देहरादून राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः संवाद से निकलेगी सुरक्षा और समृद्धि की राह

शिक्षा व्यवस्था में सुधार जरूर हुआ है, मगर सरकारी शिक्षा और उच्च गुणवत्ता की शिक्षा की कमी निरंतर बरकरार है। कुछ ऐसा ही अर्थ व्यवस्था के मामले में देखने को मिल रहा है।

By Gaurav TiwariEdited By: Publish:Sun, 26 Aug 2018 06:01 AM (IST) Updated:Fri, 31 Aug 2018 05:19 PM (IST)
देहरादून राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः संवाद से निकलेगी सुरक्षा और समृद्धि की राह

जागरण संवाददाता, देहरादून: 'दैनिक जागरण’ के महाभियान 'माय सिटी माय प्राइड’ का हिस्सा बने देश के 10 शहरों में से देहरादून दूसरे पायदान पर खड़ा है। हालात यहां कुछ बेहतर जरूर नजर आते हैं, मगर 18 साल पहले (राज्य गठन के समय) के दून से तुलना करें तो हम बहुत कुछ हासिल करने के साथ ही काफी कुछ पीछे भी छोड़ आए हैं। दून में अब पहले जैसा सुकून नहीं रहा। अपराध बढऩे के साथ ही उसका ट्रेंड भी बदल गया है। ढांचागत विकास से अधिक उसमें सुधार की गुंजाइश है। आबादी बढऩे के साथ ही स्वास्थ्य की सुविधाओं का हर व्यक्ति के लिए सुलभ होना किसी चुनौती से कम नहीं है।

शिक्षा व्यवस्था में सुधार जरूर हुआ है, मगर सरकारी शिक्षा और उच्च गुणवत्ता की शिक्षा की कमी निरंतर बरकरार है। कुछ ऐसा ही अर्थ व्यवस्था के मामले में देखने को मिल रहा है। 'माय सिटी माय प्राइड' अभियान के तहत शनिवार को दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस (आरटीसी) में विशेषज्ञों ने अभियान के पांचों पिलर शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिकी, सुरक्षा व इंफ्रा को लेकर आई सर्वे रिपोर्ट पर मंथन किया। साथ ही सुझाव दिए कि कैसे इन मोर्चों पर अपेक्षित सुधार किया जा सकता है। कुल मिलाकर यही बात निकलकर सामने आई कि सिस्टम व समाज के बीच संवाद बेहतर हो तो किसी भी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। यदि सिस्टम व समाज का यह फासला दूर होता है कि दून की समृद्धि राह आसानी से निकल आएगी।

सुरक्षा

बदल रहा अपराध का ट्रेंड
पुलिस अधीक्षक (नगर) प्रदीप राय ने कहा कि दून में 60 फीसद से अधिक अपराध हाईटेक श्रेणी के हैं। अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं कि एटीएम व ऑनलाइन के माध्यम से ठगी की जा रही है। पुलिस विशेषज्ञों की मदद से ऐसे केस सुलझा भी रही है। लोगों को भी चाहिए कि वह इंटरनेट, मोबाइल व एटीएम का प्रयोग करते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतें।

सशक्त हो रही नारी, सुरक्षा पर सवाल बाकी
आरटीसी में यह मामला भी उठा कि सुरक्षा में दून की रेटिंग कई शहरों से बेहतर है, मगर दून की तुलना उसके पुराने माहौल से करें तो असुरक्षा की भावना आज अधिक बढ़ गई है। इसका जवाब देते हुए पुलिस की जूडो प्रशिक्षक किरन नेगी देवली ने कहा कि इस दिशा में पुलिस निरंतर प्रयास कर रही हैं। महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाने पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। जुलाई माह के ही शिविर में आत्मरक्षा का प्रशिक्षण लेने वाली महिलाओं, युवतियों व किशोरियों की संख्या 450 पार कर गई थी।

