बिजली व्यवस्था के निजीकरण का विरोध, आंदोलन की चेतावनी
उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन ने बिजली व्यवस्था को निजी हाथों में देने का विरोध किया है। साथ ही आंदोलन की चेतावनी दी है।
देहरादून, [जेएनएन]: उत्तर प्रदेश सरकार के बिजली व्यवस्था के निजीकरण से कदम पीछे खींचने के बाद उत्तराखंड में भी यह मांग जोर पकड़ने लगी है। उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन ने बिजली व्यवस्था को निजी हाथों में देने का विरोध किया है। साथ ही चेतावनी दी है कि अगर सरकार और प्रबंधन ने निजीकरण की प्रक्रिया को निरस्त नहीं किया तो आंदोलन के लिए विवश होना पड़ेगा।
शुक्रवार को हुई संगठन की बैठक में प्रदेश उपाध्यक्ष विनोद कवि ने कहा कि ऊर्जा निगम प्रबंधन ने कुछ मंडलों में मीटर रीडिंग, कैश कलेक्शन का कार्य निजी कंपनियों को दिया जा रहा है। इसके लिए एक कंपनी से अनुबंध भी कर लिया गया है। इससे संविदा कार्मिकों के सामने रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा। कम से कम निगम को यह निर्णय लेने से पहले कर्मचारी संगठनों को विश्वास में लेना चाहिए था।
साथ ही बिजली घरों के संचालन का जिम्मा भी निजी कंपनियों को देने की तैयारी चल रही है। निजीकरण जनता के हित में भी नहीं है। क्योंकि, कंपनियां अपने मुनाफे के लिए काम करेंगी और इससे भविष्य में महंगी बिजली की मार उपभोक्ताओं पर पड़ेगी। निगम के कार्मिकों के बेरोजगार होने की भी पूरी आशंका है।
उन्होंने कहा कि संगठन विद्युत अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चे की आगामी बैठक में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाएगा। इस दौरान अनिल नौटियाल, घनश्याम शर्मा, नीरज उनियाल, शीला बोरा, स्वाति पंत, वंदना नेगी, रवि राणा, राहुल बिष्ट, कविता जोशी आदि मौजूद रहे।
गुमराह कर रही सरकार
उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष विनोद कवि ने कहा कि कैबिनेट की बैठक में उपनल कर्मियों के वेतन वृद्धि और नियमितीकरण के प्रस्ताव को चर्चा तक के लिए नहीं लाया गया। इससे साबित हो गया है कि सरकार सिर्फ कर्मचारियों को गुमराह कर रही है। सरकार का फोकस सिर्फ शराब पर रहा। वहीं, गैरसैंण सत्र में विधायकों के वेतन में बेतहाशा वृद्धि कर दी है। जबकि, उपनल कर्मचारियों को इतना भी वेतन नहीं मिल रहा, जिससे वह अपना परिवार भी चला सकें।
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