आरटीई के तहत दाखिलों में नहीं लगेगा अड़ंगा: पांडे

उत्तराखंड में शिक्षा का अधिकार (आरटीइ) अधिनियम के अंतर्गत कमजोर और वंचित वर्गो के बच्चों को निजी विद्यालयों में दाखिले मिलने में लग रहा अड़ंगा दूर होगा।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 14 Jun 2019 09:54 PM (IST) Updated:Fri, 14 Jun 2019 09:54 PM (IST)
आरटीई के तहत दाखिलों में नहीं लगेगा अड़ंगा: पांडे
आरटीई के तहत दाखिलों में नहीं लगेगा अड़ंगा: पांडे

राज्य ब्यूरो, देहरादून

उत्तराखंड में शिक्षा का अधिकार (आरटीइ) अधिनियम के अंतर्गत कमजोर और वंचित वर्गो के बच्चों को निजी विद्यालयों में दाखिले मिलने में लग रहा अड़ंगा दूर होगा। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राज्य को उक्त मद में की जाने वाली प्रतिपूर्ति का भरोसा दिया है। इस मद में राज्य को 140 करोड़ बकाया है। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने कहा कि बच्चों को दाखिले में दिक्कत न आए, इस बारे में जिलों के मुख्य शिक्षा अधिकारियों को कार्यवाही के निर्देश दिए गए हैं।

आरटीई अधिनियम के तहत राज्य के निजी विद्यालयों में कमजोर और वंचित वर्गो के 25 फीसद बच्चों को दाखिला देने का प्रावधान है। इस प्रावधान का पालन करते हुए अब तक बड़ी संख्या में बच्चों को इन विद्यालयों में दाखिला दिलाया जा चुका है। हालांकि विद्यालयों की बड़ी रकम सरकार पर बकाया है। यह राशि अब तक करीब 140 करोड़ हो चुकी है। राज्य सरकार इस धनराशि की पूर्ति की मांग केंद्र से कर रहा है। एमएचआरडी के साथ इस मुद्दे को कई दफा उठाया जा चुका है। बीते वर्ष केंद्र सरकार की ओर से बकाया 60 करोड़ की राशि राज्य को दी थी।

शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने बताया कि आरटीइ के तहत उक्त धनराशि की प्रतिपूर्ति की मांग कई राज्यों से उठी है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से मुलाकात में उन्होंने यह मुद्दा उठाया था। केंद्रीय मंत्री ने बकाया भुगतान का भरोसा दिया है। उन्होंने नई शिक्षा नीति में हिमालयी राज्यों को सुविधाएं देने का आश्वासन भी दिया है। निजी विद्यालयों में आरटीइ के तहत दाखिले में लग रहे अड़ंगे के बारे में पूछे जाने पर शिक्षा मंत्री ने कहा कि विद्यालयों को बकाया राशि की प्रतिपूर्ति की जाएगी। इस संबंध में मुख्य शिक्षा अधिकारियों और खंड शिक्षाधिकारियों को कार्यवाही के निर्देश दिए गए हैं।

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उत्तराखंड में काम करना है तो जाना होगा दुर्गम

शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में तैनाती को कालापानी जैसी सजा समझने की प्रवृत्ति दुर्भाग्यपूर्ण है। उत्तराखंड में काम करने के इच्छा रखने वाले शिक्षकों को दुर्गम क्षेत्रों में काम करने को तैयार रहना होगा। तबादला एक्ट की मूल भावना भी यही है।

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