देहरादून राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः सबकी यही हसरत शिक्षा पर कसरत की जरूरत

सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आज भी दून उच्च शिक्षा के लिए युवाओं की पहली पसंद नहीं है।

By Nandlal SharmaEdited By: Publish:Sun, 29 Jul 2018 06:00 AM (IST) Updated:Sun, 29 Jul 2018 06:00 AM (IST)
देहरादून राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः सबकी यही हसरत शिक्षा पर कसरत की जरूरत

कभी दून और वेल्हम जैसे नामचीन स्कूलों के लिए प्रख्यात दून अब शिक्षा का हब बन चुका है। स्कूली शिक्षा का केंद्र रहे इस शहर ने बदलते वक्त के साथ उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, चिकित्सकीय शिक्षा के साथ प्रोफेशनल शिक्षा के क्षेत्र में भी लंबी छलांग लगाई है। जाहिर है उत्तराखंड बनने के बाद 18 साल के सफर में शहर ने बहुत कुछ पाया है, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। विशेषकर गुणवत्ता के क्षेत्र में।

सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आज भी दून उच्च शिक्षा के लिए युवाओं की पहली पसंद नहीं है। इसके लिए वे दिल्ली, मुंबई और चंडीगढ़ पर निर्भर हैं। दैनिक जागरण के अभियान 'माय सिटी माय प्राइड' के तहत जागरण कार्यालय में आयोजित राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस (आरसीटी) में इस पर चर्चा की गई तो चुनौती के साथ सुझाव भी निकल कर आए।

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मंथन के दौरान विशेषज्ञों ने उद्योगों की जरूरत के अनुसार कौशल विकास कार्यक्रमों पर जोर दिया तो सरकारी स्कूलों में बेसिक शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर करने के लिए शिक्षकों के प्रशिक्षण पर बल दिया। कहा गया कि विषय को रुचिकर बनाने के साथ ही शिक्षक यदि गहनता से बच्चों पर फोकस करे तो हालात बदलने में देर नहीं लगेगी। निजी स्कूल बनाम सरकारी स्कूलों की शिक्षा पर चर्चा के दौरान कई अहम सवाल उभर कर आए।

अंग्रेजी गुणवत्ता का पैमाना नहीं

अंग्रेजी का ज्ञान होना बेहतर है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि अंग्रेजी शिक्षा आर्थिक उन्नति और गुणवत्ता का पैमाना है। डीएवी पीजी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अजय सक्सेना ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि निजी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से बच्चे की पढ़ाई की मानसिकता अभिभावकों को बदलनी होगी। सरकारी स्कूलों में भी आज अंग्रेजी के अलावा विज्ञान एवं अन्य क्षेत्रों में उत्कृष्ट पठन-पाठन संचालित हो रहा है।

खुद के रवैये से बदलेगा समाज
उत्तराखंड तकनीकी विवि की कुलसचिव डॉ. अनीता रावत ने कहा कि शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन के लिए शिक्षकों के साथ-साथ समाज के हर तबके को अपने रवैये में बदलाव लाना होगा। सकारात्मक सोच नवाचार (इनोवेशन) को बढ़ावा देने में सहायक होगी।

उच्च शिक्षा में दून का बेहतर भविष्य
पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. सविता मोहन ने चर्चा को विस्तार देते हुए कहा कि दून की उच्च शिक्षा बेहतर कल के लिए सही दिशा में बढ़ रही है। सरकारी स्कूल एवं कॉलेजों को आज आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस किया जा रहा है। तकनीकी शिक्षा से लेकर शोध एवं शिक्षा विस्तार के क्षेत्र में भी हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हां, इस बात की जरूरत महसूस की जा रही है कि सरकारी स्कूल के शिक्षकों को अपने कार्य को 'मिशन' के रूप में लेना होगा। तभी निजी स्कूलों की तर्ज पर सफलता मिलेगी।

राजनैतिक हस्तक्षेप कम हो
चर्चा में भाग लेते हुए दून विश्वविद्यालय छात्र परिषद के अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह चौहान ने कहा कि कॉलेज अथवा विश्वविद्यालय में राजनैतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। यदि पारदर्शिता अपनाते हुए बेहतर फैकल्टी की नियुक्ति होती है, तो योग्य छात्र तैयार होंगे। जो आगे चलकर राज्य एवं देश की आर्थिक प्रगति में सहयोग देगा।

सरकारी शिक्षकों पर कम हो दबाव
जूनियर शिक्षक संघ के प्रांतीय कोषाध्यक्ष सतीश घिल्डियाल का मानना है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा गुणवत्ता में तभी सुधार आ सकता है, जब शिक्षकों पर पठन-पाठन के अलावा अन्य कार्यों का भार कम हो। आज एक शिक्षक को ऐसे दर्जनों सरकारी अभियानों से जोड़ा गया है, जिनमें अधिक समय जाया हो रहा है। छात्रों पर ध्यान कैसे ध्यान दिया जाए।

