शताब्दी एक्सप्रेस के यात्रियों के लिए देवदूत बने वनकर्मी, आग की चपेट में आए कोच से यात्रियों को निकाला बाहर

New Delhi Dehradun Shatabdi Express हरिद्वार-देहरादून के बीच कांसरो जंगल में शताब्दी एक्सप्रेस के कोच में आग लगने की घटना के बाद ट्रेन के स्टाफ व यात्रियों के लिए यहां तैनात वनकर्मी देवदूत बनकर आगे आए। वनकर्मियों ने यात्रियों को कोच से बाहर निकाला।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sun, 14 Mar 2021 01:05 PM (IST) Updated:Sun, 14 Mar 2021 01:05 PM (IST)
शताब्दी एक्सप्रेस के यात्रियों के लिए देवदूत बने वनकर्मी, आग की चपेट में आए कोच से यात्रियों को निकाला बाहर
शताब्दी एक्सप्रेस के यात्रियों के लिए देवदूत बने वनकर्मी।

दुर्गा नौटियाल, ऋषिकेश। New Delhi Dehradun Shatabdi Express हरिद्वार-देहरादून के बीच कांसरो जंगल में शताब्दी एक्सप्रेस के कोच में आग लगने की घटना के बाद ट्रेन के स्टाफ व यात्रियों के लिए यहां तैनात वनकर्मी देवदूत बनकर आगे आए। वनकर्मियों ने न सिर्फ आग की चपेट में आए कोच से यात्रियों और उनके सामान को बाहर निकाला, बल्कि यात्रियों को अन्य कोच में शिफ्ट करने में भी मदद की। 

राजाजी टाइगर रिवर्ज की कांसरो रेंज में जिस स्थान पर यह घटना हुई उसके आसपास का क्षेत्र पूरी तरह से निर्जन है। यहां घटनास्थल के सबसे करीब मात्र कांसरो वन रेंज का रेंज कार्यालय है। जबकि घटनास्थल से करीब एक किलोमीटर दूर कांसरो रेलवे स्टेशन है। कांसरो रेलवे स्टेशन में मात्र एक स्टेशन मास्टर और एक गार्ड की ही तैनाती रहती है, वह भी संसाधन विहीन। इस स्थान तक पहुंचने के लिए डोईवाला से करीब तेरह किलोमीटर तथा सत्यनारायण मंदिर (रायवाला) से करीब साढ़े तेरह किलोमीटर की दूरी जंगल के बीच तय करनी होती है। 

शनिवार दोपहर करीब साढे बारह बजे जैसे ही जंगल में शताब्दी एक्सप्रेस रुकी तो रेंज अधिकारी राजेंद्र मोहन नौटियाल का ध्यान रेलगाड़ी की ओर गया। रेल के एक डिब्बे से धुंआ उठता देख उन्हें अंदेशा हो गया कि ट्रेन में आग लगी है। उन्होंने तत्काल रेंज कार्यालय में तैनात पूरे स्टाफ को तुरंत जंगल में खड़ी रेल की ओर जाने के निर्देश दिए। वहीं स्वयं रेस्क्यू की कमान संभालते हुए रेंज अधिकारी राजेंद्र मोहन नौटियाल ने डिप्टी रेंजर गणेश बहुगुणा, फारेस्टर पृथ्वी सिंह, मोहन सिंह, गुलाम रसूल व लाखन सिंह की 14 सदस्यीय टीम के साथ मिलकर आग लगे कोच से यात्रियों को बाहर निकलाना शुरू किया।

यात्रियों में बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। वनकर्मियों ने यात्रियों का सामान भी बाहर निकाला। मगर, कुछ ही देर में पूरा कोच धुएं से भर गया। जिसके बाद कोच में जा पाना संभव नहीं हो पाया। उधर, इस दौरान रेल स्टाफ ने इस कोच को शेष कोचों से अलग कर दिया। घटना के करीब बीस मिनट बाद रायवाला से थानाध्यक्ष अमरजीत सिंह भी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए। जिसके बाद वनकर्मियों व पुलिसकर्मियों ने यात्रियों को आगे के कोचों में शिफ्ट करना शुरू किया। कुल मिलाकर इस निर्जन क्षेत्र में हुई इस दुर्घटना में वनकर्मी देवदूत की तरह साबित हुए।

आधा घंटे तक बिजली कटने के इंतजार में खड़ी रहे दमकल वाहन 

शताब्दी एक्सप्रेस के सी-5 कोच में लगी आग के करीब बीस मिनट बाद मौके पर ऋषिकेश, रायवाला व डोईवाला से दमकल की छह गाड़ि‍यां भी पहुंच गई थी। तब तक आधे कोच में ही आग फैली थी। मगर, मौके पर पहुंचने के बावजूद भी दमकल वाहन खड़े रहे। क्योंकि रेलवे की बीस हजार बोल्ट की लाइन का करंट जीरो नहीं हो पाया। दरअसल जिस डिब्बे में आग लगी उसके आगे रेल का इंजन और उसके साथ सात कोच पूरी तरह से सलामत थे, जिनमें यात्रियों को शिफ्ट किया गया। यदि लाइन काट दी जाती तो यह ट्रेन कई घंटों यात्रियों को लेकर जंगल में ही खड़ी रहती। लिहाजा इस हादसे के बीच ही शिफ्ट किए गए यात्रियों के साथ रेलगाड़ी को डोईवाला स्टेशन पहुंचाया गया। शताब्दी एक्सप्रेस के डोईवाला पहुंचने के बाद विद्युत लाइन को काटा गया, जिसके बाद दमकल वाहनों ने कोच में लगी आग बुझाई।

रात को होता हादसा तो गंभीर होते परिणाम 

इसे यात्रियों की खुशकिस्मती ही कहेंगे कि इतने बड़े हादसे में किसी यात्री को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। दिन का समय होने के कारण रेस्क्यू कार्य भी समय पर हो गया। अगर यदि यह हादसा रात को होता तो परिणाम गंभीर हो सकते थे। दरअसल इस वीरान जंगल में रात को तत्काल मदद मिलनी संभव नहीं है। डोईवाला व रायवाला के सत्यनाराण मंदिर से जो जंगलता की सड़क यहां पहुंचती है, उससे भी कोई जानकार ही यहां पहुंच सकता है। दूसरा यदि रात को यह घटना होती तो ट्रेन के डिब्बों को अलग करना और यात्रियों को रेस्क्यू करना भी इतना आसान नहीं होता।

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