रामनगर की रामलीला के चौदहवें दिन श्रीराम और भरत के बीच द्वंद्व से देवगण बेचैन

प्रभु श्रीराम के सामने रघुकुल की सनातन रीति का निर्वहन तो बड़े भाई के प्रेम में डूबे भरत का त्याग, इससे दोनों के बीच द्वंद्व ने देव गण को बेचैन कर दिया।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Sat, 06 Oct 2018 06:12 PM (IST) Updated:Sat, 06 Oct 2018 06:12 PM (IST)
रामनगर की रामलीला के चौदहवें दिन श्रीराम और भरत के बीच द्वंद्व से देवगण बेचैन
रामनगर की रामलीला के चौदहवें दिन श्रीराम और भरत के बीच द्वंद्व से देवगण बेचैन

वाराणसी (रामनगर) । प्रभु श्रीराम के सामने रघुकुल की सनातन रीति का निर्वहन तो बड़े भाई के प्रेम में डूबे भरत का त्याग। इससे दोनों के बीच द्वंद्व ने देव गण को बेचैन कर दिया। अंतत: भरत को समझाने में भरत सफल रहे और देवगणों का संशय दूर हो गया। कई क्षण ऐसे आए जब भरत की व्याकुलता व श्रीराम के प्रेम पूरित संवादों पर भाव विभोर लीलाप्रेमी अपने आंसू नहीं रोक पाए। 

रामनगर में विश्वप्रसिद्ध रामलीला के 14 वें दिन शनिवार को रामबाग लीला स्थल पर 13वें दिन के लिए तय प्रसंगों यथा गुरु वशिष्ठ और महाराज जनक की सभा का मंचन किया गया। गुरु वशिष्ठ, भरत को समझाते हैं कि श्रीराम का जन्म देवहित व राक्षसों के सर्वनाश के लिए हुआ है। वह सभी को सुख देने वाले हैं। अत: वह जिस रीति से अयोध्या चलें वही उपाय करें। गुरु द्वारा खुद से उपाय पूछे जाने को भरत अपना दुर्भाग्य बताते हैं। इन वचनों को सुन श्रीराम शपथ पूर्वक कहते हैं कि भरत के समान तीनो लोकों में कोई भाई नहीं होगा। भरत कहते हैं आपने खेल में भी हमें कभी कटु वचन नहीं बोला, मेरा मन न टूटे इसलिए खेल में मुझे ही जिताया मगर मैं अपनी माता कैकेयी की करनी से हार गया। व्यथित भरत को श्रीराम समझाते हैं और बताते हैं कि-भरत तुम धर्म की धुरी, प्रेम में प्रवीण व लोक वेद के ज्ञाता हो। सूर्यवंश की रीति कहती है कि हम पिता दशरथ की कीर्ति, सत्य प्रतिज्ञा का मान रखें। यह आपत्तिकाल कुछ समय के लिए आया है। इस कठिन संकट के समय प्रजा व परिवार को सुखी रखो, यही उचित है। प्रभु की वाणी सुन स्वर्गलोक में सशंकित देवगण मुग्ध हो जाते हैं और उनके मन का संशय भी दूर हो जाता है। 

इससे पूर्व लीला के प्रसंगानुसार दूतगण महाराज जनक व महारानी सुनयना के आगमन का समाचार सुनाते हैं और खुद श्रीराम उन्हें अगवानी कर ले आते हैं। महारानी कौशल्या, कैकेयी व सुमित्रा, महारानी सुनयना से मिलकर व्यथित हैं। राजा जनक सीता से कहते हैं तुमने पिता व श्वसुर दोनों के घरों को पवित्र किया। साथ ही भरत कीर्ति का बखान करते हैं। इस सोच में भी डूब जाते हैं कि उन्होंने वन में आकर ठीक किया या नहीं। श्वेत-लाल महताबी की रोशनी में 'आरती करिए सियावर की...' गायन के बीच आरती कर लीला को विश्राम दिया गया।

आज की रामलीला

रामनगर : भरत जी का चित्रकूट से विदा होकर अयोध्या गमन, नंदी ग्राम निवास।  

जाल्हूपुर : जयंत नेत्र भंग, अत्रि मुनि मिलन, विराट वध, इंद्र दर्शन, शरभंग- सुतीक्ष्ण-अगस्त्य-गिद्धराज समागम, पंचवटी निवास, गीता उपदेश।  

शिवपुर : अवध में भरत सभा, वन प्रस्थान, निषादराज संवाद, भारद्वाज आश्रम विश्राम। 

भोजूबीर : भरत पयान, निषाद भेंट, भारद्वाज मिलन, चित्रकूट आगमन, सीता स्वप्न, लक्ष्मण विचार। 

काशीपुरा : श्रीराम वन यात्रा। 

लाट भैरव : भरत का वन गमन व घंडइल।  

चित्रकूट : रामघरनैल, भारद्वाज आश्रम में आतिथ्य, पथिक झांकी, चित्रकूट निवास। 

गायघाट : घंडइलपार, भारद्वाज आश्रम।   

मौनी बाबा : श्रीराम वन गमन। 

भदैनी : राज्याभिषेक की तैयारी, कोप भïवन। 

खोजवां : फुलवारी, श्रीरामजी का मिथिला भ्रमण, अष्टसखी संवाद। 

रोहनिया : अहिल्या उद्धार, नगर दर्शन, फुलवारी।  

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