आपदा के तीन साल बाद बदरी-केदार से लेकर गंगोत्री-यमुनोत्री तक खुशी की बयार

आपदा के तीन साल बाद बदरी-केदार से लेकर गंगोत्री-यमुनोत्री तक आस्था की बयार सी चल रही है और उम्मीदें हिलौरें ले रही हैं ।

By sunil negiEdited By: Publish:Thu, 16 Jun 2016 01:12 PM (IST) Updated:Fri, 17 Jun 2016 11:29 AM (IST)
आपदा के तीन साल बाद बदरी-केदार से लेकर गंगोत्री-यमुनोत्री तक खुशी की बयार

देहरादून, [दिनेश कुकरेती]: 'तीन साल बाद, हम वहां खड़े हैं, जहां से धुंधले होते, नजर आ रहे, आपदा के निशान, जिधर नजर दौड़ाओ, लगता है, जैसे मनाया जा रहा हो उत्सव, चेहरों पर बिखरी हुई है रौनक, हम कह सकते हैं, अपने पुरुषार्थ से, विजय पा ली हमने वक्त पर, अब जो खुला आसमान नजर आ रहा, उसी को जीतना है हमें, प्रकृति की हदों को लांघकर नहीं, उनसे अपनापा बनाकर, ताकि जीवन में उल्लास घोलते रहें, चारधाम, और..., अनवरत चलती रहे, जीवन की यह यात्रा।' देखा जाए तो कुछ ऐसी ही तस्वीर है आपदा के तीन साल बाद बदरी-केदार से लेकर गंगोत्री-यमुनोत्री तक की। खासकर, केदारपुरी में तो आस्था की बयार सी चल रही है और हिलौरें ले रही हैं उम्मीदें। इसके पीछे सरकार की इच्छाशक्ति तो है ही, नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) की मेहनत को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। वह निम ही है, जिसने आपदा में पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी केदारपुरी को नए कलेवर में संवारकर यात्रा को नवजीवन दिया।

पढ़ें-केदारनाथ आपदाः कदम तो बढ़े, मगर आहिस्ता-आहिस्ता
याद कीजिए 16-17 जून 2013 की उस आपदा को, जिसने चारों धाम में भीषण तबाही मचाई थी। केदारघाटी में तो केदारनाथ समेत कई पड़ावों पर जीवन के निशान तक मिट गए थे। तब लगता था, दस साल भी कम पड़ेंगे चारधाम यात्रा को दोबारा पटरी पर लाने के लिए। लेकिन, पहाड़ और पहाड़वासियों का स्वभाव है ना, कितनी ही विपरीत परिस्थितियां क्यों न हों, सीना ताने खड़े रहते हैं, उनका मुकाबला करने को। ऐसा ही हुआ भी। हम साहस बटोरते गए और धीरे-धीरे बदलने लगे हालात। धुंधले पड़ते चले गए आपदा के निशान और खिलने लगे वीराने में उम्मीद के फूल।

पढ़ें:-केदारनाथ मंदिर इतने सौ सालों तक दबा रहा बर्फ के अंदर, जानने के लिए पढ़ें...

नतीजा, देश-दुनिया के लोगों में उत्तराखंड को लेकर जो नकारात्मक धारणा घर कर गई थी, वह टूटने लगी। सरकार और जनता के प्रयासों से 2013 में आपदा के कुछ माह बाद ही जिस यात्रा को दोबारा शुरू कर दिया गया था, उसने बीते दो साल में विश्वास का ऐसा वातावरण तैयार किया, जो यात्रा को इस सुखद परिणति तक ले आया है। सरकार की इच्छाशक्ति और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की मेहनत से केदारपुरी की तो काया ही बदल गई। आप अगर पहली बार केदारनाथ आ रहे हैं तो यकीन ही नहीं कर पाएंगे कि तीन साल पहले यहां सब-कुछ मिट चुका था।
इस बार चारों धाम में कपाट खुलने के दिन से ही यात्रियों का हुजूम उमडऩे लगा था और धीरे-धीरे इसमें बढ़ोत्तरी होती चली गई। स्थिति यह है कि नौ मई से 14 जून तक नौ लाख 62 हजार 858 यात्री चारों धाम में दर्शनों को पहुंच चुके हैं। जबकि, 2014 में महज सात लाख 96 हजार 527 यात्री ही चारों धाम में दर्शन कर पाए थे। कहने का मतलब इस बार यात्रा हमारी अपेक्षाओं से कहीं अधिक अच्छी चल रही है। जिसने स्थानीय व्यापारियों, होटल व्यवसायियों, हक-हकूकधारियों और तीर्थ पुरोहितों के चेहरों पर मुस्कान लौटा दी है। जो लोग आपदा के बाद अपना पारंपरिक व्यवसाय छोड़ रोजी-रोटी की तलाश में मैदानों की तरफ पलायन कर गए थे, वे अब बेहतर भविष्य की आस में अपनों घरों को लौट रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि यात्रा की यह गति उनके जीवन को भी महका देगी। देखा जाए तो वक्त की जरूरत भी यही है कि चारधाम यात्रा मार्गों से लगे नगरों, कस्बों व गांवों का जीवन एक बार फिर यात्रा से जुड़े। सही मायने में तभी यात्रा के सुफल नजर आएंगे।

पढ़ें:-हर-हर महादेव की गूंज के साथ मानसरोवर यात्रियों का दल सिरका को रवाना

chat bot
आपका साथी