वीरान गांवों में गूंजेगी लोकसंगीत की धुन

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : रोजी-रोटी के लिए अपनी माटी से दूर जाने की मजबूरी। बच्चों को अच्छे स्कूल

By JagranEdited By: Publish:Mon, 24 Apr 2017 01:00 AM (IST) Updated:Mon, 24 Apr 2017 01:00 AM (IST)
वीरान गांवों में गूंजेगी लोकसंगीत की धुन
वीरान गांवों में गूंजेगी लोकसंगीत की धुन

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : रोजी-रोटी के लिए अपनी माटी से दूर जाने की मजबूरी। बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाने की चिंता और इलाज के लिए बेहतर सुविधाओं की जरूरत। यही वजह रही कि पहाड़ से निकलकर परिवार ही दूर शहरों में बस गया। पहाड़ के गांव वीरान होने लगे, लेकिन दूर जाने के बाद भी अपनी माटी से प्रेम कम नहीं हुआ। रग-रग में बसी परंपराएं व संस्कृति से लगाव पहले जैसा है। पद, प्रतिष्ठा हासिल कर लेने के बाद मुंबई में रहने वाले कुछ प्रवासी उत्तराखंडियों ने अनूठी पहल शुरू की है। इस पहल से गांवों से ही निकली गीत-संगीत की धुन फिर से वीरान पड़े गांवों में गूंजेगी। इस संगीत के जरिये विकास के साथ ही वीरानगी भी दूर होगी।

इन प्रवासियों ने बागेश्वर से 30 किलोमीटर दूर खुनौली ग्राम सभा को चुना है। इस गांव के रहने वाले देवकीनंदन कांडपाल कई साल पहले मुंबई में बस गए थे। देवी-देवताओं की पूजा के लिए कभी-कभार पहुंचते, लेकिन गांवों की वीरानगी देख दुखी थे। उन्होंने कई प्रवासी लोगों से संपर्क किया तो लोग गांवों में कुछ नया करने को तैयार हो गए। उन्होंने खुनोली महोत्सव मंडल बनाया। आयोजन के लिए छह मई की तिथि निर्धारित की है। वहां पर पहले चरण में शानदार महोत्सव होगा, जिसमें लोकगायक पप्पू कार्की, जीतू तोमक्याल समेत कई लोक कलाकार कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। दिल्ली में बस चुके सुप्रसिद्ध लोकगायक शिवदत्त पंत की टीम भी पहुंचेगी। दुर्गम गांव में इस आयोजन के लिए कलाकार भी खुद ही पहल कर रहे हैं। कांडपाल बताते हैं कि महोत्सव हम मुंबई, दिल्ली व अन्य शहरों में करते आए हैं। लोकगीत-संगीत का लुत्फ उठाते हैं, लेकिन जहां इस गीत-संगीत का उदय हुआ, उसे भूल गए। वीरान पड़े गांवों के चंद लोगों में भी उत्साह नहीं रहा। इस बात की मन में टीस सी रह गई। इसलिए सोचा कि क्यों न गांवों में ही आयोजन किया जाए। इस महोत्सव के जरिये प्रवासी लोग वहां पहुंचेंगे। गांव के विकास के लिए काम करेंगे। इसके लिए कई लोग सहमत हैं। फिलहाल इसकी शुरुआत खुनौली से कर दी है। कांडपाल ने बताया, इसके बाद अन्य ग्रामसभाओं में इसका विस्तार किया जाएगा।

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बागेश्वर के 910 गांवों में 10073 घर हो गए खाली

पहाड़ से पलायन आम हो गया। इसके पीछे तमाम कारण हैं। बागेश्वर के ही 910 गांवों में से 10073 घरों में ताला लग गया है। कांडपाल ने बताया कि लोग इन घरों में लौटें और वहां उनके सुविधाएं उपलब्ध मिल सकें। इस महोत्सव के जरिये प्रवासी पहल करेंगे। साथ ही मुख्यमंत्री व मंत्रियों से भी बात की जाएगी।

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