Pakistan Republic Day से वाराणसी में शीतला घाट पर 'पाकिस्‍तान महादेव' का गहरा संबंध

Pakistan Republic Day 2021 भारत पाकिस्‍तान बंटवारे के दौरान नफरतों की कहानियां यत्र तत्र और सर्वत्र आज भी विद्यमान हैं और नफरत की कहानियों की जीवंत दस्‍तावेज भी हैं। इन्‍हींं में से एक है वाराणसी में गंगा तट स्थित शीतला घाट पर बना पाकिस्‍तान महादेव मंदिर।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Mon, 22 Mar 2021 12:07 PM (IST) Updated:Mon, 22 Mar 2021 05:52 PM (IST)
Pakistan Republic Day से वाराणसी में शीतला घाट पर 'पाकिस्‍तान महादेव' का गहरा संबंध
वाराणसी में गंगा तट स्थित शीतला घाट पर बना पाकिस्‍तान महादेव मंदिर।

वाराणसी, जेएनएन। नफरत की बुनियाद पर बने पाकिस्‍तान की जड़ें हिंदुस्‍तान से ही जुड़ी हैं। 23 मार्च को प्रतिवर्ष पाकिस्‍तान अपना गणतंत्र दिवस मनाता है। पाकिस्‍तान की हिंदुस्‍तान से आजादी से पहले जहां साझी विरासत थी वहीं बंटवारे ने नफरत का जो बीज बोया है वह खाई आज कहीं अधिक गहरी नजर आती है। इन्‍हीं नफरतों की कहानियां यत्र तत्र और सर्वत्र आज भी विद्यमान हैं और नफरत की कहानियों की जीवंत दस्‍तावेज भी हैं। इन्‍हींं में से एक है वाराणसी में गंगा तट स्थित शीतला घाट पर बना पाकिस्‍तान महादेव मंदिर।

दरअसल पाकिस्‍तान में 23 मार्च 1940 को पाकिस्‍तान नाम से अलग मुल्‍क की मांग शुरू हुई थी, उसके बाद बंटवारे की मांग को लेकर मंदिरों और हिंदुओं की संपत्तियों को जब आग के हवाले करना उपद्रवियों ने शुरू किया तो दो भाइयों ने पाकिस्‍तान से शिवलिंग को काशी में लाकर गंगा में विसर्जित करने की मंशा के साथ शिवलिंग लेकर पहुंचे मगर भगवान शिव की नगरी में उसे विसर्जन करने की मंशा त्‍याग कर उसे शीतला घाट पर स्‍थापित कर दिया। आज यह छोटे से अरघे में बना शिवालय पाकिस्‍तान महादेव के नाम से जाना जाता है और लोग आस्‍था का जलाभिषेक कर बंटवारे की पुरानी स्‍मृतियों में भी डूब जाते हैं। 

पाकिस्‍तान महादेव की यह है दास्‍तान

स्‍थानीय लोगों के अनुसार बंटवारे का दर्द लिए लाहौर से दो हीरा कारोबारी निहाल चंद और यमुना दास तत्‍कालीन समय में काशी आए थे। वह लाहौर से अपने साथ अपने परिवार के आराध्‍य शिवलिंग को गंगा नदी में प्रवाहित करने की मंशा लेकर आए थे। स्‍थानीय लोग बताते हैं कि इसी शिवलिंग को बाद में मंदिर में स्थापित कर दिया गया जो आज पाकिस्‍तान महादेव के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि बंटवारे के उसी मनहूस घड़ी ने लाहौर से शिवलिंग को काशी में स्‍थापित करने की प्रेरणा ने जन्‍म लिया था। 

स्‍थानीय नागरिक एक मान्‍यता यह भी बताते हैं कि बूंदी के राजा गोपाल दास घाट पर शाम को भ्रमण कर र‍हे थे और लाहौर के हीरा कारोबारियों द्वारा नदी में शिवलिंग विसर्जन की जानकारी होने के बाद उनको स्‍थापित करने की सलाह दी। इसके बाद पाकिस्‍तान से बंटवारे के बाद काशी में शीतला घाट पर लाहौर से आए इस शिवलिंग की स्‍थापना मानी जाती है और कालांतर में पाकिस्‍तान महादेव के तौर पर गंगा घाट पर इस छोटे से मंदिर की स्थापना यमुना दास द्वारा आज भी मानी जाती है। वाराणसी के मंदिरों के दस्‍तावेज में भी यह मंदिर पाकिस्‍तान मंदिर के नाम से दर्ज है। नियमित मंदिर में आस्‍थावन पूजा करने और जलाभिषेक करने आते हैं।  

पाकिस्‍तान के लिए 23 मार्च का महत्‍व

इतिहास के दस्‍तावेजों के अनुसार सन 1940 में 22 मार्च से 24 मार्च तक चले लाहौर सत्र में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग का लाहौर प्रस्ताव पेश किया गया था। इसे ही पाकिस्तान में करारदाद-ए पाकिस्तान यानि पाकिस्तान की संकल्पना कहा जाता है। इस पेशकश के आधार पर मुस्लिम लीग ने भारत के मुसलमानों के लिये अलग देश बनाने की मांग के साथ आंदोलन शुरू किया था। इसके साथ 23 मार्च 1956 को पाकिस्तान के पहले संविधान को अपनाया गया। रियासत-ए-पाकिस्तान इसके बाद ही इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान में परिवर्तित हो गया। पाकिस्‍‍‍‍‍तान में इसी दिन गणतंत्र दिवस मनाया जाता है और य‍ह दिन बंटवारे और नफरत की वह तारीख है जो आज भी दोनों देशों के बीच नफरत की बुनियाद को और चौड़ी करती जा रही है।

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