प्रभारी व्यवस्था के भरोसे बिजली निगम

राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश के तीनों बिजली निगमों में निदेशक स्तर के कई पद लंबे समय से खाली पडे़

By Edited By: Publish:Mon, 02 Feb 2015 01:00 AM (IST) Updated:Mon, 02 Feb 2015 01:00 AM (IST)
प्रभारी व्यवस्था के भरोसे बिजली निगम

राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश के तीनों बिजली निगमों में निदेशक स्तर के कई पद लंबे समय से खाली पडे़ हैं, मगर इन पदों पर नियुक्ति का मामला शासन में लटका हुआ है। दिलचस्प पहलू यह है कि शासन नियुक्ति के नए नियम भी तैयार कर चुका है। नए नियमों को मुख्यमंत्री का अनुमोदन मिल चुका है, मगर लगभग डेढ़ माह बाद भी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी। दो दिन पूर्व ही उत्तराखंड जलविद्युत निगम के प्रबंध निदेशक के इस्तीफे के बाद अब यह पद भी खाली हो चुका है। नतीजा यह कि तीनों बिजली निगमों में कई महत्वपूर्ण पदों पर प्रभारी व्यवस्था से काम चल रहा है।

उत्तराखंड की विद्युत वितरण कंपनी ऊर्जा निगम में निदेशक परिचालन व निदेशक परियोजना के पद खाली पड़े हैं। जलविद्युत निगम में निदेशक ऑपरेशन का पद खाली है। इसके अलावा तीनों निगमों में निदेशक वित्त व निदेशक मानव संसाधन के पद भी लंबे अरसे से खाली पड़े हैं, वहीं पारेषण निगम में प्रबंध निदेशक का पद रिक्त है। जलविद्युत निगम के प्रबंध निदेशक का पद भी दो दिन पूर्व खाली हो चुका है। जाहिर है इन महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती न होने की वजह से बिजली निगमों का कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

वर्ष 2012 व 2013 में शासन ने निदेशक वित्त व निदेशक मानव संसाधन के पदों के लिए नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की थी, मगर तब पर्याप्त संख्या में अभ्यर्थी नहीं मिल पाए। इसकी मुख्य वजह थी, अभ्यर्थियों के लिए जरूरी अर्हताओं में महाप्रबंधक, मुख्य अभियंता या फिर अधिशासी निदेशक पद के अनुभव के साथ ही 8900 ग्रेडपे या उससे अधिक वेतनमान की शर्त भी रखा जाना। उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के अलावा अन्य राज्यों में महाप्रबंधक, मुख्य अभियंता, अधिशासी निदेशक स्तर के पद पर 8900 ग्रेडपे नहीं मिल रहा है। निजी कंपनियों में भी इस तरह के ग्रेड वेतन की व्यवस्था नहीं है।

ऐसे में शासन ने करीब डेढ़ माह पूर्व ही निदेशक पद पर नियुक्ति के लिए नए नियम तैयार किए। इसमें ग्रेडपे व वेतनमान वाली शर्ते हटा दी गई, जबकि शैक्षिक अर्हता व ऊर्जा क्षेत्र में कार्य का अनुभव संबंधी शर्ते कमोबेश पूर्ववत रखी गई। नियुक्ति के नए नियमों को मुख्यमंत्री का अनुमोदन मिलने के बाद भी इस बाबत न तो शासनादेश जारी हो पाया है और न नियुक्ति प्रक्रिया ही अब तक शुरू हो पाई है। जाहिर है उच्च पदों पर भी प्रभारी व्यवस्था के भरोसे काम चलने से निगमों की कार्य क्षमता प्रभावित हो रही है।

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