शास्त्रीनगर के लोगों ने पेश की मिसाल
रक्षा के मोर्चे पर यह बात भी सामने आई कि अब दून में कम्युनिटी पुलिसिंग जैसी बात नजर नहीं आती। मांग उठाई गई कि संबंधित थाना-चौकी के अधिकारी माह में एक बार अपने क्षेत्र की आवासीय समितियों के प्रतिनिधियों के साथ वहां की समस्याओं पर बात जरूर करें। वहीं, यह सुझाव भी रखा गया कि आवासीय समितियां भी अपने स्तर पर सुरक्षा की पहल करे तो पुलिस हरसंभव मदद को तैयार है। शास्त्रीनगर जन कल्याण समिति के पूर्व अध्यक्ष आनंद सिंह रावत ने बताया कि दून में पहली बार उनकी समिति ने पूरी कॉलोनी की वेबसाइट बनाई है और वहां रह रहे प्रत्येक व्यक्ति का डाटा उसमें है। कोई भी व्यक्ति साइट पर अपनी समस्या रख सकता है। एसपी सिटी प्रदीप राय ने इसे अभूतपूर्व प्रयास बताते हुए कहा कि अन्य आवासीय समितियों को भी ऐसा प्रयास करना चाहिए।

शिक्षा

सरकारी व उच्च गुणवत्ता की शिक्षा में पिछड़ा दून
शिक्षाविद् प्रो. शिखा उनियाल गैरोला ने कहा कि आज दून शिक्षा हब के रूप में भी अपनी पहचान बना चुका है। स्कूली शिक्षा की बात करें तो यहां नामी स्कूली में दाखिले को लेकर ऊंची सिफारिश की जाती है, वहीं सरकारी शिक्षा का नाम लेने वाला कोई नहीं है। इसके लिए उन्होंने शिक्षा नीति में आवश्यक बदलाव को जरूरी बताया। दूसरी तरफ उच्च शिक्षा पर बात करते हुए कहा कि शिक्षण संस्थान थोक के भाव डिग्री तो बांट रहे हैं, लेकिन उनमें उच्च प्रशिक्षण का अपेक्षित अभाव है। चुनिंदा ही ऐसे संस्थान हैं, जिनकी कुछ साख बची है। इसके लिए उच्च शिक्षा नीति में भी सुधार पर उन्होंने बल दिया।

इकॉनोमी
इंडस्ट्री को चौबीसों घंटे मिले बिजली
उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल के प्रांतीय अध्यक्ष अनिल गोयल ने दून की इकॉनोमी (अर्थव्यवस्था) पर बारीकी से प्रकाश डाला। उन्होंने दो टूक कहा कि इंडस्ट्री व मार्केट दो ऐसे बिंदु हैं, जिनकी बेहतरी से अर्थव्यवस्था गति करती है। वर्ष 2003 तक दून जीरो इंडस्ट्री जोन था। इस अवधि में जब इंडस्ट्रियल पैकेज आया तो इस सेक्टर में बूम आ गया। इसके लिए रेड कार्पेट भी बिछाया गया, लेकिन तब भी सुविधाएं उतनी मुफीद नहीं। बड़े व विश्वस्तर के घरानों की बात करें तो वह निवेशक की अत्यधिक औपचारिकताओं को लेकर खासे परेशान रहते हैं। अर्थव्यवस्था के लिए ऊर्जा भी बहुत मायने रखती है। वर्ष 2003 में 300 मेगावाट मांग के अनुरूप बिजली प्राप्त होती थी, जबकि आज रोजाना तीन-चार घंटे का पावर-कट आम बात है। इंडस्ट्री सेक्टर के लिए 24 घंटे बिजली आपूर्ति आज भी सपना है।

