यहां हर साल मर जाते हैं रोपे गए 50 फीसद पौधे, जानिए

उत्तराखंड में वर्षाकाल में होने वाले पौधरोपण में से सिर्फ 50 प्रतिशत पौधे भी जिंदा नहीं रह पा रहे हैं। जाहिर है कि नीति और नीयत में कहीं न कहीं खोट है।

By Edited By: Publish:Wed, 17 Jul 2019 03:01 AM (IST) Updated:Wed, 17 Jul 2019 03:12 PM (IST)
यहां हर साल मर जाते हैं रोपे गए 50 फीसद पौधे, जानिए
यहां हर साल मर जाते हैं रोपे गए 50 फीसद पौधे, जानिए
देहरादून, केदार दत्त। पिछले 18 साल से जंगलों में प्रति वर्ष डेढ़ से दो करोड़ पौधों का रोपण, फिर भी वनावरण 46 प्रतिशत से आगे नहीं निकल पाया है। यह है उत्तराखंड में वर्षाकाल में होने वाले पौधरोपण की तस्वीर। साफ है कि जिस हिसाब से प्रदेश में पौधरोपण हो रहा है, उसमें से 50 प्रतिशत पौधे भी जिंदा नहीं रह पा रहे हैं। जाहिर है कि नीति और नीयत में कहीं न कहीं खोट है। विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जयराज ने स्वीकारा कि कुछ क्षेत्रों में रोपित पौधों का सरवाइल रेट आशानुरूप नहीं है। इसे देखते हुए इस वर्ष होने वाले 1.90 करोड़ पौधों के रोपण में जन सहभागिता सुनिश्चित की जा रही है। साथ ही पौधरोपण की नीति में भी बदलाव की तैयारी है। 
71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वन महकमा हर साल बड़े पैमाने पर वर्षाकाल में विभिन्न प्रजातियों के पौधों का रोपण करता है, मगर इनमें कितने जीवित हैं, इसका सही जवाब विभाग के पास नहीं है। ये स्थिति तब है, जबकि जंगलों में रोपित पौधों की तीन वर्ष तक देखभाल का प्रावधान है। फिर भी विभाग न तो खुद पौधों को बचा पा रहा और इसके लिए लोगों को प्रेरित कर पा रहा। अलबत्ता, हर साल लक्ष्य पूरा करने और बजट खपाने की होड़ सी जरूर दिखती है। 
रोपे गए पौधों के जीवित न रह पाने के विभागीय तर्कों पर भी अब जरा दृष्टि डालते हैं। इनके मुताबिक जंगलों में पौधे खुले में लगाए जाते हैं। जंगली जानवरों के साथ ही भूस्खलन, वनों की आग, अवैध कटान समेत अन्य कारणों के चलते तमाम स्थानों पर 30 से 40 प्रतिशत तक पौधे जीवित नहीं रह पाते। वहीं, जानकारों की मानें तो ये आंकड़ा 50 से 60 फीसद तक है। सूरतेहाल, पौधरोपण को लेकर विभागीय कार्यशैली पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है।
नियोजन पर ध्यान देना जरूरी 
'पौधरोपण में नियोजन बड़ी खामी है। यहां के भूगोल और स्थानीय जलवायु के अनुरूप पौधरोपण के लिए प्रजातियों का चयन होना चाहिए। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।' यह कहना है पर्यावरणविद् और पाणी राखो आदोलन के प्रणेता सच्चिदानंद भारती का। वह कहते हैं कि रोपे गए पौधों की देखभाल कम से कम 10 साल तक होनी चाहिए। तब जाकर ही कुछ सफलता मिलेगी। 
जनता का लेंगे सहयोग 
वन विभाग के मुखिया जय राज के मुताबिक तराई क्षेत्र में पौधरोपण की तस्वीर अच्छी है। साथ ही स्वीकारा कि पर्वतीय क्षेत्र में पौधों का सक्सेस रेट आशानुरूप नहीं है। फिर बजट भी सीमित है। ऐसे में 10 साल तक पौधों की देखरेख मुश्किल भरा काम है। इसे देखते हुए इस बार पौधरोपण में जनता को अहसास दिलाया जा रहा कि रोपे गए पौधे उनके लिए हैं। उन्होंने बताया कि पौधरोपण की नीति में बदलाव की भी तैयारी है। इसके तहत सहायतित प्राकृतिक पुनरोत्पादन पर जोर दिया जाएगा।
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