...जब मुनीर बख्श आलम ने समझा गीता का तत्व ज्ञान,यथार्थ गीता का हकीकी गीता नाम से किया था उर्दू अनुवाद

बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में नियुक्त सहायक प्रोफेसर डा. फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर पक्ष-विपक्ष दोनों ही खेमों में जबरदस्त चर्चा है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 21 Nov 2019 04:22 PM (IST) Updated:Thu, 21 Nov 2019 10:41 PM (IST)
...जब मुनीर बख्श आलम ने समझा गीता का तत्व ज्ञान,यथार्थ गीता का हकीकी गीता नाम से किया था उर्दू अनुवाद
...जब मुनीर बख्श आलम ने समझा गीता का तत्व ज्ञान,यथार्थ गीता का हकीकी गीता नाम से किया था उर्दू अनुवाद

सोनभद्र, जेएनएन। बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में नियुक्त सहायक प्रोफेसर डा. फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर पक्ष-विपक्ष दोनों ही खेमों में जबरदस्त चर्चा है। इस बहस में उस व्यक्तित्व को शामिल किया जा रहा है जिसने मजहब से नहीं भाषा से प्रेम किया और उसकी कृतियों को पढ़-लिखकर एक से बढ़कर नया कीर्तिमान स्थापित किया। वे हैं सोनांचल के स्व. मुनीर बख्श आलम। यथार्थ गीता के उर्दू अनुवादक स्व. आलम संस्कृत भाषा सीखने में कंटीले रास्तों का सफर पूरा किया।

एक जुलाई, 1943 को शाहगंज थाना के बनौरा गांव में जन्मे आलम साहब शुरू से ही मेधावी थे। संस्कृत से गहरा लगाव का ही परिणाम था कि मुसलमान होते हुए भी हाईस्कूल, इंटर के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत से स्नातक की डिग्री ली। यहां हिंदी में परास्नातक और बीएड करने के बाद सोनभद्र में राजा शारदा महेश इंटर कॉलेज में शिक्षक की नौकरी की। फिर सीमेंट फैक्ट्री चुर्क स्थित इंटर कॉलेज में संस्कृत शिक्षक के रूप में नियुक्ति हुई। उन्होंने यहां हाईस्कूल व इंटर के छात्रों को संस्कृत पढ़ाई। बड़े पुत्र खुर्शीद आलम कहते हैं, पिताजी का मन संस्कृत में बहुत ज्यादा लगता था। यही वजह थी कि 1983-84 से लेकर 2003 तक चुर्क इंटर कॉलेज में संस्कृत के शिक्षक पद पर रहे। हिंदी भी पढ़ाया करते थे। संस्कृत भाषा पर और अधिक मजबूत पकड़ बनाने के लिए मुनीर बख्श आलम स्वामी अडग़ड़ानंद के सानिध्य में भी रहे। यहां उन्होंने भागवत गीता का सार गर्भित अध्ययन किया। उसके बाद यथार्थ गीता पढ़ी। खुर्शीद आलम कहते हैं कि स्थिति यह हुई कि पिताजी ने 2000 में यथार्थ गीता का उर्दू अनुवाद हकीकी गीता नाम से कर दिया।

खुर्शीद बताते हैं कि उनका पूरा परिवार संस्कृत भाषा का सम्मान करता है। घर का हर बच्चा संस्कृत भाषा में अव्वल दर्जा प्राप्त करता है। वे खुद हाईस्कूल में संस्कृत विषय में अधिकतम अंका हासिल किए थे। कहते हैं कोई भी भाषा जाति व धर्म से बंधी नहीं है। हर संप्रदाय के लोग कोई विषय पढ़ सकता है और पढ़ा सकता है। जून, 2019 में दुनिया को अलविदा कहने वाले आलम साहब ने निश्चित ही संस्कृत भाषा को ख्याति दिलाई है। विरोध के नाम पर दुकान चलाने वाले चंद चाटुकार यह समझ लें कि ज्ञान किसी का संपत्ति नहीं है। ज्ञानी का सम्मान हर हाल में होना चाहिए।

 

व्यक्तिगत नहीं वैश्विक है सनातन परंपरा : हनीफ खां शास्त्री

भारत की महिमा सनातन परंपरा है। यह वैश्विक है वह व्यक्तिगत नहीं। सनातन परंपरा का कोई इतिहास नहीं है बल्कि यह इतिहास से परे है। ये बातें बुधवार को संस्कृत के विद्वान व पद्मश्री (साहित्य और शिक्षा) डा. मोहम्मद हनीफ खां शास्त्री ने कही।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ. फिरोज खां की नियुक्त पर मचे बवाल पर मर्माहत पद्मश्री डा. शास्त्री ने विरोध पर निंदा करते हुए कहा कि हम संकुचित मानसिकता के साथ अपने वेदों को विश्व पटल पर स्थापित नहीं कर सकते। इसके लिए हमें इससे उबरने की आवश्यकता है। हमारी पूजा पद्धति भिन्न होने मात्र से विरोध किया जाना उचित नहीं है। गीता में लिखे एक एक शब्द का रूपांतरण कुरान की आयतों में मिलता है। ईश्वर एक है। यही हमारी सनातन संस्कृति भी है। यह कत्तई आधार नहीं हो सकता कि मुसलमान कभी संस्कृत का ज्ञाता नहीं हो सकता। उसका सबसे बड़ा उदाहरण मैं स्वयं हूं। गीता एवं कुरान में लिखे शब्दों को सरल शब्दों में हमने अपने किताब में उकेरा है। ज्ञान किसी मजहब की जंजीर में जकड़ा नहीं जा सकता। गौरतलब है कि डा. शास्त्री वर्ष 2009 के लिए व्यक्तिगत श्रेणी में राष्ट्रीय सांप्रदायिक सदभाव पुरस्कार के विजेता हैं। केंद्र सरकार ने उन्हें 2019 में चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री (साहित्य और शिक्षा) से सम्मानित किया। वह राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में प्रोफेसर रहे हैं।

chat bot
आपका साथी