मसूरी में बना था उत्तर भारत का पहला सिनेमा हॉल, पढ़िए पूरी खबर

वर्ष 1860 से 1868 के बीच माल रोड पर मसूरी बाजार के पास इलीसमेयर हाउस में नाटकों का मंचन किया जाने लगा। बाद में यही इलीसमेयर हाउस मैजेस्टिक सिनेमा हॉल बना।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sat, 14 Mar 2020 07:46 PM (IST) Updated:Sat, 14 Mar 2020 07:46 PM (IST)
मसूरी में बना था उत्तर भारत का पहला सिनेमा हॉल, पढ़िए पूरी खबर
मसूरी में बना था उत्तर भारत का पहला सिनेमा हॉल, पढ़िए पूरी खबर

मसूरी, सूरत सिंह रावत। पहाड़ों की रानी मसूरी की आबोहवा ने अंग्रेज अफसरों का दिल जीत लिया था, सो मसूरी बसाने के बाद उन्होंने यहां के विकास और सुख-सुविधाएं जुटाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। मसूरी में पेयजल, पथ प्रकाश व चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने के लिए अंग्रेज हमेशा तत्पर रहते थे। हालांकि, इस सबके बावजूद उन्हें यह बात लगातार अखर रही थी मसूरी में उनके अधिकारियों व नगरवासियों के लिए मनोरंजन की कोई सुविधा नहीं है। लिहाजा, वर्ष 1860 से 1868 के बीच माल रोड पर मसूरी बाजार (अब लाइब्रेरी बाजार) के पास इलीसमेयर हाउस में नाटकों का मंचन किया जाने लगा। यह सिलसिला वर्ष 1935 तक चला। इसी वर्ष से यहां बाइस्कोप दिखाए जाने लगा। बाद में यही इलीसमेयर हाउस मैजेस्टिक सिनेमा हॉल बना।

1890 में बने द रिंक थियेटर में होता था शेक्सपीयर के नाटकों का मंचन

इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी बताते हैं कि वर्ष 1880 में नगर पालिका परिसर में प्रेक्षागृह बन चुका था। वर्ष 1890 में कुलड़ी के मध्य 'द रिंक' जैसा भव्य थिएटर व स्केटिंग रिंक अस्तित्व में आया और यहां शेक्सपीयर के नाटकों का मंचन होने लगा। ब्रिटिश फौज के मेजर स्टीवर के पोते अभिनेता जॉन स्टीवर वर्ष 1880 से मसूरी में शेक्सपीयर के नाटकों का मंचन किया करते आ रहे थे। वर्ष 1908 में वह यूरोप से एक बाइस्कोप खरीद लाए और फिर चार्ल विली होटल, फौज के लंढौर डिपो व हिमालय क्लब में बाइस्कोप के शो चलने लगे।

1914 में यह बनकर तैयार हुआ 'द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस'

जॉन स्टीवर का सपना मसूरी में यूरोप तरह से सिनेमा घर स्थापित करने का था, लेकिन वर्ष 1912 में मसूरी में फैले फ्लेग से उनकी मौत हो गई। बाद में जस लिटिल नामक अंग्रेज ने वर्ष 1913 के आसपास 'द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस' का निर्माण शुरू करवाया। वर्ष 1914 में यह बनकर तैयार हुआ और यहां पहली फिल्म 'द होली नाइट' प्रदर्शित की गई। उन दिनों फिल्म के प्रचार-प्रसार के लिए लाइब्रेरी चौक और घंटाघर के समीप बैंड वादन किया जाता था।

अंग्रेज और भारतीय एक साथ देखते थे फिल्म

जिस प्रोजेक्टर से फिल्मों का प्रदर्शन किया जाता था, वह यूरोप में बने पहले 20 प्रोजेक्टरों में से एक था। एक दिलचस्प बात यह भी है कि मसूरी की माल रोड पर तब जहां भारतीयों का प्रवेश निषेध था, वहीं द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस में भारतीय व अंग्रेज एक साथ फिल्म देखते थे। इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी के अनुसार वर्ष 1948 में जब यहां पर फिल्म 'चंद्रलेखा' दिखाई जाने लगी तो दर्शकों की इतनी भीड़ उमड़ी कि टिकट बिक्री के लिए चार काउंटर बनाने पड़े। लेकिन, 20वीं सदी के अंत में यह सिनेमा हॉल बंद हो गया।

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खामोश खड़ा है आयरिश व ब्रिटिश वास्तुकला का प्रतीक

मसूरी के कुलड़ी बाजार के अंतिम छोर पर आयरिश व ब्रिटिश वास्तुकला के प्रतीक द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस की इमारत आज भी खामोश खड़ी है। उत्तर भारत के इस पहले सिनेमा हॉल की क्षमता 350 सीटों की थी और यहां शुरुआती दौर में शाम पांच बजे से रात नौ बजे तक दो शो चलते थे। उस दौर में फिल्में मूक होती थीं, सो पार्श्‍व में बैंड वादन होता था। तब मसूरी की आबादी मात्र 6,552 थी। जून 1931 में इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस में रोमांटिक नाइट फिल्म 'वन' आई तो रात ढाई बजे बैंड बजाकर शो चलाना पड़ा था। वर्ष 1930 के बाद मसूरी में रॉक्सी, कैपिटल, जुबली, रियाल्टो और वर्ष 1945 के बाद बसंत सिनेमा हॉल खुले। इनमें से रॉक्सी सिनेमा तो आग लगने के कारण बंद हो गया और बाकी हॉल भी 20वीं सदी के अंतिम दशक में धीरे-धीरे बंद होते चले गए। पुराने मैजेस्टिक सिनेमा के स्थान पर आज कॉर्निवल मल्टीफ्लेक्स सिनेमा नई तकनीक एवं साज-सज्जा के साथ बीते तीन सालों से चल रहा है।

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