महिला एवं बाल विकास की डीडी के कार्यकाल की जांच के आदेश

महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग की उप निदेशक सुजाता सिंह पर सरकार ने शिकंजा कसा है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 26 May 2020 09:24 PM (IST) Updated:Tue, 26 May 2020 09:24 PM (IST)
महिला एवं बाल विकास की डीडी के कार्यकाल की जांच के आदेश
महिला एवं बाल विकास की डीडी के कार्यकाल की जांच के आदेश

राज्य ब्यूरो, देहरादून: महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग की उप निदेशक सुजाता सिंह पर सरकार ने शिकंजा कसा है। महिला कल्याण एवं बाल विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रेखा आर्य ने उपनिदेशक के अब तक के कार्यकाल की निष्पक्ष जांच हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश से कराने के आदेश विभागीय सचिव को दिए हैं। उन्होंने उपनिदेशक सुजाता सिंह को तत्काल निदेशालय से हटाते हुए महिला छात्रावास हरिद्वार के प्राचार्य के रूप में संबद्ध करने के साथ ही उनके सभी वित्तीय अधिकार स्थगित रखने के निर्देश भी दिए हैं। इसके साथ ही उप निदेशक की चरित्र पंजिका में पूववर्ती निदेशक द्वारा एकमुश्त भरी गई 10-12 साल की प्रविष्टियां भी निरस्त कर दी गई हैं।

राज्यमंत्री रेखा आर्य के अनुसार महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग की उपनिदेशक सुजाता सिंह के खिलाफ सरकार को लगातार शिकायतें मिल रही थीं। इसे देखते हुए जब पत्रावली तलब की गई तो इसमें बात सामने आई कि 1992 में विभाग में जिला कार्यक्रम अधिकारी के पद पर नियुक्ति पाने के बाद से अब तक सुजाता सिंह का कार्यकाल विवादों से भरा रहा है। उन पर पद का दुरुपयोग करने, उच्चाधिकारियों के आदेशों की अवहेलना करने, अनुशासनहीन होने जैसे आरोप लगते रहे हैं। इसे देखते हुए सुजाता सिंह के अब तक के सेवाकाल और जांचों से संबंधित समस्त पत्रावलियों व अभिलेखों की निष्पक्ष जांच उच्च न्यायालय के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश से कराने के आदेश विभागीय सचिव को दिए गए हैं।

विभागीय मंत्री ने उठाए सवाल

-उच्चाधिकारियों द्वारा प्रतिकूल प्रविष्टि व चेतावनी के बावजूद उपनिदेशक सुजाता सिंह पर क्यों नहीं हुई कार्रवाई।

-अधिकांश समय देहरादून में ही इनकी तैनाती रखी गई और अल्प समयावधि को अन्यत्र गई थी तो वहां कार्याें का संपादन न कर दून के लिए बनाया दबाव।

-उत्तरकाशी की जिला कार्यक्रम अधिकारी रहने के दौरान 255 दिन बिना स्वीकृति के अर्जित अवकाश पर रहीं, जबकि 120 दिन से ज्यादा का अर्जित अवकाश लेने का नियम नहीं है।

-यदि वह बिना स्वीकृति के 255 दिन के अर्जित अवकाश लेने की हकदार थीं तो प्रकरण में निर्णय लेने में 15 साल का वक्त क्यों लगा।

-2006 में वित्तीय अनियमितता के आरोप की प्रारंभिक जांच में पुष्टि के बावजूद आज तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई।

-2008 में कालातीत नमक वितरण की जांच रिपोर्ट में दोषी पाए जाने और तत्कालीन प्रमुख सचिव द्वारा प्रश्न चिह्न लगाने के बावजूद इस प्रकरण में निर्देश के बावजूद पुन: वार्ता क्यों नहीं की गई।

-2011 में उत्तरकाशी में स्टोर में रखी मेडिसिन किट के कालातीत होने के मामले की जांच आख्या क्यों लंबित है।

-निविदा प्रक्रिया में अनियमितता के मामले में लोकायुक्त की दंडात्मक कार्रवाई की संस्तुति के बावजूद महज चेतावनी देकर क्यों छोड़ा गया।

-वार्षिक चरित्र पंजिका में 10-12 साल की प्रविष्टियां एकमुश्त कैसे भर दी गई।

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