Shri Krishna Janmashtami 2022 : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की 19 को सजेगी झांकी, रोहिणी मतावलंबी 20 अगस्त को मनाएंगे प्रभु का जन्मोत्सव

इस बार जन्माष्टमी महोत्सव 19 अगस्त को मनाया जाएगा। गोकुलाष्टमी (उदयकाल में अष्टमी) भी मथुरा-वृंदावन में इसी दिन मनाई जाएगी। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि 18 की रात 12.14 बजे लग रही है जो 19 की रात 1.06 बजे तक रहेगी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Tue, 16 Aug 2022 05:03 PM (IST) Updated:Wed, 17 Aug 2022 09:20 PM (IST)
Shri Krishna Janmashtami 2022 : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की 19 को सजेगी झांकी, रोहिणी मतावलंबी 20 अगस्त को मनाएंगे प्रभु का जन्मोत्सव
सनातन धर्म में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मान्यता है।

जागरण संवाददाता, वाराणसीः सनातन धर्म में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मान्यता है। इस तिथि में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार जन्माष्टमी महोत्सव 19 अगस्त को मनाया जाएगा। गोकुलाष्टमी (उदयकाल में अष्टमी) भी मथुरा-वृंदावन में इसी दिन मनाई जाएगी। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि 18 की रात 12.14 बजे लग रही है जो 19 की रात 1.06 बजे तक रहेगी। उदय व्यापिनी रोहिणी मतावलंबी वैष्णवजन 20 अगस्त को व्रत रखेंगे और श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाएंगे। रोहिणी नक्षत्र 20 की भोर 4.58 बजे लग रहा है जो 21 अगस्त को प्रातः सात बजे तक रहेगा।

ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्द्धरात्रि में वृष राशि के चंद्रमा में हुआ था। भगवान विष्णु के दशावतारों में से सर्व प्रमुख पूर्णावतार सोलह कलाओं से परिपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण को माना जाता है जो द्वापर के अंत में हुआ था। यह सर्वमान्य पापघ्न व्रत बाल, कुमार, युवा, वृद्धा सभी अवस्था वाले नर-नारियों को करना चाहिए। इससे अनेकानेक पापों की निवृत्ति और सुखादि की वृद्धि होती है।

व्रतियों को चाहिए की उपवास से पहले दिन रात में अल्पाहार कर रात में जितेंद्रिय रहें। व्रत के दिन प्रातः स्नानादि कर सूर्य, सोम, पवन, दिग्पति, भूमि, आकाश, यम और ब्रह्मा आदि को नमस्कार कर उत्तराभिमुख बैठें। हाथ में जल-अक्षत, कुश-फूल लेकर मास, तिथि, पक्ष का उच्चारण कर जन्माष्टमी व्रत का संकल्प लें।

दोपहर में काले तिल युक्त जल से स्नान कर माता देवकी के लिए सूतिका गृह नियत करें। उसे स्वच्छ व सुशोभित कर सूतिका उपयोगी समस्त सामग्री यथा क्रम रखें। सुंदर बिछौना पर अक्षतादि का मंडल बनाकर कलश स्थापन करें। उस पर सद्यः प्रसूत श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करें। रात में भगवान के जन्म के बाद जागरण व भजन आदि करना चाहिए। इस व्रत को करने से संतति, धन समेत कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। अंत में बैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है।

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