इंफ्रा

ढांचागत विकास को संसाधनों का टोटा
ऊर्जा निगम के रिटायर्ड मुख्य अभियंता सीआर गोस्वामी ने दून के इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट (ढांचागत विकास) पर बात रखते हुए कहा कि दून की आबादी में 40 फीसद तक का इजाफा हुआ है, जबकि सड़कों की स्थिति में उतना सुधार नहीं हो पाया। हाईकोर्ट के आदेश पर सड़कों पर से हट रहे अतिक्रमण से इस दिशा में कुछ उम्मीद जरूर बढ़ी है। हालांकि, सवाल फिर उसी मशीनरी की इच्छाशक्ति पर आकर अटक जाता है, जिसकी अनदेखी से सड़कों पर कब्जे हुए। उन्होंने कहा कि जिस अनुपात में शहरीकरण बढ़ा है, उसी अनुपात में सेक्टरवार बुनियादी सुविधाएं जुटाई जानी चाहिए।

बिजली की लाइनों को भूमिगत करना जरूरी
उत्तराखंड जलविद्युत निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक एसएन वर्मा ने कहा कि बिजली आपूर्ति बेहतर बनाने के लिए दून में काफी काम हुए हैं। हालांकि, आज भी बिजली के खंभे बड़ी अड़चन बनकर खड़े हैं। जगह की कमी के चलते कहीं खंभे सड़कों पर खड़े हैं, तो सेलाकुई जैसे इंडस्ट्रियल एरिया के लिए हाईटेंशन लाइन के खंभे नदी में गाड़े गए हैं। इससे आए दिन बिजली की आपूर्ति बाधित होती रहती है। इसके लिए बिजली की लाइनों को भूमिगत कराना जरूरी है। हालांकि, इस काम में भारी बजट की जरूरत है। हरिद्वार में ही करीब 150 करोड़ रुपये से यह काम किया जा रहा है। इसके बाद देहरादून में भी ऐसी पहल होगी। उन्होंने कहा कि जिस तरह दून में अतिक्रमण हटाओ अभियान से सड़कों की चौड़ाई बढ़ गई है, उसे देखते हुए अब सर्विस डक्ट बनाकर लाइनों को भूमिगत किया जा सकता है।

जनता के साथ संवाद बढ़ाने की दिशा में प्रयास किए जाएंगे। उच्चाधिकारियों को भी इस बारे में संस्तुति भेजी जाएगी। दून में लॉ एंड ऑर्डर व धरना-प्रदर्शनों की अधिकता के चलते पुलिस इस तरह के कामों में भी व्यस्त रहती है। सभी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि ये शहर हमारा है और इसे बेहतर रखना हमारा दायित्व।
-प्रदीप राय, पुलिस अधीक्षक (नगर)

यहां उप्र-बिहार जैसे हालात नहीं हैं, लेकिन स्वछंदता व अनुशासन में फर्क समझना होगा। खासकर युवा पीढ़ी को अधिक अनुशासित होने की जरूरत है। इस तरह सुरक्षा की आधी समस्या स्वयं हल हो जाएगी।
-एसएन वर्मा, प्रबंध निदेशक, उत्तराखंड जलविद्युत निगम लिमिटेड

दून में देशभर के छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ये शिक्षण संस्थान, समाज और पुलिस सबकी जिम्मेदारी हैं। शिक्षण संस्थान सिर्फ दाखिले तक सीमित न रहें और पुलिस को छात्रों के सत्यापन में सहयोग करना चाहिए। ऐसा एप भी विकसित किया जा सकता है, जिसमें विद्यार्थियों का संपूर्ण विवरण हो।
-प्रो.शिखा उनियाल गैरोला, पर्यावरण विज्ञान विभाग, उत्तरांचल विश्वविद्यालय

सरकारी व्यवस्था में अभी भी पारदर्शिता का अभाव है। ऐसा सिस्टम बनाया जाना चाहिए, जिसके तहत अधिक से अधिक लोगों की समस्याओं को कवर किया जा सके। अधिकारियों को रिस्पॉन्स टाइम में भी सुधार करना होगा।
-सीआर गोस्वामी, रिटायर्ड मुख्य अभियंता (ऊर्जा निगम)

यह संवाद का ही नतीजा है कि चकराता रोड के चौड़ीकरण जैसी मुश्किल का भी हल निकल आया। कारोबारी हो या अन्य सेक्टर यदि सरकार चाहे तो बातचीत के आधार पर किसी भी अड़चन को दूर कर सकती है।
-अनिल गोयल, प्रांतीय अध्यक्ष, उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल

