नियमित फैकल्टी का मुद्दा चुनाव के बाद हवा

By Edited By: Publish:Sun, 31 Aug 2014 06:51 PM (IST) Updated:Sun, 31 Aug 2014 06:51 PM (IST)
नियमित फैकल्टी का मुद्दा चुनाव के बाद हवा

जागरण संवाददाता, रुड़की: शहर के अधिकांश डिग्री कॉलेजों में स्ववित्त पोषित कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या काफी अधिक है, लेकिन यहां शिक्षक नियमित नहीं होते। छात्रसंघ चुनाव में यह मुद्दा जोर-शोर से उठता है कि कॉलेज प्रशासन पर नियमित फैकल्टी के लिए दबाव बनाया जाएगा, लेकिन चुनाव होते ही यह मुद्दा गायब हो जाता है।

दरअसल, डिग्री कॉलेजों में सरकारी सीटें गिनी-चुनी हैं, जबकि स्ववित्त पोषित सीटों की संख्या अधिक है। कई कॉलेज तो ऐसे हैं, जहां सेल्फ फाइनेंस की सीट दोगुनी हैं। प्रबंधकीय व्यवस्था के तहत शिक्षकों की तैनाती होती हैं, डिग्री कॉलेज में गिने-चुने शिक्षकों को छोड़ दें तो शेष शिक्षक एक साल भी छात्रों को नहीं पढ़ा पाते। छात्रनेता अंकुर वर्मा व जितेंद्र ने बताया कि कभी तो ऐसा भी हुआ है कि तीन महीने या चार महीने में दूसरी फैकल्टी आकर पढ़ाना शुरू कर देती हैं। इसकी वजह से स्टूडेंट्स की पढ़ाई बाधित होती हैं। छात्रसंघ के चुनाव में प्रत्याशी व छात्र संगठन वादा करते हैं कि कॉलेज में नियमित फैकल्टी के लिए दबाव बनाया जाएगा, लेकिन चुनाव होने के बाद यह मुद्दा ही गायब हो जाता हैं। पांच साल से तो यही स्थिति बनी हुई है।

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सेल्फ फाइनेंस व्यवस्था के तहत संचालित कक्षाओं में फैकल्टी कॉलेज को ही रखनी होती है। मैनेजमेंट की कोशिश रहती है कि कम रुपये में शिक्षक मिल जाए, इसलिए ऐसा होता है। कई बार दूसरी वजह भी होती है।

प्रो. एलजे सिंह प्रभारी कुलपति गढ़वाल विश्वविद्यालय

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