विशेषज्ञ बोले
- 'सरकारी स्कूलों में छात्रों की घटती संख्या का बड़ा कारण अभिभावकों में निजी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई का फैशन है, जबकि यह समझाना जरूरी है कि वर्तमान में प्रदेश में जितने भी बड़े पदों में आसीन लोग हैं उनमें से 80 फीसद सरकारी स्कूलों से पढ़कर आए हैं। आज जरूरत इस बात की भी है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक पठन-पाठन को टाइम पास का साधन नहीं, बल्कि मिशन के रूप में स्वीकारें।'
- डॉ. अजय सक्सेना, प्राचार्य, डीएवी पीजी कॉलेज

- 'सरकारी महाविद्यालयों में शिक्षा के गुणात्मक सुधार पर जोर दिया जा रहा है। यह सर्वविदित है कि राजकीय कन्या इंटर कॉलेजों से शिक्षा ग्रहण करने वाली सैंकड़ों महिलाएं आज प्रदेश में अहम ओहदों पर हैं। मैं भी उन्हीं में से एक हूं। सरकारी विद्यालय एवं महाविद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाना उचित नहीं, जिस प्रकार सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक बेहतर इलाज करने के लिए जाने जाते हैं, उसी प्रकार सरकारी स्कूलों के शिक्षक बेहतर शिक्षा देने में पूरी तरह से समर्थ हैं।'
- डॉ. सविता मोहन, पूर्व प्रभारी निदेशक उच्च शिक्षा

- 'जो लोग कहते हैं कि सरकारी स्कूलों में बेहतर पठन-पाठन का अभाव है, मैं उससे सहमत नहीं हूं। पिछले पांच-छह सालों में सरकारी शिक्षा में सुधार के लिए दर्जनों प्रोजेक्ट लांच किए गए हैं। इनके सुपरिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। उदाहरण के लिए नवोदय विद्यालय नालापानी की एक छात्रा का चयन आईआईटी मुंबई के लिए हुआ है। ऐसे कई उदाहरण हैं।'
- सुशील सिंह राणा, प्रवक्ता, नवोदय विद्यालय नालापानी

- 'सरकारी के मुकाबले निजी स्कूलों की ओर अभिभावकों का अधिक रुख है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण सरकारी स्कूलों में व्यक्तित्व विकास पर ध्यान ही नहीं दिया जाता। सरकारी स्कूलों में निजी स्कूली की तुलना में मॉनिटरिंग पर भी ध्यान नहीं दिया जाता। निजी स्कूलों के शिक्षकों की जवाबदेही प्रतिदिन तय होती है और परिणाम भी देना होता है। सरकारी स्कूलों के शिक्षक प्रशिक्षित तो हैं, लेकिन वह शत प्रतिशत प्रयास नहीं करते।'
- डॉ. पूनम शर्मा, प्राचार्य सनराइज एकेडमी

मेहमानों की राय

- 'स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा में तब तक परिवर्तन नहीं आएगा, जब तक हमारे रवैये में परिवर्तन नहीं आता। दून में निजी स्कूलों के प्रति अभिभावकों का अधिक रूझान रहता है, जबकि चंडीगढ़ में सरकारी एवं निजी स्कूलों की बराबर की उपयोगिता है। सरकारी स्कूल के शिक्षकों को रोल मॉडल बनकर काम करना होगा तभी सरकारी स्कूलों के प्रति बनी धारणा पर अंकुश लग सकता है।'
- डॉ. अनीता रावत, कुलसचिव, उत्तराखंड तकनीकी विवि

- 'दून विश्वविद्यालय की छात्र परिषद विवि के शैक्षणिक प्रोग्राम में पूर्ण सहयोग देती है। केवल जरूरत इस बात की है कि विवि के क्रियाकलापों में राजनैतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। अपने ख्याति के अनुसार विवि में आज भी उच्चकोटि की फैकल्टी की दरकार महसूस की जा रही है। दिनोंदिन दून विवि में इंटीग्रेटेड पाठयक्रमों में दाखिला लेने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या बढ़ रही है।'
- सत्येंद्र सिंह चौहान, अध्यक्ष, छात्र परिषद दून विवि

- 'सरकारी स्कूलों के प्रति अभिभावकों की उदासीनता के लिए सरकारी नीतियां जिम्मेवार हैं। शिक्षक शिक्षा से इतर अन्य काम भी करेगा तो उससे कैसे अपेक्षा की जा सकती है वह बेस्ट परिणाम दे? जहां तक निजी स्कूलों की बात है तो नामी-गिरामी स्कूल कम अंकों की आड़ में अपने ही स्कूल के छात्रों को एडमिशन नहीं देते। सवाल यह है कि छात्र के कम अंकों के लिए कौन जिम्मेदार है?'
- सतीश घिल्डियाल, प्रांतीय कोषाध्यक्ष, जूनियर शिक्षक संघ

- 'उच्च शिक्षा में नवाचार का समावेश जरूरी है। आज उच्च शिक्षा सीधे देश की आर्थिक स्थिति से जुड़ी है। वैश्विक स्तर पर तकनीकी शिक्षा में नित नए परिवर्तन हो रहे हैं। ग्लोबल प्रतिस्पर्धा में यदि हमें भी बने रहना है, तो हमें इस चैलेंज का स्वीकारना होगा। तकनीकी शिक्षा का बदलता स्वरूप आज आर्थिक विकास का पैमाना बनता जा रहा है।'
- नवनीत राजौरिया, रिसर्च स्कॉलर दून विवि

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