शोध-अनुसंधान : अपने मूल गुणों के साथ नए अवतार में दिखेंगी जीरा-32, काला नमक व अन्य परंपरागत किस्में
जीरा-32 काला नमक व काला चावल नई गुणवत्ता व अपनी पुरानी खुशबू के साथ आपकी रसोई को सुगंध से भर देंगे। साथ ही प्रति हेक्टेयर इनकी उत्पादकता भी पहले से ज्यादा होगी। अपने पुराने गुणों के साथ ही इन चावलों में अन्य पोषक तत्वों की मात्रा भी भरपूर उपलब्ध होगी।
वाराणसी, शैलेश अस्थाना। वह दिन दूर नहीं, जब जीरा-32, काला नमक व काला चावल नई गुणवत्ता व अपनी पुरानी खुशबू के साथ आपकी रसोई को सुगंध से भर देंगे। साथ ही प्रति हेक्टेयर इनकी उत्पादकता भी पहले से ज्यादा होगी। अपने पुराने गुणों के साथ ही इन चावलों में अन्य पोषक तत्वों की मात्रा भी भरपूर उपलब्ध होगी। अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (इरी-आइआरआरआइ) के वाराणसी स्थित दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र के विज्ञानी इसे संभव बनाने में लगे हुए हैं।
संस्थान के निदेशक डा. सुधांशु सिंह बताते हैं कि अपने बेजोड़ स्वाद व सुगंध के लिए मशहूर धान की इन प्रजातियों की उत्पादकता कम होने से किसान धीरे-धीरे इनसे दूर होते गए। खेती का रकबा घटने के साथ ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी इन प्रजातियों के जेनेटिक्स में भी बदलाव आ गया और ये अपने मौलिक गुणों से दूर हो गए। संस्थान के विज्ञानी पुराने गुणों को चिह्नित करने के साथ ही अधिक उत्पादन और पौष्टिक बनाने वाले जीन प्रत्यारोपित करेंगे। साथ ही इनकी गुणवत्ता, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैैं। इसके लिए पूर्वांचल के मशहूर जीरा-32, सिद्धार्थनगर का काला नमक व चंदौली के ब्लैक राइस का चयन किया गया है।
आठ से 10 जिलों से लिए गए हैं प्रजातियों के नमूने
संस्थान के विज्ञानी उमा महेश्वर सिंह बताते हैं कि काला नमक की मूल गुणवत्ता और मूल प्रजाति का पता लगाने के लिए शोध किया जा रहा है। देखना यह होगा कि आठ से 10 जिलों में रोपी जा रही इन प्रजातियों में वास्तविक कौन सी और कहां की है। उसके मूल गुण और विशेषताओं का जेनेटिक चिह्नांकन किया जाएगा। इसके बाद पौधों की ऊंचाई, बीजों को झडऩे, पौधों के गिरने जैसे अवांछनीय गुणों को कम करके उपज में सुधार के लिए अभिनव प्रजनन तकनीकों के साथ प्रयास किए जाएंगे। इस सुधार प्रकिया में प्रजातियों के मूल गुणों एवं विशेषताओं (सुगंध, पोषणता आदि) को संरक्षित रखना प्राथिमकता होगी। लंबे कालखंड में इनकी मूल प्रजाति में पीढ़ी दर पीढ़ी कुछ बदलाव हो जाने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि पहले की तरह अब इनकी सुगंध नहीं रही है।