बनारस की तिरंगा बर्फी और ढलुआ मूर्ति धातुशिल्प को मिला जीआइ टैग, उत्तर प्रदेश में रिकार्ड 75 पर पहुंच गई इसकी संख्या

वासंतिक नवरात्र की अष्टमी पर मंगलवार को जीआइ रजिस्ट्री चेन्नई की वेबसाइट पर इन दोनों उत्पादों को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआइ) टैग जारी करने की सूचना जारी कर दी गई। इस तरह काशी क्षेत्र यानी पूर्वांचल में कुल 34 जीआई टैग युक्त उत्पाद हो गए हैं। यह किसी भू-भाग विशेष के नाम सर्वाधिक बौद्धिक संपदा अधिकार का रिकार्ड माना जा रहा है।

By pramod kumar Edited By: Vivek Shukla Publish:Wed, 17 Apr 2024 09:43 AM (IST) Updated:Wed, 17 Apr 2024 09:43 AM (IST)
बनारस की तिरंगा बर्फी और ढलुआ मूर्ति धातुशिल्प को मिला जीआइ टैग, उत्तर प्रदेश में रिकार्ड 75 पर पहुंच गई इसकी संख्या
ढलुआ मूर्ति धातु शिल्प (मेटल कास्टिंग क्राफ्ट) बनारस की बौद्धिक संपदा के रूप में पंजीकृत हो गई है।

HighLights

  • वाराणसी की पहचान से जुड़े दो उत्पादों के पंजीकरण संग काशी क्षेत्र में हो गए कुल 34 जीआई टैग
  • बरेली जरदोजी, केन-बंबू क्राफ्ट, थारू इंब्रायडरी, पिलखुआ हैंडब्लाक प्रिंट टेक्सटाइल भी पंजीकृत

जागरण संवाददाता, वाराणसी। परतंत्र भारत में स्वतंत्रता की अलख जगाने वाली तिरंगी बर्फी और पूजन-अनुष्ठान से लेकर साज-सज्जा के सामान के तौर पर देश-विदेश में छाने वाली ढलुआ मूर्ति धातु शिल्प (मेटल कास्टिंग क्राफ्ट) बनारस की बौद्धिक संपदा के रूप में पंजीकृत हो गई है।

वासंतिक नवरात्र की अष्टमी पर मंगलवार को जीआइ रजिस्ट्री चेन्नई की वेबसाइट पर इन दोनों उत्पादों को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआइ) टैग जारी करने की सूचना जारी कर दी गई। इस तरह काशी क्षेत्र यानी पूर्वांचल में कुल 34 जीआई टैग युक्त उत्पाद हो गए हैं। यह किसी भू-भाग विशेष के नाम सर्वाधिक बौद्धिक संपदा अधिकार का रिकार्ड माना जा रहा है।

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इसके अलावा बरेली जरदोजी, केन-बंबू क्राफ्ट, थारू इंब्रायडरी, पिलखुआ हैंडब्लाक प्रिंट टेक्सटाइल का भी जीआइ पंजीकरण जारी किया गया है। इसके साथ प्रदेश स्तर पर जीआइ उत्पादों की संख्या अब 75 हो गई है। इसमें 58 हस्तशिल्प और 17 कृषि एवं खाद्य उत्पाद हैं। यह किसी राज्य के नाम सर्वाधिक जीआइ टैग का रिकार्ड है।

जीआइ विशेषज्ञ पद्मश्री डा. रजनीकांत ने बताया कि 2014 के पहले वाराणसी क्षेत्र से मात्र बनारस ब्रोकेड एवं साड़ी और भदोही हस्तनिर्मित कालीन ही जीआइ पंजीकृत थे। मात्र नौ वर्षों में यह संख्या 34 तक पहुंच गई है। इससे भारत की समृद्ध विरासत को अंतरराष्ट्रीय कानूनी पहचान मिली।

इससे लगभग वाराणसी परिक्षेत्र व नजदीकी जीआइ पंजीकृत जिलों में ही लगभग 30 हजार करोड़ का वार्षिक कारोबार के साथ 20 लाख लोगों को अपने परंपरागत उत्पादों का कानूनी संरक्षण प्राप्त हुआ है।

रोजगार के नए अवसर खुले, पर्यटन- व्यापार व ई-मार्केटिंग के माध्यम से यहां के उत्पाद तेजी से दुनिया के सभी भू-भाग में पहुंच रहे हैं। अकेले ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के तकनीकी सहयोग से 14 राज्यों में 148 जीआइ उत्पादों का पंजीकरण कराया जा चुका है। 

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तिरंगी बर्फी

आजादी के आन्दोलन में क्रान्तिकारियों की खुफिया बैठकों एवं गुप्त सूचनाओं केे लिए इसका इजाद हुआ जो आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्य धारा में अलख जगाने लगा। इसमें केसरिया रंग के लिए केसर, हरे रंग के लिए पिस्ता और बीच के सफेद रंग में खोए की सफेदी व काजू का प्रयोग किया जाता रहा है।

बनारस ढलुआ शिल्प

ठोस छोटी मूर्तियां जिसमें मं अन्नपूर्णा, लक्ष्मी-गणेश, दुर्गाजी, हनुमानजी के साथ ही विभिन्न प्रकार के यंत्र, नक्सीदार घंटी-घंटा, सिंहासन, आचमनी पंचपात्र व सिक्कों की ढलाई वाले सील ख्यात रहे हैं। इसे बनारस के काशीपुरा मोहल्ले में बनाया जाता रहा है।

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