उत्तराखंड के जंगलों की सेहत बिगाड़ रही हैं सात वनस्पतियां
अनुपयोगी और पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक सात तरह की वनस्पति के हमले से उत्तराखंड के जंगल बेहद 'त्रस्त' हैं। विश्व धरोहर फूलों की घाटी तक इनके निशाने पर हैं।
देहरादून, [केदार दत्त]: लैंटाना, गाजरघास व कालाबांसा पहले ही नाक में दम किए हुए हैं और अब खौफ की नई चौकड़ी ने 'बला', 'वासिंगा' 'बासुकि' व 'अमेला' के रूप में देवभूमि उत्तराखंड के जंगलों में डेरा जमा लिया है। विश्व प्रसिद्ध जिम कार्बेट और राजाजी नेशनल पार्क के साथ ही विश्व धरोहर फूलों की घाटी तक इनके निशाने पर हैं। वन महकमा हैरान-परेशान है कि आखिर खौफ के इन सात सायों से कैसे निजात मिले। हालांकि, इन अनुपयोगी वनस्पतियों के उन्मूलन की कोशिशें वर्ष 2010 से चल रही हैं, लेकिन जिस प्रकार से इनका फैलाव हो रहा है उसने पेशानी में बल डाले हुए हैं।
लैंटाना (कुर्री) जैसी अनुपयोगी और पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक वनस्पति के हमले से उत्तराखंड के जंगल बेहद 'त्रस्त' हैं। एक हजार मीटर तक का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा, जहां इस झाड़ी ने चिंताजनक ढंग से पैर पसार पारिस्थितिकी के लिए खतरा पैदा न किया हो।
इसके साथ ही कालाबांसा और गाजरघास जैसी घातक वनस्पतियों ने अलग से डेरा डाला हुआ है सो अलग। इनकी तरह दूसरे पौधों को अपने इर्द-गिर्द न पनपने देने वाली 'बला' (सीडाकार्डियो फोलिया), 'वासिंगा' (गोगोस्टीमोन बैंगालीया) व 'वासुकि' (एढाटोडा वासिका) जैसी वनस्पतियों ने भी जंगलों पर हमला बोला है।
इनके सबके निशाने पर विश्व प्रसिद्ध कार्बेट और राजाजी नेशनल पार्क भी आए हैं। हालांकि, ये वनस्पतियां पहले भी होती थीं, लेकिन अन्य के साथ। अब इनके पैचेज साफ दिखाई देने लगे हैं। कार्बेट में ढिकाला व झिरना और राजाजी में चीला, धौलखंड, कांसरो व रामगढ़ क्षेत्रों में जैव विविधता के लिए खतरनाक इन पौधों की दस्तक अधिक देखने में आई है। राजाजी पार्क में 48 और कार्बेट में 45 फीसदी के आसपास हिस्से में लैंटाना का डेरा है और अब इन नई मुसीबतों ने परेशानी बढ़ा दी है।
ऐसा ही हाल पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों का भी है। यही नहीं, उच्च हिमालयी क्षेत्र के कुछ इलाके अमेला या नटग्रास (पॉलीगोनम) की जद में है। साढ़े ग्यारह हजार फुट की ऊंचाई पर विश्व धरोहर फूलों की घाटी में दो किलोमीटर से अधिक के दायरे में अमेला का फैलाव इसकी तस्दीक करता है। यह वनस्पति भी अपने आसपास दूसरे पौधों को नहीं पनपने देती।
जैव विविधता के लिए खतरनाक
उत्तराखंड के अपर मुख्य वन संरक्षक डॉ.धनंजय मोहन के मुताबिक मैदान से लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्र तक अनुपयोगी वनस्पतियों का फैलाव जैव विविधता के लिए खतरनाक है। इन पर अंकुश लगाने के लिए ऐसी प्रजातियों को उखाड़कर नष्ट करने के प्रयास किए जा रहे हैं। अब इसमें और तेजी लाई जाएगी।
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