पुलिस की मदद से शास्त्रीनगर में हर उस मार्ग को नियंत्रित किया गया, जिससे देर रात अराजक तत्वों के घुसने का भय रहता है। अन्य क्षेत्रों में भी ऐसा नियंत्रण किया जाना चाहिए।
-आनंद सिंह रावत, पूर्व अध्यक्ष शास्त्रीनगर जनकल्याण समिति

सुरक्षा के मोर्चे पर महिलाओं को भी खुद को तैयार करना होगा। यदि महिलाएं आगे आएं तो पुलिस उन्हें हरसंभव सहयोग करने को तैयार है। हर एक बात को अकेले पुलिस पर भी नहीं छोड़ा जा सकता।
-किरन नेगी देवली, जूडो प्रशिक्षक (पुलिस विभाग)

बोले विधायक
'माय सिटी माय प्राइड’ अभियान निश्चित रूप से शहर की बेहतरी के लिए मील का पत्थर साबित होगा। शहर को हर लिहाज से चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या स्वास्थ्य अथवा सुरक्षा, आर्थिकी, इन्फ्रा के, इन सभी मोर्चों पर स्थिति में सुधार हो, यही हम सबका मंतव्य भी है। 'दैनिक जागरण’ की ओर से कराए गए सर्वे और अब तक हुई राउंड टेबल कांफ्रेंस में जो भी बिंदु उभरकर सामने आए हैं, उनके समाधान के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जाएंगे। जागरण की ओर से उठाए गए सभी पिलर मेरी भी प्राथमिकता के बिंदु हैं। इस दिशा में पहल भी शुरू की जा चुकी है। सुरक्षा के मद्देनजर शहर में विभिन्न स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने को विधायक निधि से दून पुलिस को 15 लाख रुपये की राशि दी गई है। विद्युत लाइनों के रखरखाव और पोल बदलने के लिए विधायक निधि से लगातार राशि दी जा रही है। अन्य बिंदुओं पर भी पहल की गई है। जागरण की ओर से कराए गए सर्वे और आरटीसी में आए सुझावों के निदान के लिए सरकार, शासन और प्रशासन स्तर पर पुरजोर प्रयास किए जाएंगे।
-उमेश शर्मा काऊ, विधायक रायपुर, देहरादून

देहरादून को बेहतर शहर बनाना हमारी और सरकार की प्रतिबद्धता है। हालांकि, अब तक काफी कुछ हो चुका है, लेकिन अभी बहुत किया जाना बाकी है। शहर को सुव्यवस्थित करने को मास्टर प्लान जारी होना है, जिसमें तमाम बिंदुओं का समावेश किया जाना है। इस लिहाज से 'माय सिटी माय प्राइड’ अभियान में सामने आए बिंदु महत्वपूर्ण साबित होंगे। इन्फ्रा के लिहाज से देखें तो जिस हिसाब से दून की आबादी बढ़ी है, उस हिसाब से हमारे पास सड़कें नहीं हैं। ऐसे में जाम की समस्या से निजात नहीं मिल पाई है। इस दिशा में प्रयास किए जाएंगे कि सड़कों पर जाम न लगे और यातायात सुरक्षित हो। स्वास्थ्य के मोर्चे पर दून में जिला अस्पताल की सख्त से सख्त आवश्यकता है। दून अस्पताल को मेडिकल कॉलेज को दे दिए जाने के बाद ऐसे अस्पताल की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है। जिला अस्पताल जल्द से जल्द आकार ले, इसके लिए सरकार व शासन स्तर पर दबाव बनाया जाएगा। यही नहीं, पेयजल के क्षेत्र में व्यवस्था को सुदृढ़ कराना भी प्राथमिकता है। इसके लिए प्रयास चल रहे हैं। डे्रनेज सिस्टम शहर के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। इस दिशा में काफी कुछ होना बाकी है।
- खजानदास, विधायक, राजपुर रोड, देहरादून

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