सैलानियों के आकर्षण का केंद्र हैं उत्तराखंड में संरक्षित क्षेत्र, जानिए इसकी खासियत

मध्य हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड वन्य पादप और प्राणियों के प्रवास एवं विविधता के दृष्टिकोण से अत्यंत समृद्ध है। यहां पादप एवं जीव प्रजातियों के कई पारिस्थितिक समूह मौजूद हैं।

By BhanuEdited By: Publish:Sat, 22 Feb 2020 12:38 PM (IST) Updated:Sat, 22 Feb 2020 08:26 PM (IST)
सैलानियों के आकर्षण का केंद्र हैं उत्तराखंड में संरक्षित क्षेत्र, जानिए इसकी खासियत
सैलानियों के आकर्षण का केंद्र हैं उत्तराखंड में संरक्षित क्षेत्र, जानिए इसकी खासियत

देहरादून, केदार दत्त। मध्य हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड, वन्य पादप और प्राणियों के प्रवास एवं विविधता के दृष्टिकोण से अत्यंत समृद्ध है। समुद्र तल से 7800 मीटर से अधिक ऊंचाई तक के क्षेत्र होने के कारण यहां पादप एवं जीव प्रजातियों के कई पारिस्थितिक समूह मौजूद हैं।

भौगोलिक विविधता के परिणामस्वरूप यहां जैव विविधता का भी विपुल भंडार है। इनके संरक्षण एवं परिरक्षण के मकसद से ही राज्य में तमाम इलाकों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है। इनमें छह राष्ट्रीय उद्यान, सात वन्यजीव विहार और चार कंजर्वेशन रिजर्व शामिल हैं। 

इसके अलावा नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व और विश्व धरोहर के रूप में नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान भी उत्तराखंड का गौरव है। कार्बेट टाइगर रिजर्व और फूलों की घाटी देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण का मुख्य केंद्र हैं। साथ ही आसन और झिलमिल कंजर्वेशन रिजर्व के रूप में देश के पहले कंजर्वेशन रिजर्व भी उत्तराखंड में मौजूद हैं।

बेजोड़ है वन्यजीव विविधता

चांदी सी मानिंद चमकती हिमाच्छादित श्वेत धवल पर्वत श्रृंखलाएं। नदी-झरने, हरे-भरे जंगल, खूबसूरत पहाड़ व मैदान, बेहतरीन आबोहवा। कुदरत ने मुक्त हाथों से उत्तराखंड को ये नेमतें बख्शी हैं। नैसर्गिक विविधता के बीच यहां की वन्यजीव विविधता भी कम बेजोड़ नहीं है।

उत्तराखंड के जंगलों में पाई जाने वाली स्तनधारियों की 102 प्रजातियां, परिंदों की 710 प्रजातियां, उभयचरों की 19, सरीसृप की 70 और मछलियों की 124 प्रजातियां इसकी तस्दीक करती है। वन्यजीवों की इन प्रजातियों में रॉयल बंगाल टाइगर, एशियाई हाथी, गुलदार, कस्तूरा मृग, हिम तेंदुआ, मोनाल जैसे जीव शामिल हैं, जो यहां के संरक्षित क्षेत्रों की न सिर्फ शोभा बढ़ा रहे, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त बनाने में भी योगदान दे रहे हैं। 

हालांकि, जंगलों में फूल-फल रहे वन्यजीवों के कुनबे के कारण कुछ दिक्कतें भी बढ़ी हैं, मगर यह ऐसी नहीं कि इनसे पार न पाई जा सके। जरूरत सकारात्मक सोच के साथ कदम बढ़ाने की है।

रहस्य से उठेगा पर्दा

उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों की शान कहे जाने वाले हिम तेंदुओं की यहां वास्तव में कितनी संख्या है, इस रहस्य से पर्दा उठ जाएगा। गंगोत्री नेशनल पार्क, गोविंद वन्यजीव विहार और अस्कोट अभयारण्य में चल रही सिक्योर हिमालय परियोजना के तहत उच्च हिमालयी क्षेत्र में हिम तेंदुओं की गणना के लिए खाका खींच लिया गया है। 

अगले माह से इसकी कसरत शुरू हो जाएगी और पहले चरण में ग्रामीणों के साथ बैठकें कर वे स्थल चिह्नित किए जाएंगे, जहां अक्सर हिम तेंदुए नजर आते हैं। साथ ही जगह-जगह लगे कैमरा ट्रैप में कैद होने वाली हिम तेंदुओं की तस्वीरों का परीक्षण भी किया जाएगा। फिर तय कार्ययोजना के तहत उच्च हिमालयी क्षेत्रों में प्रत्यक्ष गणना के साथ ही जगह-जगह कैमरा ट्रैप लगाकर इनकी गिनती होगी। यह कार्य लगभग दो साल में पूरा करने की योजना है। इसके पश्चात ये साफ हो सकेगा कि हिम तेंदुओं की संख्या कितनी है।

जलीय जंतुओं की गणना

थल में रहने वाले वन्यजीवों की गणना का तो शेड््यूल तय है, लेकिन अब उत्तराखंड में जलीय जीवों की गणना पर भी फोकस किया गया है। इस कड़ी में राज्य में पहली बार मगरमच्छ, घडिय़ाल और ऊदबिलाव की गणना का शेड्यूल तय किया गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान और विश्व प्रकृति निधि के सहयोग से यह गणना 22 से 24 फरवरी तक प्रस्तावित है। 

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असल में, 2008 में कार्बेट टाइगर रिजर्व में पायलट आधार पर मगरमच्छ व घडिय़ालों की गणना हुई, मगर राज्य के शेष क्षेत्र इनसे अ्रछूते रह गए, जबकि दूसरे क्षेत्रों में इनकी संख्या अच्छी-खासी है। इसी के दृष्टिगत पहली बार प्रदेश स्तर पर मगरमच्छ, घडिय़ाल और ऊदबिलावों की गणना होने जा रही है। कोशिश ये है कि गणना कार्य संपन्न होने के दो सप्ताह के बाद आंकड़े भी जारी कर दिए जाएं। इसी हिसाब से तैयारियां हुई हैं। अगले चरण में दूसरे जलीय जीवों की गिनती होगी।

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