निगरानी तंत्र ने अपना कार्य ईमानदारी से किया होता तो यह नौबत ही नहीं आती

उत्‍तराखंड में सरकारी अमलों की फौज विकास कार्यों की निगरानी को लेकर कितनी अगंभीर है इसका ताजा उदाहरण है ऋषिकेश-देहरादून के बीच क्षतिग्रस्‍त जाखन पुल। आपको बता दें कि इससे पहले भी थानो रोड पर बडासी पुल और डोईवाला में लच्छीवाला ओवरब्रिज की एप्रोच रोड क्षतिग्रस्त हुई थी।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Wed, 01 Sep 2021 04:13 PM (IST) Updated:Wed, 01 Sep 2021 04:13 PM (IST)
निगरानी तंत्र ने अपना कार्य ईमानदारी से किया होता तो यह नौबत ही नहीं आती
बीते दिनों देहरादून जिले के रानीपोखरी में जाखन नदी पर बना पुल ढह गया।

विजय मिश्रा, देहरादून। तीन चौथाई पर्वतीय भूभाग वाले उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां बेहद जटिल हैं। यही वजह है कि यहां सड़कों और पुलों का निर्माण आसान नहीं। ऐसे में इन विकास कार्यों की निगरानी का महत्व बढ़ जाता है। इसके लिए सरकारी अमलों में लंबी फौज है। हर माह इनके वेतन पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। मगर, यह फौज विकास कार्यों की निगरानी को लेकर कितनी अगंभीर है, ऋषिकेश-देहरादून के बीच जाखन नदी पर बने पुल का क्षतिग्रस्त होना इसका उदाहरण है। इससे पहले दून में ही थानो रोड पर बडासी पुल और डोईवाला में लच्छीवाला ओवरब्रिज की एप्रोच रोड क्षतिग्रस्त होने का मामला भी सामने आ चुका है। साफ तौर पर इसके लिए कार्यदायी संस्था जिम्मेदार हैं। उतना ही सच यह भी है कि निगरानी तंत्र ने अपना कार्य ईमानदारी से किया होता तो यह नौबत ही नहीं आती। सरकार को निगरानी तंत्र को भी उसकी जिम्मेदारी का एहसास कराना होगा।

झील-झरनों में सुरक्षा जरूरी

नदियां, झील और झरने। ये जलस्रोत उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं। देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार आने वाले पर्यटकों का तो प्राथमिक उद्देश्य ही इन जलस्रोतों का सुख पाना होता है। ये जलस्रोत जितना लुभाते हैं, उतना ही खतरनाक भी हैं। बीते एक साल में यहां कई जान जा चुकी हैं। चंद रोज पहले ही दून के कैम्पटी फाल में सेल्फी लेने के प्रयास में पर्यटक डूब गया। सहस्रधारा और ऋषिकेश में भी ऐसे हादसे हो चुके हैं। लापरवाही से इतर जलस्रोतों के किनारे सुरक्षा के मुकम्मल इंतजामात न होना भी इसकी वजह है। दून के गुच्चू पानी और सहस्रधारा में हर वर्ष हादसे होते हैं। बावजूद इसके यहां गोताखोरों व जलपुलिस की व्यवस्था नहीं है। ऋषिकेश में भी अधिकांश घाटों का यही हाल है। नैनीताल में तो झीलों के किनारे चेतावनी बोर्ड तक नहीं दिखते। तंत्र को पर्यटकों की सुरक्षा के प्रति भी गंभीर होना होगा।

सराहनीय है यह पहल

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश के सरकारी महाविद्यालयों में अध्ययनरत एक लाख छात्र-छात्राओं को मुफ्त टैबलेट देने की घोषणा की है। सरकार की यह पहल सराहनीय है। आनलाइन पढ़ाई के इस दौर में हर युवा हाथ में ऐसे उपकरणों का होना अति आवश्यक है। दूसरी तरफ, राज्य के सीमांत जिलों चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ में दो हजार से अधिक गांव अब भी दूरसंचार सेवाओं से अछूते हैं। ऐसा नहीं है कि सरकारों ने यहां दूरसंचार के तार पहुंचाने की कोशिश नहीं की। दुर्भाग्य से यह कोशिश फाइलों तक ही सीमित है। वर्तमान सरकार ने भी फाइबर केबिल के रूप में इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं। अब धामी सरकार को चाहिए कि युवा हाथों को टैबलेट देने से पहले राज्य के हर कोने में दूरसंचार सेवा की उपलब्धता सुनिश्चित कर ले। जिससे छात्र तकनीक हाथ में होने के बावजूद दूरसंचार सेवा के अभाव में खुद को ठगा महसूस न करें।

चिंता बढ़ा रहा डेल्टा

देशभर में इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का जश्न अपने पुराने स्वरूप में नजर आया। इस दिन हर तरफ कोरोना के अस्तित्व में आने से पहले वाला उल्लास दिखा। बाजार में लोग उत्साह के साथ खरीदारी करते दिखे तो मंदिरों में भी कान्हा का जन्मोत्सव मनाने के लिए भीड़ उमड़ी। जनजीवन का इस तरह पटरी पर लौटना सुखद है, लेकिन इस दौरान कोविड गाइडलाइन की अनदेखी माथे पर चिंता की लकीर भी उकेर गई। खासकर तब, जब राज्य में कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस समेत अन्य वेरियंट के दस्तक देने की पुष्टि हो चुकी है। कोरोना के यही स्वरूप वृहद स्तर पर टीकाकरण कर चुके इजरायल और अमेरिका में इस समय कहर ढा रहे हैं। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि अभी लापरवाही न बरती जाए। बंदिशों को न भूला जाए। बेशक, हम लंबे समय तक अपनी दिनचर्या को अस्थिर नहीं रख सकते, मगर एहतियात तो बरत ही सकते हैं।

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