़ मची तो कई जख्मी भी हुए। इससे भी ज्यादा बदसलूकी हुई महिला आंदाेलनकारियों के साथ। उस रात पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के सामने कई महिलाओं के साथ दुष्कर्म जैसी हैवानियत हुई। पुलिस की फायरिंग, दुष्कर्म जैसी घटनाओं से रात और काली हो गई। यह सब कुछ रात भर चलता रहा। सुबह हाेते-होते हर तरफ लाशें, घायल लोग और जलती गाड़ियां ही दिख रही थीं। धीरे-धीरे ये खबर पहाड़ के साथ ही पूरे देश में फैल गई और आग और भड़क गई।

किसी आरोपी को नहीं मिली सजा

इस घटना से आंदोलन और तेज हो गया। बाद में छह साल बाद नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य (Uttarakhand state) का गठन तो हो गया, मगर उस रात मिला जख्म आज तक नहीं भर सका। इस पूरे कांड में तत्कालीन डीएम से लेकर कई अधिकारियों को आरोपी बनाया गया, मगर किसी भी दोषी को सजा ही नहीं हो सकी। निचले दर्जे की अदालत से लेकर देश के शीर्ष अदालत तक यह मामला पहुंचा, मगर पीड़ितों को न्याय नहीं मिल सका। सीबीआई जांच के बाद भी किसी भी आरोपी को दोषी साबित नहीं किया जा सका।

गोलीबारी में ये हुए थे शहीद

देहरादून नेहरु कालोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी अजबपुर निवासी राजेश लखेड़ा ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार भानियावाला निवासी राजेश नेगी
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