मान्यता है कि सुरकुट पर्वत पर शिव की जटाओं से गिरी गंगा की एक धारा

मान्यता है जब राजा भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए तो उस समय शिव की जटाओं से गंगा की एक धारा निकलकर सुरकुट पर्वत पर गिरी। यहां स्थापित सुरकंडा मंदिर में श्रद्धालुओँ की भीड़ रहती है।

By BhanuEdited By: Publish:Wed, 10 Oct 2018 09:45 AM (IST) Updated:Wed, 10 Oct 2018 08:51 PM (IST)
मान्यता है कि सुरकुट पर्वत  पर शिव की जटाओं से गिरी गंगा की एक धारा
मान्यता है कि सुरकुट पर्वत पर शिव की जटाओं से गिरी गंगा की एक धारा

देहरादून, [जेएनएन]:  सिद्धपीठ मां सुरकंडा मंदिर इकलौता ऐसा सिद्धपीठ है जहां गंगा दशहरे के मौके पर मेला लगता है। मान्यता है कि जब राजा भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए तो उस समय शिव की जटाओं से गंगा की एक धारा निकलकर सुरकुट पर्वत पर गिरी। इसके प्रमाण के रूप में मंदिर के नीचे की पहाड़ी पर जलस्रोत फूटता है। 

वैसे तो सुरकंडा मंदिर में मां के दर्शन पूरे साल भर कर पुण्य लाभ अर्जित किया जा सकता है। गंगा दशहरे व नवरात्र पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व बताया गया है। आस्था है कि इन अवसरों पर मां के दर्शन करने से समस्त पाप मिट जाते हैं और सभी मनोकामना पूर्ण होती है। इसलिए गंगा दशहरे व नवरात्र पर मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

इतिहास 

चम्बा-मसूरी मोटर मार्ग पर कद्दूखाल से डेढ़ किमी ऊपर करीब तीन हजार फुट की ऊंचाई सुरकुट पर्वत पर मां सुरकंडा का मंदिर है। कद्दूखाल से मंदिर तक पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। 

ये है पौराणिक कथा 

मंदिर के पौराणिक उल्लेख के अनुसार जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया। शिव के मना करने पर भी शिव की पत्नी व राजा दक्ष की पुत्री यज्ञ में चली गई वहां उसका अपमान हुआ और वह यज्ञ कुंड में कूद गई। इस पर शिव ने क्रोधित होकर सती का शव त्रिशूल में लटकाकर हिमालय में चारों ओर घुमाया। इससे सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा तब से इस जगह का नाम सुरकंडा पड़ गया और जो बाद में सिद्धपीठ सुरकंडा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

इस तरह पहुंचे मां सुरकंडा मंदिर

सड़क मार्ग: मां सुरकंडा मंदिर हर जगह से आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां के लिए हर जगह से वाहनों की सुविधा है। मंदिर के नीचे कद्दूखाल तक वाहनों से पहुंचना पड़ता है और उसके बाद करीब डेढ़ किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़कर मंदिर पहुंचते हैं। 

बाहर से आने वाले यात्री ऋषिकेश से चम्बा 60 किमी, चम्बा से कद्दूखाल 20 किमी वाहन से आ सकते हैं। वाहन दिन में हर समय मिल जाते हैं। इसके अलावा देहरादून से मसूरी होकर करीब 60 किमी की दूरी तय कर कद्दूखाल पहुंच सकते हैं। 

रेल मार्ग- नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार व देहरादून हैं।

वायु मार्ग- नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट है।

दर्शनों का विशेष महातम्य 

सुरकंडा मंदिर के पुजारी रमेश प्रसाद लेखवार के अनुसार मां सुरकंडा के दर्शनों का विशेष महातम्य है। मां सभी की मनोकामना पूर्ण करने वाली है। नवरात्र व गंगा दशहरे के मौके पर मां के दर्शन का विशेष महत्व है। मां के दर्शन करने से पापों का नाश होता है। 

होती है मनोकामना पूर्ण 

मां सुरकंडा मंदिर की प्रबंध समिति के प्रबंधक उत्तम सिंह जड़धारी बताते हैं कि मां के दर्शन से पुण्य फल की प्राप्ति होती है लोग बड़ी आशा व विश्वास के साथ मन्नत मांगने आते हैं। जब कोई भी अपने शुभ कार्य की शुरुआत करता है तो वह सबसे पहले मंदिर के दर्शन करने मंदिर आता है। मां सभी की मनोकामना पूर्ण करने वाली है।

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