ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव, 2060 तक बदल जाएगी हिमालय के वनों की जैवविविधता

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के प्रो. एनएच रवींद्रनाथ ने दावा किया है कि वर्ष 2060 तक हिमालय के वनों की जैवविविधता में 60 फीसद का बदलाव आ जाएगा।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Fri, 04 May 2018 04:49 PM (IST) Updated:Sun, 06 May 2018 05:02 PM (IST)
ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव, 2060 तक बदल जाएगी हिमालय के वनों की जैवविविधता
ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव, 2060 तक बदल जाएगी हिमालय के वनों की जैवविविधता

देहरादून, [जेएनएन]: वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) में 'क्लाइमेट रेसीलिएंट माउंटेन एग्रीकलच्र' विषय पर चल रहे शिखर सम्मेलन में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के प्रो. एनएच रवींद्रनाथ ने दावा किया है कि वर्ष 2060 तक हिमालय के वनों की जैवविविधता में 60 फीसद का बदलाव आ जाएगा। इसी के मुताबिक पर्वतीय क्षेत्रों की कृषि भी प्रभावित होगी। इसकी वजह प्रो. रवींद्रनाथ ने ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव को बताया।जलागम प्रबंध निदेशालय की ओर से आयोजित शिखर सम्मेलन में प्रो. रवींद्रनाथ ने अपना अध्ययन प्रस्तुत करते हुए कहा कि बीते 30 सालों में हिमालय क्षेत्रों के तापमान में करीब एक डिग्री सेल्सियस का इजाफा हो गया है। यदि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन इसी दर से होता रहा तो वर्ष 2060 तक तापमान में दो डिग्री का इजाफा हो जाएगा। ऐसे में न सिर्फ हिमालयी क्षेत्रों की जैवविविधता 60 फीसद तक प्रभावित हो जाएगी, बल्कि कृषि उपज पर भी 30 फीसद तक का असर पड़ेगा।

उन्होंने यह भी कहा कि बीते कुछ सालों में बारिश का पैटर्न बदलने लगा है। मानसून में निरंतरता नहीं रह पा रही है। वर्ष 2014 व 2015 में बारिश बेहद कम रहने से रबी की फसल पर प्रतिकूल असर पड़ा था। 2016 में भी स्थिति अधिक संतोषजनक नहीं रही, हालांकि वर्ष 2017 कुछ अच्छा रहा। यदि मौसम में यही परिवर्तन रहा और तापमान बढ़ता रहा तो भविष्य में मलेरिया का प्रकोप भी बढ़ सकता है।

अब जलवायु परिवर्तन के लिहाज से उगाई जाए फसल

गौतमबुद्ध यूनिवर्सिटी ग्रेटर नोएडा के पर्यावरण विभाग ने प्रमुख एनपी मेलकानिया ने अपने प्रस्तुतीकरण में कहा अधिक उत्पादन व रोग प्रतिरोधकता के लिहाज से कृषि को देखा जा रहा है, जबकि आज के दौर में कृषि को जलवायु परिवर्तन के लिहाज से देखा जाना चाहिए। यह प्रयास किए जाएं कि बढ़ते तापमान के बीच कृषि उपज किस तरह बढ़ाई जा सकती है। इसके अलावा शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन अनुश्री भट्टाचार्जी, सी सेबास्टियन, प्रियंका स्वामी, वीपी भट्ट, डीवी सिंह, एनएन पांडे आदि ने भी बताया कि किस तरह पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि उपज को बढ़ाया जा सकता है।

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