पर्यावरण के सजग प्रहरी 81 वर्षीय सतवाल अब तक रोप चुके हैं 50 हजार से अधिक पौधे, रातभर जागकर करते हैं इनकी सुरक्षा

लगभग 12 वर्ष पूर्व हिमालयन शोध संस्थान कटारमल से प्रशिक्षण लेकर उन्होनें पूरे क्षेत्र में बांज बुरांश कन्नौव क्वराव बेकू आदि के पचास हजार से अधिक वृक्षों का रोपण किया। कुमाऊं मंडल विकास निगम ने सतवाल की देखरेख में 19 लाख चाय के पौध तैयार किए गए।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Sat, 16 Jan 2021 09:45 AM (IST) Updated:Sat, 16 Jan 2021 09:45 AM (IST)
पर्यावरण के सजग प्रहरी 81 वर्षीय सतवाल अब तक रोप चुके हैं 50 हजार से अधिक पौधे, रातभर जागकर करते हैं इनकी सुरक्षा
जंगल में बाहरी व्यक्ति का जाना तो मना है ही साथ ही यहां से लकड़ी काटना भी सख्त मना है।

जागरण संवाददाता, भीमताल : भीमताल से मात्र पांच किमी की दूरी पर नल दमयंती ताल चारों और घने जंगल से घिरा हुआ है। झील की चारों ओर सफाई ऐसी कि मानो रोज बड़ी संख्या में मजदूर आदि इस झील की सफाई करते हों। पर यह काम करते हैं 81 वर्षीय हरेन्द्र सिंह सतवाल। झील संरक्षण का ऐसा जोश कि सवेरे तीन बजे उठकर घर के पास झील के चक्कर लगाकर झील का मुआयना करना उनके रोज के कार्यों में शुमार है।

विकासखंड भीमताल के ग्राम सभा भक्त्यूड़ा में सन् 12 जुलाई 1936 में जन्मे सतवाल ने वर्ष 1955 से नल दमंयती झील के संरक्षण का बेड़ा उठाया हुआ है। धार्मिक मान्यता वाली झील के किनारे जल देवी के मंदिर में मौनी बाबा सतवाल के गुरु रहे हैं। उनसे प्रेरणा लेकर पर्यावरण संरक्षण की ओर प्रेरित रहे सतवाल अब तक पचास हजार से भी अधिक पेड़ों का रोपड़ कर चुके हैं। मौनी बाबा ने वर्ष 1908 से लेकर 1928 तक विभिन्न स्थानों में 11 मंदिरों की स्थापना की इसके बाद 11 वर्ष मौन रखा।

लगभग 12 वर्ष पूर्व हिमालयन शोध संस्थान कटारमल से प्रशिक्षण लेकर उन्होनें शोध संस्थान के सहयोग से पूरे क्षेत्र में बांज, बुरांश, कन्नौव, क्वराव, बेकू आदि के पचास हजार से अधिक वृक्षों का रोपण किया। कुमाऊं मंडल विकास निगम ने नल दमयंती ताल के किनारे ही सतवाल की देखरेख में 19 लाख चाय के पौध तैयार किए गए। सतवाल को जब कोई झील किनारे गंदगी करता दिखाई देता है तो उसको इसके दुष्प्रभाव के बारे में बताते हैं। वहीं कोई व्यक्ति पेड़ों को क्षति पहुंचता हुए दिखता है तो पूरे गांव को वे एकत्र कर देते हैं। उनकी सजगता के कारण आज झील के चारों और हरियाली देखते ही बनती है।

सतवाल अपने पैसे से आज तक नल दमयंती झील का संरक्षण करते आए हैं। उनकी मुहिम में लगभग पूरी ग्राम सभा सहयोग देती है। कभी कभी ग्रामीणों के साथ पूरे क्षेत्र में सफाई अभियान भी चलाते हैं। आज तक वृद्धावस्था पेंशन नहीं लेने वाले सतवाल योग और व्यायाम के लिये भी युवकों को प्रेरित करते हैं। उनके जीवन का लक्ष्य है कि नल दमंती ताल को संरक्षित कर सके। सतवाल झील से लगातार हो रहे पानी के रिसाव से खासे खिन्न हैं। अवगत कराते हैं कि लगभग आठ फिट गहरी झील से लगातार किनारे से पानी का रिसाव हो रहा है जिससे झील की मछलियां भी बह गई हैं और रिसाव के कारण झील में संकट है।

अपनी निजी भूमि में भी बनाया है जंगल

पेड़ों के प्रति लगाव और पर्यावरण के प्रति सजगता के चलते भक्त्यूड़ा ग्राम सभा में सतवाल जी ने अपनी एक हैक्टेयर निजी भूमि में अपने प्रयासों से एक खासा जंगल बना लिया है। जंगल इतना घना है कि जंगली जानवर काकड़ आदि भी इसमें दिखाई देते हैं। जंगल में बाहरी व्यक्ति का जाना तो मना है ही साथ ही यहां से लकड़ी काटना भी सख्त मना है।

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