प्रेमचंद की रचनाओं में लोकतत्व का अत्यंत गहरा

जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा: प्रेमचंद की रचनाओं के पात्र लोक जीवन से उभरे हैं, जो कि जनमानस की पीड़ा को

By Edited By: Publish:Fri, 31 Jul 2015 10:49 PM (IST) Updated:Fri, 31 Jul 2015 10:49 PM (IST)
प्रेमचंद की रचनाओं में लोकतत्व का अत्यंत गहरा

जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा: प्रेमचंद की रचनाओं के पात्र लोक जीवन से उभरे हैं, जो कि जनमानस की पीड़ा को अभिव्यक्त करते हैं। प्रेमचंद की रचनाओं में लोक तत्व अत्यंत गहरा है। यह बात भिलाई छत्तीसगढ़ से पहुंचे प्रेमचंद साहित्य के विशेषज्ञ ने डॉ. परदेशी राम वर्मा ने कही। युग प्रवर्तक उपन्यासकार प्रेमचंद्र के 135वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में यहां आयोजित ती न दिनी राष्ट्रीय संगोष्ठी में उन्होंने कही।

केंद्रीय ¨हदी निदेशालय एवं महादेवी वर्मा सृजन पीठ के संयुक्त तत्वावधान में यहां एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के तीसरे दिन उपन्यासकार प्रेमचंद्र का भावपूर्ण स्मरण किया गया। संगोष्ठी के तीसरे व अंतिम रोज 'लोक साहित्य : परंपरा और विकास' विषय पर बोलते हुए डॉ. परदेशी ने कहा कि लोक की गहरी समझ के कारण ही प्रेमचंद पात्र इतने जीवंत हैं कि पाठक को उनमें अपना अक्स नजर आता है। उनकी रचनाओं की लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण भी यही है कि वह लोक जीवन के कटु यथार्थ को बड़ी ही बेबाकी के साथ अभिव्यक्त करते हैं। एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा के अंग्रेजी के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो.एसए हामिद ने कहा कि लोक शब्द अंग्रेजी के फोक का ¨हदी रूपांतर है। जिसके सीमित अर्थ हैं, लेकिन लोक शब्द भारतीय लोक जीवन को व्यापक अर्थो में अभिव्यक्त करता है।

डीएसबी परिसर नैनीताल के ¨हदी प्राध्यापक प्रो. चंद्रकला रावत ने कहा कि लोक मनुष्य समाज का वह वर्ग है, जो अभिजात्य संस्कार शास्त्रीयता और पांडित्य की चेतना अथवा संस्कार से शून्य है और जो एक परंपरा के प्रवाह में जीवित रहता है। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुमाऊं विवि के ¨हदी विभागाध्यक्ष प्रो. एसएस बिष्ट ने कहा कि लोक साहित्य का संसार असीमित है। इससे पहले प्रेमचंद के चित्र पर माल्यार्पण से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। इस मौके पर डॉ. राजीव जोशी की पुस्तक 'हिमांशु जोशी: रूप एक रंग अनेक' का विमोचन किया गया। वहीं शोधार्थी पवनेश ठकुराठी की प्रेमचंद पर केंद्रित शोध पुस्तिका 'प्रेम चंद के उपन्यासों के नारी पात्र' का लोकार्पण किया गया। वहीं डॉ. मनीषा पांडे और ललित चंद्र जोशी ने ऑडियो विजुअल के माध्यम से कुमाऊं की लोक संस्कृति की झलक प्रस्तुत की।

संगोष्ठी में डॉ. विद्या बिंदु सिंह, प्रो. वीडीएस नेगी, डॉ. शंभू दत्त पांडे शैलेश, डॉ. प्रभा पंत, डॉ. मंजुल मठपाल, डॉ. चंद्रा खनी, डॉ. हेम चंद्र दूबे, डॉ. तेजपाल सिंह, डॉ. ममता पंत, डॉ. प्रीति आर्या, डॉ. नेहा पालनी, डॉ. जगदीश चंद्र जोशी, डॉ. विवेकानंद पाठक, डॉ. रीता तिवारी, खेमकरण सोमन, दयाकृष्ण भट्ट, कमलेश कुमार मिश्रा, प्रवेश चंद्र जोशी आदि ने विचार रखे। संचालन महादेवी वर्मा सृजन पीठ के निदेशक प्रो. देव सिंह पोखरिया ने तथा धन्यवाद ज्ञापन शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत ने किया।

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