पिरुल बनेगा किसानों के लिए वरदान, जैविक खाद मानकों पर उतरी खरी

उत्तराखंड में अब पिरुल से जैविक खाद बनार्इ जाएगी। पिरुल से बनी जैविक खाद पूरी तरह से मानकों पर खरी उतर चुकी है। इसमें वे सभी पोषक तत्व पाए गए हैं जो मिट्टी के लिए आवश्यक हैं।

By raksha.panthariEdited By: Publish:Sun, 27 Aug 2017 05:54 PM (IST) Updated:Sun, 27 Aug 2017 08:56 PM (IST)
पिरुल बनेगा किसानों के लिए वरदान, जैविक खाद मानकों पर उतरी खरी
पिरुल बनेगा किसानों के लिए वरदान, जैविक खाद मानकों पर उतरी खरी

देहरादून, [केदार दत्त]: उत्तराखंड में मुसीबत का सबब बनी पिरुल (चीड़ की पत्तियां) अब वरदान साबित होने जा रही हैं। पिरुल से बनी जैविक खाद मानकों पर खरी उतरी है। इसमें वे सभी पोषक तत्व पाए गए, जो माटी के लिए आवश्यक हैं। जानकारों के मुताबिक पिरुल से जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया को अगर बड़े पैमाने पर शुरू किया जाए तो इससे जंगल आग से बचेंगे ही, किसानों को घर में ही रोजगार उपलब्ध होने से आर्थिकी भी मजबूत होगी। यही नहीं, जैविक खाद की देशभर में बढ़ती मांग को पूरा करने में भी उत्तराखंड सक्षम होगा। 

आंकड़ों को देखें तो राज्य में वन विभाग के अधीन 25.86 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र में 15.23 फीसद हिस्से पर चीड़ का कब्जा है। पांच हजार फुट की ऊंचाई तक पसरे चीड़ के जंगलों से प्रतिवर्ष 23.66 लाख टन पत्तियां (पिरुल) गिरती हैं। यही पत्तियां अब तक परेशानी की वजह बनी हैं। गर्मियों में अग्निकाल (15 फरवरी से 15 जून) के दौरान जंगलों में आग के फैलाव का बड़ा कारण पिरुल ही बनता है। यही नहीं, जमीन पर पत्तियों की परत जमा होने के कारण बारिश का पानी सीधे बह जाता है। 

अब यही पिरुल आर्थिकी संवारने की दिशा में अहम भूमिका निभाएगा। मसूरी वन प्रभाग की जौनपुर रेंज में रेंज अधिकारी मनमोहन बिष्ट की पहल पर पिछले साल मार्च से प्रारंभ की गई पिरुल से जैविक खाद बनाने का प्रयोग सफल रहा है। बिष्ट के मुताबिक इस जैविक खाद के नमूने की दिल्ली स्थित आइटीएल लैब में जांच कराई गई। अब इसकी रिपोर्ट मिली है, जिसमें इसमें सभी पोषक तत्व पाए गए। गहरा भूरा रंग लिए इस जैविक खाद में पोटेशियम (0.039 फीसद), नाइट्रोजन (0.44 फीसद) व फास्फोरस (15.2 मिग्रा प्रति किलो) जैसे पोषक तत्व मौजूद हैं। यह भूमि की उर्वरता बनाए रखने को आवश्यक हैं। 

मसूरी वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी साकेत बडोला बताते हैं कि पिरुल की जैविक खाद कई मायने में लाभकारी होगी। उन्होंने बताया कि प्रभाग में पिरुल के अन्य उपयोगों पर भी कार्य चल रहा है। वहीं, कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी (देहरादून) के वैज्ञानिक डॉ.संजय कुमार के मुताबिक पिरुल से जैविक खाद एक बेहतर पहल है। 

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