Lockdown में वो सात दिन : कोरोना संकट के बीच सर्जनाएं मुखर, विशिष्‍टजनों कुछ ऐसे बीता रहे पल

कोरोनावायरस पर नियंत्रण के लिहाज से देश भर में घोषित लाॅकडाउन ने भले घरों में रहने को विवश किया लेकिन इस दौरान वाराणसी में लोगों ने घरों में दिन बिताया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 01 Apr 2020 05:26 PM (IST) Updated:Wed, 01 Apr 2020 05:26 PM (IST)
Lockdown में वो सात दिन : कोरोना संकट के बीच सर्जनाएं मुखर, विशिष्‍टजनों कुछ ऐसे बीता रहे पल
Lockdown में वो सात दिन : कोरोना संकट के बीच सर्जनाएं मुखर, विशिष्‍टजनों कुछ ऐसे बीता रहे पल

वाराणसी, जेएनएन। कोरोना पर नियंत्रण के लिहाज से देश भर में घोषित लाॅकडाउन ने भले घरों में रहने को विवश किया लेकिन इस दौरान लोगों ने घरों में दिन बिताया। अपनों को भरपूर समय दिया तो सर्जनाएं भी मुखर हो उठीं। सात दिन के अनुभव विशिष्टजनों की जुबानी...

सुरों में पिरो रही मइया की महिमा

हमेशा भ्रमण करती रही हूं। लाकडाउन में दिशा निर्देशों का पालन करते हुए घर में हूं। यह घर में रह कर खुद को बचाने और देश सेवा का सुख पाने का सुअवसर है। मुझे देश से प्रेम है तो मैंने इसे सकारात्मक रूप में लिया। कामवाली को छुट्टी दे दी है और पति फिल्म निर्देशक शुभंकर घोष व दोनों बेटियों संग मिल कर काम कर रही। असुरों का नाश करने वाली मां की आराधना कर रही। साधना में समय दे रही और नवरात्र के नौ दिनों के गाने गा रही। इसे बनारस के संजीव मिश्र भेज रहे, कंपोज कर रही और सुरों में पिरो रही। यह समय है मां को दिल से पुकारने का। ईश्वर के प्रतिनिधियों डाक्टर-नर्सों का आभार जताने का।

-पद्मश्री डा. सोमा घोष, शास्त्रीय गायिका।

संस्कार गंगा को प्रवाह, जीआइ का खींच रहे खाका

लॉकडाउन के दौरान घर में रहना और अपने हिस्से का योगदान करते जाना राष्ट्र सेवा है। इसका पूरी तरह पालन तो कर ही रहा लंबे अरसे बाद माता जी, अपने और दो छोटे भाइयों के भरे पूरे परिवार के साथ 28 वर्ष बाद मिल बैठने का अवसर मिला। बच्चों के साथ नवरात्र की सफाई और पूजा पाठ करना बच्चों के लिए संस्कार गंगा से कम नहीं। लगा ही नहीं कि समय कैसे बीत। संचार माध्यमों पर देश-दुनिया की जानकारी संग लैपटाप पर जिम्मेदारी निभा रहे। यूपी के 10 व मध्य प्रदेश के 7 महत्वपूर्ण उत्पादों की जीआइ के लिए दस्तावेजीकरण और रिसर्च कर रहा। इसमें इतिहास को जानना अभिभूत कर रहा।

-पद्मश्री डा. रजनीकांत, जीआइ विशेषज्ञ।

इस जतन से अभिभूत है मन

बीता एक सप्ताह अत्यंत मनहूसियत से भरा था। देश-दुनिया की खबरें पढ़-देख कर चिंता होती रही कि अब क्या होगा लेकिन देश-प्रदेश के नेतृत्व की जनता के प्रति संवेदना देखकर अच्छा लगा। सेवा भारती के तत्वावधान में मैैं अपनी क्षमता अनुसार सहायता का जतन किया जिसने मन को संतुष्टि दी। शहर से लेकर गांव तक अपनों के लिए अपनों को एक साथ खड़ा हो जाने के भाव ने अभिभूत किया। कोरोना महामारी के दृष्टिगत घोषित लॉकडाउन जरूरी है लेकिन दिहाड़ी मजदूर और छोटे व्यापारियों के लिए कष्टप्रद है। सात दिनों में उनकी चिंता में पूरे परिवार के साथ लगा रहा लोगों को भी प्रेरित किया।

-राहुल सिंह, सचिव, संत, अतुलानंद स्कूल समूह।

भारतीय मनीषियों के निष्कर्षों का अध्ययन मनन कर रहा

कोरोना और लॉक डाउन के बीच परिवार के साथ घर में हूं। सुर-लय-ताल सब खो सा गया है। मानव और मानवता दोनों की कसौटी है, परंपरा, आस्था, विश्वास के मूल भारतीय मनीषियों के निष्कर्षों का अध्ययन-मनन कर रहा हूं। विगत पांच वर्षों की सुबह-ए-बनारस की स्वर्णिम आभा के साथ प्रकृति की आराधना और भारतीय संस्कृति और आस्था के प्रति जागरूकता कार्य बाधित होने का आंतरिक कष्ट है। प्रात: तीन बजे से शुरू दिनचर्या ने जीवन को सार्थक दिशा प्रदान करने की अप्रतिम परस्थितियों के निर्माण को बाधित कर दिया है। इस दौरान अर्जित ज्ञान देश के उत्थान में काम आएगा।

-डा. रत्नेश वर्मा, संस्थापक सचिव, सुबह-ए-बनारस।

मस्तिष्क में आकार पा रहीं पटकथाएं

भागदौड़ की जिंदगी के बीच कभी कभी लगता था कि काश दुनिया ठहर जाए, अपनों के बीच कुछ समय गुजर जाए। वैश्विक महामारी कोरोना के कारण लाकडाउन ने यह समय दिया है कि घर में रहें और खुद के साथ ही देश को बचाएं। ऐसे समय में बरसों से बंद पड़ी किताबों के पन्ने पलट रहा। इनके बीच मस्तिष्क में पटकथाएं आकार ले रही हैैं और अभिनय धारा संवर रही है। दरअसल, इस समय का पूरा सदुपयोग कर लेना चाहता हूं। एक रंगकर्मी के लिए रंगकर्म से दूर होने से बड़ा कष्ट कोई और नहीं हो सकता लेकिन संचार माध्यमों के जरिए इनसे नजदीकियां बनी हुई हैैं।

-अर्पित सिधोरे, रंगकमर्मी।

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