बेहतर भविष्य के लिए पीपल, बरगद व तुलसी का करें संरक्षण

स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि पीपल बरगद और तुलसी 20 से 22 घंटे आक्सीजन देने वाले पेड़ है। अब जरूरत है इनका रोपण और संव‌र्द्धन करने की है। तभी हम अपनी आने वाली पीढि़यों को बेहतर भविष्य दे सकते है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 10 Jun 2021 09:08 PM (IST) Updated:Thu, 10 Jun 2021 09:08 PM (IST)
बेहतर भविष्य के लिए पीपल, बरगद व तुलसी का करें संरक्षण
बेहतर भविष्य के लिए पीपल, बरगद व तुलसी का करें संरक्षण

जागरण संवाददाता, ऋषिकेश :

स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि पीपल, बरगद और तुलसी 20 से 22 घंटे आक्सीजन देने वाले पेड़ है। अब जरूरत है इनका रोपण और संव‌र्द्धन करने की है। तभी हम अपनी आने वाली पीढि़यों को बेहतर भविष्य दे सकते है।

वट सावित्री व्रत पर मातृशक्ति को शुभकामनाएं देते हुए स्वामी चिदानंद कहा कि आज का दिन अखंड सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है। वट सावित्री अमावस्या बरगद की विशालता का परिचय कराती है। कई वर्षों तक जीवित रहने वाला बरगद का वृक्ष विशालता के साथ प्राणवायु आक्सीजन का भी स्त्रोत है। वट वृक्ष को महाभारत काल का साक्षी माना गया है। भगवन श्रीकृष्ण ने अक्षय वट के नीचे अर्जुन को गीता के 18 अध्याय सुनाए थे। कहा जाता है कि वट का वृक्ष महाभारत के दौरान गीता उपदेश का साक्षी है। कहा कि प्राचीन काल से ही वटवृक्ष का विशेष आध्यात्मिक महत्व है। शुक्रताल में वटवृक्ष के नीचे महर्षि शुकदेव महाराज ने राजा परीक्षत को भागवत कथा सुनाई थी आज भी उस स्थान पर वह प्राचीन व पवित्र वटवृक्ष स्थित है।

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वट अमावस्या व्रत के अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने आस्था पथ स्थित वट वृक्ष के नीचे पत्नी शशि प्रभा अग्रवाल के संग पूजा अर्चना की। उन्होंने सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्यवती की शुभकामनाएं दी। प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा है कि भारतीय संस्कृति में तीज त्योहारों का बड़ा महत्व है। हिदू मान्यताओं के अनुसार वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है इस दिन सुहाग महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं। उन्होंने कहा है कि ऐसी मान्यता है कि वटवृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर दिया था। पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत हर वर्ष जेठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार वैवाहिक जीवन में ग्रहों का भी बड़ा महत्व है मान्यता है कि ग्रहों के योग के अनुसार वैवाहिक जीवन में मधुरता लाने एवं कष्टों से मुक्ति पाने के लिए महिलाएं यह व्रत धारण करती है।

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