बिरसा मुंडा जयंती समारोह में शामिल होंगे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, 29 नवम्बर को आएंगे सोनभद्र

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 29 नवंबर को बिरसा मुंडा जयंती के अवसर पर सेवा कुंड आश्रम चपकी के वनवासी समागम में हिस्सा लेने पहुंचेंगे।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Sun, 10 Nov 2019 12:51 PM (IST) Updated:Sun, 10 Nov 2019 01:07 PM (IST)
बिरसा मुंडा जयंती समारोह में शामिल होंगे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, 29 नवम्बर को आएंगे सोनभद्र
बिरसा मुंडा जयंती समारोह में शामिल होंगे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, 29 नवम्बर को आएंगे सोनभद्र

सोनभद्र, जेएनएन। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 29 नवंबर को बिरसा मुंडा जयंती के अवसर पर सेवा कुंड आश्रम चपकी के वनवासी समागम में हिस्सा लेने पहुंचेंगे। इस दौरान राष्ट्रपति अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम चपकी स्थित सेवा समर्पण संस्थान के स्कूल और हॉस्टल के भवनों का उद्घाटन भी करेंगे। उनका कार्यक्रम दोपहर 10.30 से 11.30 होगा। इसकी जानकारी राष्ट्रपति के निजी सचिव विक्रम सिंह द्वारा राज्यसभा सांसद रामसकल को भेजे गए पत्र से मिली। राष्ट्रपति के अगमन को लेकर जिला प्रशासन भी अब तैयारियों में जुट गया है।

बिरसा मुंडा ने किया अंग्रेजों का संघर्ष : गुलामी के दौर में सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखंड प्रदेश में रांची के उलीहातू में हुआ था। प्रारम्भिक पढाई के बाद वे चाईबासा इंग्लिश स्कूल में पढने आये। उन्होंने मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिये दल का नेतृत्व किया। 1894 में क्षेत्र में उस दौर में अकाल और महामारी फैलने के दौरान उन्‍होंने लोगों की खूब सेवा की थी। बतौर युवा नौजवान नेता के रूप में मुंडा समाज को उन्‍हाेंने एकत्र कर अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन किया तो परिणाम स्‍वरुप गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो वर्ष कारावास की सजा दी गयी थी। क्षेत्र में ग्रामीणों की आवाज उठाने की वजह से लोग उनको 'धरती बाबा' के नाम से पूजने लगे।

कईयों जंग हुए आदिवासी क्षेत्र में : वर्ष 1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच कई बार युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों से लोहा लेना जारी रखा। अगस्त 1897 में बिरसा मुंडा और उसके चार सौ सहयोगियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोल दिया। वर्ष 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं को पकड़ लिया।

आजादी के बने नायक : उसी दाैरान जनवरी 1900 में डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष आदिवासियों और अंग्रेजों के बीच हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये। उस जगह बिरसा मुंडा जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे, हालांकि स्वयं बिरसा मुंडा भी 3 मार्च 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार किए गए थे। आदिवासी क्षेत्रों में बिरसा मुंडा की सेवाओं और संघर्षों की बदौलत आदिवासी क्षेत्र में भी देवता की तरह पूजा जाता है। सोनभद्र जिले में आदिवासी क्षेत्रों में बिरसा मुंडा के समर्थकों की काफी संख्‍या है। 

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