टिहरी जनपद में एक साल में मनाई जाती है तीन-तीन दीपावली

कार्तिक की दिवाली जहां पूरे देश में मनाई जाती है, वहीं टिहरी जिले में कार्तिक की दिवाली के अलावा इगास व मंगशीर की दिवाली भी धूमधाम से मनाई जाती है।

By BhanuEdited By: Publish:Wed, 07 Nov 2018 01:23 PM (IST) Updated:Wed, 07 Nov 2018 10:05 PM (IST)
टिहरी जनपद में एक साल में मनाई जाती है तीन-तीन दीपावली
टिहरी जनपद में एक साल में मनाई जाती है तीन-तीन दीपावली

देहरादून, [जेएनएन]: टिहरी जनपद में एक साल में तीन-तीन दिवाली मनाई जाती है। कार्तिक की दिवाली जहां पूरे देश में मनाई जाती है, वहीं जिले में कार्तिक की दिवाली के अलावा इगास व मंगशीर की दिवाली भी धूमधाम से मनाई जाती है।

टिहरी जनपद में जौनपुर, प्रतापनगर, भिलंगना आदि जगह कार्तिक की दिवाली के अलावा इगास व मंगशीर की दिवाली भी मनाई जाती है। कई जगह तो इगास व मंगशीर की दिवाली धूमधाम से मनाई जाती है। 

कार्तिक की दिवाली के ग्यारह दिन बाद इगास दिवाली मनाई जाती है। यह दिवाली जिला मुख्यालय सहित चंबा, प्रतापनगर और आसपास के क्षेत्रों में धूमधाम से मनाई जाती है। इस पर्व पर बाहर रहने वाले लोग भी गांव पहुंचते हैं। 

इसके अलावा मंगशीर की दिवाली भी जिले के भिलंगना, जौनपुर व प्रतापनगर आदि कई जगह भव्य ढंग से मनाई जाती है। मंगशीर की दिवाली कार्तिक की दिवाली के ठीक एक माह बाद मनाई जाती है। बूढ़ाकेदार क्षेत्र में तो मंगशीर की दिवाली धूमधाम से मनाई जाती है।

बूढ़ाकेदार में दो दिन तक मंगशील की दिवाली मनाई जाती है और दिवाली के बाद तीन दिन तक गुरु कैलापीर देवता का मेला आयोजित होता है। कहा जाता है कि मंगशीर माह में गुरु कैलापीर देवता हिमाचल से उत्तराखंड भ्रमण पर आए थे। पैदल भ्रमण करते हुए उन्हें बूढ़ाकेदार का ऊपरी क्षेत्र अच्छा लगा और देवता ने यहीं पर निवास करने का निर्णय लिया। देवता के निर्णय के बाद यहां पर लोगों ने छिलकों को जला कर दिवाली मनाई। करीब ढाई सौ साल पूर्व से लोग यहां मंगशीर की दिवाली मनाते आ रहे हैं। 

इसके अलावा जौनपुर व उत्तरकाशी का गाजणा कठूड़ में भी मंगशीर की दिवाली मनाई जाती है। मंगशीर की दिवाली पर रोजगार क तलाश में बाहर रहने वाले लोग भी गांव पहुंचते हैं। कार्तिक की दिवाली के अलावा जिले में इगास व मंगशीर की दीपावली भी धूमधाम से मनाई जाती है।

दीपावली पर उत्तरकाशी में खेला भैलो

उत्तरकाशी में आदर्श रामलीला समिति की ओर से दीपदान व भैलो कार्यक्रम आयोजित किया गया। रामलीला मंच पर दीप प्रज्वलित किए गए तथा शहीदों को याद किया गया। 

रामलीला मंच के पास सबसे पहले लोगों ने दीये जलाए तथा शहीदों को याद किया। जिसके बाद गीत और भैलो कार्यक्रम आयोजित किया गया। ढोल की थाप पर लोगों ने भैलो खेला। उड़द की दाल की पकोड़ियां बनाई गई। 

इस मौके पर रामलीला समिति के महासचिव भूपेश कुडियाल, अध्यक्ष रमेश चौहान, जयेन्द्र सिंह पंवार, रुकम सिंह रमोला, ब्रह्मानंद नौटियाल अजय पुरी, जलमा राणा, पुष्पा बहुगुणा, जगदंबा चौहान, गीता पयाल आदि मौजूद थे। 

विश्वनाथ मंदिर में जलाए 2100 दीये 

दीपावली के पर्व पर विश्वनाथ मंदिर में वर्षों से चली आ रही दीया जलाने की परंपरा अभी भी बरकरार है। दीपावली पर बच्चों ने बड़े उत्साह से पहले रंगोली तैयार की और फिर दिये सजाने का काम शुरू हुआ। पूरे परिसर में शाम के समय 21 सौ दीये जलाए गए। 

उत्तरकाशी में स्थित प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर पौराणिक मंदिरों में एक है। इस पूरे क्षेत्र की आस्था का यह प्रमुख केंद्र है। गंगोत्री से दर्शन कर लौटने वाले श्रद्धालु भी इस मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। प्रकाश पर्व पर इस मंदिर की खास परंपरा रही है। हर वर्ष दीपावली में स्थानीय लोग मिलकर 21 सौ दीये लक्ष्मी पूजन के पहले दिन जलाते हैं। 

इस बार भी लोगों में दीये जलाने का खासा उत्साह रहा। स्कूली छात्राओं ने पहले रंगोली तैयार की। फिर स्थानीय लोगों ने 21 सौ दीये जलाकर पूरे परिसर को प्रकाशमय बना दिया। महंत अजय पुरी ने बताया कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में छोटी दीपावली पर्व पर यह परंपरा वर्ष से चली आ रही है। इस परंपरा को आगे बढ़ाया जा रहा है। लोगों ने अधिक से अधिक संख्या में अपने घरों में भी दीये जलाएं। जिससे पर्यावरण भी स्वच्छ व साफ रह सके। साथ ही शहीदों की याद में उन्हें दीये समर्पित किए गए हैं और श्रद्धांजलि दी गई।

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