चार कॉलेज, 31 हजार छात्र और शिक्षक सिर्फ 283

अनिल उपाध्याय, देहरादून अदालत ने गुणवत्तापरक उच्च शिक्षा के लिए कॉलेजों में प्रवेश पर तो अंकुश लगा

By Edited By: Publish:Fri, 28 Nov 2014 01:01 AM (IST) Updated:Fri, 28 Nov 2014 01:01 AM (IST)
चार कॉलेज, 31 हजार छात्र और शिक्षक सिर्फ 283

अनिल उपाध्याय, देहरादून

अदालत ने गुणवत्तापरक उच्च शिक्षा के लिए कॉलेजों में प्रवेश पर तो अंकुश लगा दिया, लेकिन हकीकत में अब भी बड़े सुधार की दरकार है। राजधानी के तमाम कॉलेज शिक्षकों और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। स्थिति यह है कि राजधानी के चार बड़े कॉलेजों में लगभग 31 हजार छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं और इनके लिए शिक्षक केवल 283 ही तैनात हैं। पुराने मानकों के हिसाब से 199 पद खाली हैं, लेकिन यूजीसी के नए मानकों का पालन हो तो 500 शिक्षकों की जरूरत है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने हाल ही में देशभर के तमाम विश्वविद्यालयों को पत्र प्रेषित कर आगामी सत्र से पहले तमाम शिक्षक पदों पर नियमित नियुक्ति के आदेश दिए हैं। यूजीसी का तर्क था कि बिना शिक्षकों के रोजगारपरक और गुणवत्तापरक शिक्षा का सपना पूरा नहीं किया जा सकता। वहीं, राजधानी देहरादून में इस मामले में तस्वीर बेहद बुरी है। उच्च शिक्षा में जहां यूजीसी प्रत्येक 40 छात्रों पर एक शिक्षक की पैरवी करता है, वहीं राज्य के सबसे बड़े कॉलेज में 200 छात्रों पर भी एक शिक्षक नहीं है। कमोबेश यही स्थिति राजधानी के तीन अन्य कॉलेजों की भी है। धरातलीय स्थिति यह है कि किसी भी कॉलेज में मानकों पर तो दूर, सृजित पदों के सापेक्ष भी नियुक्ति नहीं हो पाई। पहली पाली की स्थिति तो पहले ही खराब थी। उस पर उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में सरकार ने सांध्यकालीन कक्षाओं का विकल्प दिया, लेकिन उसमें भी शिक्षकों की तैनाती विवाद में फंस गई। अब स्थिति यह है कि एक मात्र कॉलेज में सांध्यकालीन में प्रवेश हो पाए। लेकिन, वह भी पहली पाली के साथ अध्ययन को मजबूर हैं।

आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य के सबसे बडे़ डीएवी पीजी कॉलेज में 12450 छात्रों के प्रवेश की आधिकारिक अनुमति है। हालांकि, मौजूदा सत्र में उच्च न्यायालय के दखल से पहले औसतन 32 हजार छात्र कॉलेज में पढ़ रहे थे। इस सत्र में पहले वर्ष के प्रवेश पर अंकुश लगा है, लेकिन बीते वर्ष प्रवेश ले चुके निर्धारित से अधिक छात्र अब भी कॉलेज का हिस्सा हैं यानी लगभग 20-22 हजार छात्र। शिक्षकों की बात करें तो केवल 134 शिक्षक फिलहाल कॉलेज के पास हैं। इनमें से कुछ के अवकाश और अन्य प्रशासनिक कार्यो में व्यस्त रहने पर औसतन 100-110 शिक्षक ही छात्रों को मिल पाते हैं।

एमकेपी पीजी कॉलेज में लगभग 3000 छात्राएं हैं और यहां 30 शिक्षक तैनात और 28 पद खाली हैं। इसी तरह एसजीआरआर पीजी कॉलेज में लगभग 3500 छात्र-छात्राओं के प्रवेश हैं और यहां 65 शिक्षक तैनात और 11 पद आरक्षित श्रेणी के खाली हैं। डीबीएस पीजी कॉलेज में स्थिति थोड़ी बेहतर है, लेकिन इसे भी आदर्श नहीं माना जा सकता। पहली पाली में 2800 छात्र-छात्राओं का प्रवेश है और इनके लिए फिलहाल केवल 54 शिक्षक तैनात हैं।

15 साल से नहीं हुई नियुक्ति

छात्र संख्या के लिहाज से राज्य के सबसे बड़े कॉलेज में 1999 से बाद से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाई। स्वीकृत सीटों के सापेक्ष यूजीसी मानकों के अनुसार शिक्षकों की बात करें तो डीएवी पीजी कॉलेज में 12450 छात्रों के लिए कम से कम 311 शिक्षकों की तैनाती होनी चाहिए, जबकि अभी केवल 134 शिक्षक हैं। 1999 में कॉलेज में187 शिक्षक तैनात थे और शिक्षा निदेशालय ने उस वक्त 93 और शिक्षकों की जरूरत बताई थी, जिस पर अब तक नियुक्तियां नहीं हो पाई। इस बीच कई शिक्षक सेवानिवृत्त हो गए और अब केवल 134 ही शेष बचे हैं।

राजधानी के कॉलेजों की स्थिति

कॉलेज-छात्र-शिक्षक-रिक्त पद

डीएवी पीजी-22000-134-146

एसजीआरआर-3500-65-11

एमकेपी पीजी-3000-30-28

डीबीएस पीजी-2800-54-14

शिक्षकों की भारी कमी है। सरकार से पहले अनुमति नहीं मिल पाई और अब एक मामला न्यायालय में है। अभी नियुक्तियों को लेकर कुछ भी कहना मुश्किल है।

डॉ. देवेंद्र भसीन, प्राचार्य, डीएंवी पीजी कॉलेज

स्वीकृत पदों में से अभी 14 पद रिक्त हैं। सांध्यकालीन कक्षाओं पर अभी मामला स्पष्ट नहीं हो पाया है, इसलिए कोई तैनाती नहीं की जा सकी है।

डॉ. ओपी कुलश्रेष्ठ, प्राचार्य, डीबीएस पीजी कॉलेज

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